59वें स्वतंत्रता दिवस पर सोमाली दूतावास में कार्यक्रम, संवाद से संपर्क की कोशिश

दिल्ली, 29 जुलाई: सोमाली दूतावास ने यहां सोमवार को 59वें सोमालियाई स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाया। इस मौके पर सोमालिया के राजदूत एबयान महम्मद सालाह ने एक मैगजीन रिलीज कर सोमालिया और भारत के रिश्तों पर प्रकाश डाला।

समारोह में अफ्रीकी देशों के डीन “अलेम टी वोल्डरमरियम” ने भी शिरकत की। समारोह में भारत में स्थित अन्य अफ्रीकी देशों के विभिन्न दूतावासों के कर्माचारी के अलावा कई गैर सरकारी संगठन जैसे एक्जिलिएंट (Exelient), एएसएमपी (ASMP), एएवाईएफओ (AAYFO) के सदस्य भी शामिल हुए।

अफ्रीकी देशों के डीन ने सोमाली स्वतंत्रता दिवस की 59वें सालगिरह पर बधाई देते हुए, कहा कि “अफ्रीका का भारत से रिश्ता सिर्फ व्यापार का नहीं है, बल्कि दोनों के बीच सामाजिक सुधार, न्याय और एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी का भी है।”

समारोह के अंत में सोमाली राजदूत एबयान महम्मद सालाह ने सोमालिया की नाकारात्मक छवि का जिक्र करते हुए कहा कि “अब विश्व भर में सोमालिया की पहचान बदलने लगी है। अब सोमालिया को बदनाम देशों के तौर पर नहीं देखा जाता। सोमालिया में अब काफी संभावनाएं हैं।”

आईए जानें सोमालिया का इतिहास …

19वीं सदी एवं 20वीं सदी के पूर्वार्ध में औपनिवेशिक देशों ने सोमालिया को पांच भागों में विभाजित कर दिया — ब्रिटेन (यूके) ने दो हिस्से अपने पास रखे जबकि इटली, इथोपिया एवं फ्रांस ने एक-एक हिस्सा रखा। सोमालियावासियों ने करीब सभी औपनिवेशिक ताकतों से आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। उत्तरी एवं दक्षिणी सोमालिया को क्रमशः 26 जून, 1960 एवं 01 जुलाई, 1960 को आजादी मिली। सोमालिया के सभी हिस्सों ने अंततोगत्वा एक वृहद सोमालिया का निर्माण किया। 1960 से लेकर 1969 तक, सोमालिया एक लोकतांत्रिक देश था। 1969 में हुए तख्तापलट के जरिये, सियाद बर्रे सत्ता में आया। बर्रे ने सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ संबंध बनाये जिसने पूरे 1970 के दशक के दौरान सोमालिया को सहायता प्रदान की। समस्या तब शुरु हुई, जब बार्रे ने ओगाडेन सोमाली क्षेत्र को इथोपिया से वापस लेने का प्रयास किया और सोवियत संघ ने इथोपिया को समर्थन देने का फैसला किया। इससे बर्रे कुपित हो गया जिसका नतीजा सोमालिया और सोवियत संघ के रिश्तों के खात्मे के रूप में सामने आया। इसके परिणामस्वरूप, अमेरिका सोमालिया के करीब आ गया।

1980 के उत्तरार्ध तक, ओगाडेन युद्ध के बाद, उत्तर में बर्रे की नीतियों का परिणाम इसाक कबीले के बीच असंतोष के रूप के सामने आया। (सोमालिया में पांच बड़े कबीले हैं — इसाक, दारूद, डिगिल एवं मिरिफ्ल, दिर एवं हावीव — एवं विभिन्न छोटे कबीले) इसाक सबसे बड़े उत्तरी कबीले थे और वर्तमान नीतियों एवं सरकारी संसाधनों से उन्होंने खुद को अलग थलग महसूस किया। कुछ कदमों, जैसेकि ओगाडेन शरणार्थियों को उत्तरी क्षेत्र में फिर से बसाने, को दक्षिणी प्रयासों द्वारा उत्तरी हितों को नष्ट करने की कोशिशों के रूप में देखा गया। उत्तरी इसाक कबीले के नेतृत्व में बर्रे के खिलाफ एक बगावत हुई और इसके प्रत्युत्तर में बर्रे ने उत्तरी शहरों, गांवों एवं यहां तक कि ग्रामीण ढांचों पर भी बमबारी के आदेश दिए। धीरे धीरे, बगावत दक्षिणी क्षेत्रों तक फैल गई और 1992 में बर्रे को भागने को मजबूर होना पड़ा। युद्ध में सोमालिया की हार से एक तीखे आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु हो गया। आखिरकार, इसका परिणाम उनके खिलाफ विद्रोह के रूप में सामने आया और 1992 के बाद से वहां कोई स्थाई सरकार नहीं रही।

हालांकि दुनिया भर में अलग-अलग देशों में स्थित सोमालियाई दूतावास अपने-अपने स्तर पर छवि बदलने की कोशिश कर रहें हैं और भारत में ये कार्यक्रम उसका जीता जागता उदाहरण है। लेकिन, पूर्ण रूप से विश्व स्तर पर एक साकारात्मक पहचान के लिए सोमालिया को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में रूपांतरित होना होगा जो संघीय ढांचे के साथ चुनी हुई सरकारों के माध्यम से चलती है, जिससे कि कबीलों के बीच कोई आपसी लड़ाईयों न हों और सभी कबीलों का समुचित रूप से प्रतिनिधित्व हो। तभी विश्व के दूसरे देश सोमालिया के प्रति अपना नजरिया बदल सकेंगे।

                                                                                                                 –डा. म शाहिद सिद्दीकी, ट्वीटर पर फॉलो करें @shahidsiddiqui

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