मप्र में भाजपा जमीनी नब्ज टटोलने में लगी

भोपाल – मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने जमीनी नब्ज टटोलने की कवायद तेज कर दी है।

इसके लिए विधानसभा क्षेत्र स्तर पर अलग-अगल नेताओं की ड्यूटी लगाई गई है।

ये नेता कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद कर रहे हैं, जमीनी हालात जान रहे हैं और खामियों को दुरुस्त करने मे लगे हुए हैं ताकि चुनाव में बड़ी जीत हासिल की जा सके।

भाजपा राज्य में 28 विधानसभा क्षेत्रों में उप-चुनाव को लेकर काफी गंभीर है। उप-चुनाव वाले क्षेत्रों के 128 मंडलों में सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं।

यह सिलसिला 12 अक्टूबर तक चलने वाला है। इन सम्मेलनों में हिस्सा लेने की जिम्मेदारी पार्टी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेषाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, थावर चंद गहलोत, प्रहलाद पटेल, महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, सांसद राकेश सिंह सहित सांसद, विधायक, राज्य सरकार के मंत्री से लेकर अन्य नेताओं को सौंपी गई है। इन नेताओं ने बैठकों में हिस्सा लेना शुरु भी कर दिया है।

चुानाव प्रबंधन समिति के संयोजक और नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने बताया कि इन सम्मेलनों में मंडल में निवासरत पार्टी के जिला एवं प्रदेश पदाधिकारी, बूथ कमेटी सदस्य, पेज प्रमुख शामिल हो रहे हैं।

इन सभी कार्यकर्ताओं का बूथ के अनुसार पंजीयन किया जाएगा, कार्यकर्ताओं का प्रवेश पत्र भी बनाया जाएगा और इन सभी को बूथ के मुताबिक बैठकर चर्चा होगी।एक मंडल में तीन घंटे का कार्यक्रम हेागा।

सूात्रों की मानें तो भाजपा 28 में से 25 विधानसभा क्षेत्रों में उन लोगों को बतौर उम्मीदवार मैदान में उतारने वाली है जो कांग्रेस छोड़कर आए हैं। इसके चलते पार्टी में कई स्थानों पर विरोध के स्वर भी उभर रहे हैं।

वरिष्ठ नेता इन मंडल सम्मेलनों के जरिए जमीनी हालात को तो जानेंगे ही साथ में कार्यकर्ताओं के असंतोष को भी कम करने की कोशिश करेंगे।

इन मंडल सम्मेलनों से पार्टी के पास प्रारंभिक तौर पर यह भी जानकारी आ जाएगी कि कहां उम्मीदवार कमजोर पड़ रहा है, और किस तरह की रणनीति पर काम करना चाहिए।

राजनीतिक विश्लेषक रवींद व्यास का कहना है कि, भाजपा भी इस बात को जान रही है कि दलबदल करने वालों को उम्मीदवार बनाने से कई क्षेत्रों में असंतोष है।

राज्य में सरकार बनने के बाद से पार्टी ने कार्यकर्ताओं के विरोध को कम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।

अब चुनाव नजदीक है, इन स्थिति में यह सम्मेलन जमीनी हालात जानने का बड़ा माध्यम बन सकता है, अगर किसी इलाके का कार्यकर्ता विद्रोह का मन बना भी रहा हो तो उसे शांत कर दिया जाए।

इसके लिए जरुरी है कि पार्टी के बड़े नेता कार्यकर्ता के बीच पहुंचें। उसी रणनीति के अनुसार भाजपा यह सम्मेलन आयोजित कर रही है।

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