बिहार के लोग अब चखेंगे तरल गुड़ का स्वाद, पूसा कृषि विश्वविद्यालय किसानों को दे रहा प्रशिक्षण

बिहार के लोग अब जल्द ही तरल गुड़ का स्वाद चख सकेंगे। यही नहीं, अब गुड़ को पकवान बनाने के लिए किसी चीज में घोलने में भी आसानी होगी। सबसे बड़ी बात है कि ठोस और तरल गुड़ के मिठास में भी कोई अंतर नहीं होगा।

बिहार के समस्तीपुर के पूसा स्थित डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय तरल गुड़ के उत्पादन पर काम कर रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि पकवान बनाने या किसी खाद्य पदार्थ में ठोस गुड़ को घोलना पड़ता था, इस कारण तरल गुड़ की मांग जरूर होगी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि एक साल तक सामान्य तापमान में इसे रखा जा सकेगा। ईख अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. अनिल कुमार सिंह के निर्देशन में इस कार्य में कृषि वैज्ञानिक अनुपम अमिताभ जुड़े हुए हैं।

अनुपम कहते हैं दोनो प्रकार के गुड़ बनाने की शुरूआती प्रक्रिया एक जैसी ही है। दोनों के मिठास में भी कोई अंतर नहीं है। अलग – अलग स्वाद और हर्बल बनाने के लिए इसमें गिलोय, अदरक, तुलसी, दीलचीनी भी मिलाई जा रही है।

उन्होंने बताया कि ठोस गुड़ की तुलना में इसे उचित तापमान पर उबाला जाता है। इसे तैयार करने में तापमान की अहम भूमिका होती है। गन्ने से जूस निकालने के बाद उसे प्रसंस्करण यूनिट में भेजा जाता है, जहां उसे टैंक में 102-103 डिग्री सेल्सियस तापमान पर उबाला जाता है।

उबलने के बाद इसे दूसरे टैंक में स्टोर कर उसे 12 घंटे तक छोड़ दिया जाता है। इस तापमान पर गुड़ तरल रूप में ही रहता है। इस रूप में एक साल तक रह सकता है। उन्होंने बताया कि इसे बनाने में 35 से 40 रुपये प्रति लीटर खर्च आता है, जबकि बाजार में इसे आसानी से 80 रुपये प्रति लीटर बेचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि प्रयोग के तौर पर फिलहाल कृषि विज्ञान केंद्र पीपराकोठी (मोतिहारी) तथा विश्वविद्यालय परिसर में दो यूनिटें काम कर रही हैं।

उन्होंने बताया कि इसकी जानकारी के लिए खुद किसान भी यहां पहुंच रहे हैं तथा विश्वविद्यालय स्तर पर भी किसानों को इसके लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि अब तक 150 से अधिक किसानों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

अनुपम का दावा है कि एक यूनिट से प्रतिदिन तीन से चार टन तरल गुड़ तैयार किया जा सकता है। निदेशक डा. अनिल के मुताबिक इस उत्पाद को अब आम लोगों तक पहुंचाने के लिए इसे खादी मॉल और अन्य बिक्री केंद्र से बेचे जाने की योजना बनाई गई है। विज्ञान केंद्रों में माडल के रूप में एक-एक यूनिट लगाने की योजना बनाई गई है।

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