चंबल में कमल या पंजा, किसका चलेगा सिक्का, क्या कांग्रेस कर पाएगी सेंधमारी?

कभी बॉलीवुड की फिल्मों में डकैतों और बंदूकधारियों के गढ़ के तौर पर दिखाए जाने वाले मध्यप्रदेश के चंबल क्षेत्र में जाति का मुद्दा भी हावी रहा है, हालांकि आधुनिकीकरण के कारण यहां बदलाव देखा जा रहा है, लोगों के एक वर्ग का ऐसा मानना है. राज्य के उत्तरी भाग में स्थित ग्वालियर-चंबल क्षेत्र उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा के निकट है और इसमें तीन सीट, ग्वालियर, मुरैना और भिंड आती हैं, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.

ग्वालियर, मुरैना और भिंड (सुरक्षित) लोकसभा सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग का वर्चस्व है, जहां अनुसूचित जनजाति की बड़ी आबादी है. नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में इन तीन लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले 24 विधानसभा क्षेत्रों में से कांग्रेस ने 13 और भाजपा ने 12 सीटें जीती थीं. हालांकि विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल की थी.

कांटे की टक्कर
ग्वालियर और भिंड लोकसभा सीट के तहत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा और कांग्रेस ने चार-चार सीट जीतीं, जबकि मुरैना में कांग्रेस ने पांच और भाजपा ने चार सीट जीतीं. शिवपुरी की तीन विधानसभा सीट पर भाजपा ने जीत हासिल की थी.

ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर भुवनेश सिंह तोमर ने बताया कि जातिगत भावनाएं तब भी निहित थीं, जब ग्वालियर-चंबल क्षेत्र डाकुओं, डकैतों या ‘बागियों’ गढ़ हुआ करता था.

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