अमेरिकी राष्ट्रपति ने नये कोरोना वायरस के स्रोत पर चीन के खिलाफ बार-बार आरोप लगाए। उनकी वायरस के सवाल पर नस्लवाद भड़काने की कार्यवाहियों की व्यापक निन्दा की गयी है। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी राजनेता ने राजनीतिक चुनाव की वजह से दूसरे के सिर पर दोष मढ़ने का तरीका अपनाया है।
11 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नये कोरोना वायरस को कोविड-19 नाम दिया। लेकिन अमेरिका के राजनेताओं ने अपने राजनीतिक हितों की दृष्टि से “चीनी वायरस” जैसी नस्लवादी भाषा का उपयोग कर विज्ञान को रौंदा और नस्लीय संघर्ष को तीव्र बनाया।
अमेरिका के नागरिक संगठन स्टॉप एएपीआई हेट ने मार्च माह से एशियन्स के खिलाफ नस्लीय भेदभाव का पीछा किया। 15 जुलाई तक इस संगठन में अमेरिका में घटित 2373 ऐसी घटनाओं का रिकार्डिंग किया है। महामारी की स्थिति गंभीर होने के साथ साथ अमेरिका में एशियन्स के खिलाफ भेदभाव का आगे विस्तार किया जा रहा है।
वायरस स्रोत का पता लगाना एक वैज्ञानिक सवाल है। लेकिन अमेरिका ने किसी भी सबूत दिये बिना नये कोरोना वायरस के चीन के वूहान शहर से आने का एलान किया। अमेरिका में अनेक वैज्ञानिकों ने भी इस साजिश का खंडन किया है।
प्रसिद्ध चिकित्सा पत्रिका “द लैंसेट” ने अपनी ताज़ा संपादकीय में कहा कि चीन को महामारी का “बलि का बकरा” कहना कोई रचनात्मक प्रतिक्रिया नहीं है। महामारी की प्रतिक्रिया में वैश्विक एकता की कमी सभी लोगों के लिए खतरा है।
पर इसके साथ साथ अनेक देशों में यह पता लगाया गया है कि नये कोरोना वायरस संक्रमण होने की तिथि बहुत पहले हो चुकी थी। स्पेन में पता लगा वायरस का समय गत वर्ष के मार्च तक तय किया गया है। अधिक से अधिक सबूतों से पता चला है कि नए कोरोनोवायरस एशिया में दिखाई देने से पहले ही कहीं और जगहों पर मौजूद थे।
उधर अमेरिका में महामारी की रोकथाम में कमजोरी होने के कारण से केवल 15 दिनों के भीतर दस लाख नये मामले सामने आये हैं। और अमेरिकी सीडीसी के अनुसार अमेरिका में संक्रमणों की वास्तविक संख्या आधिकारिक आंकड़ों से बहुत अधिक है।
इसी स्थिति में अमेरिका राजनेता जो असहाय थे, ने चीन के खिलाफ दोष मढ़ने का पुराना तरीका फिर एक बार अपनाया है। अमेरिकी राजनेताओं ने सियासत को विज्ञान के ऊपर रखा है, पर इस की लागत आम लोगों के जान से चुकाना पड़ा है।
अब तक अमेरिका में चालीस लाख पुष्ट मामले सामने आये और 1 लाख चालीस हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन अमेरिकी राजनेता महामारी की रोकथाम के वैज्ञानिक रास्ते पर नहीं लौटना चाहते हैं। जो अमेरिका के आम लोगों के लिए बुरी खबर है।