देशभर में मजदूरों को अपमानित कराके सरकार ने आख़िरकार उन्हें घर जाने की छूट दे दी।
ये फैसला भी 36 दिन बाद लिया गया, जब लाखों लोग बेहाल होकर जैसे तैसे घर पहुंच सके, कई ने रास्ते में दम तोड़ दिया और लाखों लोग अभी भी फंसकर जानवरों जैसे सलूक को झेल रहे हैं।
जबकि मध्यमवर्गीय लोगों के लिए गुजरात सरकार ने उत्तराखंड में आए पर्यटकों को बसों से लॉकडाउन के बीच भेजने का बंदोबस्त कराया, वहीं यूपी सरकार ने कोटा से छात्रों को लाने के लिए बसें भेजीं।
केवल प्रवासी मजदूर ही ऐसे रहे, जिनके लिए संवेदनहीन हालात में झोंक दिया गया।
ताजा आदेश में गृह मंत्रालय ने जाने की छूट दी है, लेकिन ये स्पष्ट नहीं किया है कि बसों का बंदोबस्त उन्हें खुद करना है या सरकार करके देगी या फिर किराया देना है।
दूसरी तरफ़ ट्रेनों के संचालन को लेकर भी कोई बात नहीं कही गई है।
ऐसे में कहा जा सकता है कि ये एक ऐसा फ़ैसला है जिसे वास्तविकता और वर्तमान सामाजिक परिदृश्य से कोई लेना देना नही है।