जश्न-ए-बांग्ला भी था…जश्न-ए-बहाराँ भी था दिल्ली में बंग्लादेशी राष्ट्रीय दिवस पर….

दिल्ली: रविवार शाम प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जश्न-ए-बांग्ला भी था…जश्न-ए-बहाराँ भी था । जी हाँ, बंग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस के मौक़े पर दिल्ली स्थित बंग्लादेश उच्च आयोग द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में मशहूर कलाकारों ने अपनी अदा से सबका दिल जीत लिया।

बंग्ला म्यूज़िकल नाइट में जहां बंग्लादेश के कलाकार शमा बांध रहे थे वहीं ढाका की मशहूर कच्ची बिरयानी ने भी दर्शकों की भूख बढ़ा दी थी। बंग्लादेश उच्च आयोग ने सांस्कृतिक कार्यक्रम के अलावा बंग्लादेश की मशहूर पकवान से भी भारतीय दर्शकों को रू-ब-रू किया।

भारत के घनिष्ठ मित्र होने के कारण भारतीयों का बांग्लादेश, विशेषकर शेख मुजीबुर रहमान के साथ एक मज़बूत और भावनात्मक संबंध है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, जब भी वे दिल्ली में होते थे, तो वे महात्मा गांधी की सर्व-धर्म प्रार्थनाओं में भाग लिया करते थे।

मुजीबुर्रहमान की कई तस्वीरें हैं जिनमें वे सर्वधर्म प्रार्थना सभा में गांधीजी के पीछे खड़े दिखते हैं। वह हमेशा ‘खादी’ के बने कपड़े पहनते थे। वह एक सच्चे गांधीवादी और ‘स्वदेशी’ में दृढ़ विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। भारत सरकार द्वारा शैख़ मुजीबुर रहमान के जन्म के सौ वर्ष बाद और बांग्लादेश की स्वतंत्रता के 50 वें वर्ष मार्च 2021 में उन्हें मरणोपरांत गांधी शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में रविवार शाम जश्न-ए-बांग्लादेश और सांस्कृतिक प्रोग्राम इसकी बानगी है। हालाँकि भारत-बांग्लादेश के बीच रिश्तों में कभी नफ़रत कभी प्यार शुरू से ही नज़र आता रहा है। 50 साल बाद भी दोनों देशों के बीच ‘प्यार-नफ़रत’ का रिश्ता क़ायम है, मतलब एक ही साथ प्रेम और नफ़रत दोनों तरह के रिश्ते बने हुए हैं।

दोनों देशों के नागरिकों में कई लोग ऐसे हैं जो दूसरे देश को पसंद करते हैं तो बाक़ी लोग पसंद नहीं करते। इस रिश्ते की एक ख़ास वजह भी है। बांग्लादेश के एक तबक़े में भारत विरोधी नकारात्मक सोच पैदा करने के पीछे कुछ मनोवैज्ञानिक और अनसुलझे मुद्दे हैं। उन मुद्दों में फरक्का और तीस्ता के पानी का बंटवारा एक प्रमुख मुद्दा है। दूसरी बड़ी वजह यह कि सीमा पर होने वाली हत्याएं एक बड़ा मुद्दा है। उस मामले में भारत जो सफ़ाई देता है, बंग्लादेश के लोग उसे स्वीकार नहीं कर पाते।

एक समय था जब भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में एक दूरी कुछ अधिक थी। लेकिन पिछले एक दशक में दोनों देशों के संबंध काफ़ी गहरे हुए हैं। दोनों देशों की सरकारों के बीच कई मुद्दों पर चर्चा हुई और समस्याओं पर ध्यान दिया गया। हालांकि नौकरशाही की समस्याओं के चलते उठाए गए क़दमों के कार्यान्वयन में समय लग रहा हो। पिछले साल कोरोना महामारी के प्रकोप के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी दूसरे देश-बांग्लादेश की दो दिवसीय यात्रा पर गए थे।
इस ऐतिहासिक दौरे को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यात्रा से पहले ट्वीट भी किया था-‘बांग्लादेश के साथ हमारी साझेदारी हमारी पड़ोसी पहले की नीति का प्रमुख स्तंभ है और हम इसे और गहरा व विविधता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’
इससे पहले भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ढाका का महत्वपूर्ण दौरा करके बांग्लादेश को न केवल दक्षिण एशिया में, बल्कि व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘प्रमुख पड़ोसी’ और ‘मूल्यवान भागीदार’ बताया था।
अगर ताज़ा घटनाक्रम पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि दक्षिण एशिया के सभी पड़ोसियों में भारत का सबसे अच्छा रिश्ता बांग्लादेश के साथ ही है। यह पूर्वोत्तर क्षेत्र और दक्षिण पूर्वी एशिया के लिए पूरब में भारत का प्रवेश द्वार है। यह भारत की ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी की कुंजी भी है।

