इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के त्वावधान में 5000 से भी ज्यादा चिकित्सकों, मेडिकल विद्यार्थियों और देशभर के हेल्थकेयर विशेषज्ञों ने सोमवार को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक 2019 के खिलाफ प्रदर्शन किया। पूरे चिकित्सा महकमे ने एम्स के बाहर इस विधेयक का जमकर विरोध किया। यह विरोध प्रदर्शन एम्स से लेकर निर्माण भवन तक किया गया। आईएमए के अध्यक्ष डॉ. सांतनु सेन ने बताया, “मेडिकल शिक्षा के लिए लाया गया एनएमसी विधेयक अबतक का सबसे खराब विधेयक है और दुर्भाग्य से डॉक्टर स्वास्थ्य मंत्री अपनी शिक्षा प्रणाली को स्वयं ही नष्ट कर देना चाहते हैं। हम इस अत्याचार को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे। यह विधेयक पूरी तरह से जनता विरोधी, गरीब विरोधी, छात्र विरोधी, लोकतंत्र विरोधी और अत्यंत कठोर है। शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा होने के नाते मेडिकल के विद्यार्थियों ने भी इसके विरोध में हाथ मिला लिया है, ताकि इस विधेयक को खत्म कर शिक्षा के क्षेत्र को बचाया जा सके।”
‘दिल्ली आंदोलन’ के बैनर तले 7000 से भी ज्यादा चिकित्सकों और मेडिकल विद्यार्थियों ने एनएमसी विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
सेन ने बताया, “2016 से एनएमसी विधेयक के खिलाफ लड़ रहे आईएमए का मानना है कि विधेयक में केवल कॉस्मेटिक बदलाव हुए हैं और आईएमए द्वारा उठाई गई मुख्य चिंताओं को लेकर अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। विधेयक में धारा 32 को भी जोड़ा गया है, जो ऐसे लोगों को चिकित्सा प्रैक्टिस करने के लिए कानूनी अधिकार देता है, जिन्हें मेडिकल से संबंधित कोई ज्ञान नहीं और इस तरह यह केवल लोगों के जीवन को खतरे में डाल रहा है। एनएमसी विधेयक एक प्रो-प्राइवेट मैनेजमेंट बिल है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है।”
आईएमए विधेयक के अन्य प्रावधानों का भी विरोध कर रहा है। इसमें एनईएक्सटी व एनईईटी पर फैसले व निजी मेडिकल कॉलेजों व डीम्ड विश्वविद्यालयों की 50 फीसदी सीटों पर एनएमसी द्वारा शुल्क का नियमन शामिल है।
आईएमए के महासचिव, डॉक्टर आर.वी. अशोकन ने कहा, “इस कठोर और खोखले विधेयक को इस उद्देश्य से लाया गया है कि सारा अधिकार भारत सरकार के हाथों में आ जाए, जो बिल्कुल भी जनता के हित में नहीं है और साथ ही चिकित्सा शिक्षा और पेशेवरों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। निजी मेडिकल कॉलेजों में सीटों के लिए फीस बढ़ा दी जाएगी, जिसके कारण देश में चिकित्सा की पढ़ाई बहुत महंगी हो जाएगी। इसका सबसे ज्यादा असर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पर पड़ेगा। इस तरह यह गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को चिकित्सा की पढ़ाई से प्रभावी रूप से वंचित कर रहा है।”