बंग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस के मौक़े पर दिल्ली स्थित बंग्लादेश उच्च आयोग द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी इसकी झलक साफ़ दिख रही थी। बंग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस पर भारतीय लोगों का कार्यक्रम में शामिल होकर उत्साह बढ़ाना देखने लायक़ था।

इस मौक़े पर भारत में बंग्लादेश के उच्चायुक्त ने सद्भावना टुडे से ख़ास बातचीत में बताया कि बंग्लादेश के कलाकार भारत के अलग-अलग राज्यों में जाकर अपना प्रोग्राम प्रस्तुत करेंगे। इससे दोनों देश के बीच सांस्कृतिक रिश्तों को मज़बूती मिलेगी। उन्होंने कहा, “भारत और बांग्लादेश के बीच एक मज़बूत सांस्कृतिक और भावनात्मक संबंध भी है। इतिहास गवाह है कि भारत ने जिस प्रकार बंग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका अदा की।”

मालूम हो कि २७ मार्च को ही बांग्लादेश स्वतंत्रता और राष्ट्रीय दिवस धूम धाम से मनाता है। क्योंकि बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान ने २६ मार्च १९७१ मध्यरात्रि को बांग्लादेश की आजादी की घोषणा की थी। इससे पहले बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम २५ मार्च १९७१ की मध्यरात्रि को पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में अचानक की गई कार्रवाई से शुरू हुआ और उसी साल १६ दिसंबर को समाप्त हुआ। उसी साल पाकिस्तान ने हार स्वीकार कर ढाका में स्वतत्रंता सेनानियों और भारतीय सैनिकों के गठबंधन बल के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण किया था।

हालांकि दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी से कुछ फर्क पड़ा है। भारत को छोड़कर इस क्षेत्र के अन्य सभी देश चीन के बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) में शामिल हो गए हैं। हालांकि बांग्लादेश इसका इस्तेमाल सौदेबाजी के लिए नहीं कर रहा है। भारत को बांग्लादेश में निवेश करने, अरबों की सहायता प्रदान करने और उसे व्यापार में पसंदीदा राष्ट्र का दर्जा देने में आसानी हुई है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए भारत लगातार इस कोशिश में है कि बंग्लादेश ही नहीं, बल्कि सभी पड़ोसी देशों के बीच आपसी संबंध मज़बूत किए जाए।

मंगलवार यानि २९ मार्च २०२२ को कोलंबो में 18वीं बिम्स्टेक मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि बिम्सटेक के सदस्य देशों को आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ के खिलाफ निश्चित रूप से साथ मिलकर लड़ना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि बंदरगाह केंद्रों, नौका सेवाओं, तटीय जहाजरानी, ग्रिड कनेक्टिविटी और मोटर वाहनों की आवाजाही पर सहयोग महत्वपूर्ण है।

विदेश मंत्री जयशंकर ने बिम्सटेक मंत्रिस्तरीय बैठक से अलग अपने बांग्लादेशी समकक्ष ए के अब्दुल मोमेन से भी मुलाकात भी की और उन्हें किसी भी नजदीकी तारीख पर भारत के दौरे पर आने का न्योता दिया। 18वीं बिम्स्टेक मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत और बांग्लादेश के अलावा, बिम्सटेक में श्रीलंका, म्यांमा, थाईलैंड, नेपाल और भूटान भी शामिल थे।

 

– डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी ,
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