पुरखों की भूमि से जोड़ता प्रवासी सम्मेलन का आगाज इंदौर में, गुयाना और सूरीनाम के राष्ट्राध्यक्ष भी होंगे शामिल

इंदौर, 8 जनवरी: मध्यप्रदेश का इंदौर 8 जनवरी से 12 जनवरी तक मध्य प्रदेश 2 बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजनों का साक्षी बनने को तैयार है। पहला आयोजन प्रवासी भारतीय सम्मेलन 8 से 10 जनवरी तक आयोजित किया गया है। वहीं दूसरा आयोजन ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 11 से 12 जनवरी को होना है। रविवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इंदौर के ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में ‘युवा प्रवासी भारतीय दिवस’ का शुभारंभ किया।

इस मौक़े पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने ‘मेक इन इंडिया’ कहा तो सारी चीज़ें भारत में बनने लगीं। डिजिटल इंडिया से पूरी दुनिया का 40% डिजिटल पेमेंट भारत में हो रहा है और स्किल इंडिया से नौजवानों को कौशल सिखाया जा रहा है। अगर टेक्नॉलॉजी की बात करें तो भारतीयों ने इंजीनियरिंग और टेक्नॉलॉजी के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के दम पर न केवल अपना लोहा मनवाया है बल्कि कई स्थानों पर ऐसी स्थिति पैदा हुई है कि अगर भारतीय न हो तो कंपनियों का काम ठप हो जाए। जब मैं नवाचार की बात करता हूं तो गूगल, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, एडोब, IBM, मास्टरकार्ड जैसी बहुराज्य दफ्तर में केवल भारतीय ही नज़र आएंगे। इन कंपनियों के डेवलपमेंट लैब से लेकर बोर्ड रूम तक आज भारतीय आसीन हैं।

मध्य प्रदेश के इंदौर में होने वाले 17वें प्रवासी भारतीय दिवस में शामिल होने के लिए गुयाना के राष्ट्रपति डॉ मोहम्मद इरफान अली भी भारत में हैं। वह रविवार सुबह साढ़े दस बजे इंदौर के लिए रवाना हुए। आठ से 10 जनवरी तक अपनी भारत यात्रा के दौरान वह दिल्ली, इंदौर, बेंगलुरु, कानपुर, आगरा और मुंबई सहित कुल छह शहरों की भी यात्रा करेंगे। विदेश मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, इंदौर में होने वाले 17वें प्रवासी भारतीय दिवस के मुख्य अतिथि मोहम्मद इरफान अली ही है।

राष्ट्रपति इरफान अली इस दौरान इंदौर में विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ भी बैठक करेंगे, जबकि वह नौ जनवरी यानि सोमवार को 17वें प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) सम्मेलन 2023 के उद्घाटन सत्र में भाग लेंगे। मालूम हो कि इस सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। इस सम्मेलन को मुख्य अतिथि मोहम्मद इरफान अली और विशिष्ट अतिथि के रूप में भारत आए सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिकाप्रसाद संतोखी द्वारा संबोधित किया जाएगा। जबकि मोहम्मद इरफान अली का पीएम मोदी से नौ जनवरी को मिलने को प्रोग्राम तय है। 

कार्यक्रम के पहले दिन केंद्रीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, खेल एवं युवा मामले के मंत्री अनुराग ठाकुर भी मौजूद रहे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रविवार को विदेश मंत्री डॉ जयशंकर ने कहा- भारत में दुनिया का सबसे बड़ा डायस्पोरा है और कई लोग कहेंगे कि सबसे प्रतिभाशाली हैं। लेकिन हमारे बारे में सबसे अनोखी बात यह है कि विदेशों में समुदाय और मातृ भूमि के बीच संबंध बहुत गहरा है। हमारा प्रयास प्रवासी भारतीयों के लिए अपने समर्थन को अधिक से अधिक करना है। हमारा लक्ष्य ऑनलाइन तंत्र के माध्यम से शिकायतों के निवारण पर ध्यान केंद्रित करना है। मुझे विश्वास है कि देश और विदेश में भारतीय युवा इस देश के विकास को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाएंगे। 

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी अपने संबोधन में कहा- युवा देश की सबसे अधिक उत्पादक और गौरवशाली संपत्ति है। युवाओं में ऊर्जा है, नवप्रवर्तन का जुनून है। हम रोजाना युवा पीढ़ी की प्रेरक कहानियों से रूबरू होते हैं जो कुछ नवोन्मेषी लाते हैं और क्रियान्वित करते हैं।

भारतीय प्रवासी दिवस (पीबीडी) में क्या है खास?

दरअसल, 9 जनवरी को भारतीय प्रवासी दिवस (पीबीडी) मनाया जाता है। इस बार यह यह भव्य आयोजन मध्य प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी इंदौर में 8 से 10 जनवरी तक आयोजित हो रहा है। यह 17वां प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन है, जो कि मध्य प्रदेश सरकार के साथ साझेदारी में आयोजित किया जा रहा है। इस पीबीडी सम्‍मेलन का विषय “प्रवासी: अमृत काल में भारत की प्रगति में विश्वसनीय भागीदार” रखा गया है।

मालूम हो कि पिछले दो सालों से कोरोना के कारण आयोजित नहीं हो पा रहा था। लेकिन इस बार, प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के अंतिम दिन तीन देशों के राष्ट्रपति एक साथ इंदौर में मौजूद रहेंगे। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी और गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली भी अतिथि के रूप में रहेंगे। भारत की राष्ट्रपति दोनों राष्ट्राध्यक्षों के साथ अलग-अलग मुलाकातें भी करेंगी। 17वें प्रवासी भारतीय दिवस के आयोजन का सिलसिला 8 जनवरी से शुरू होगा। इस दिन अतिथि के रूप में आस्ट्रेलिया की सांसद जेनेटा मेस्क्रेंहेंस मंच पर देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ मौजूद रहेंगी। दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, दोनों प्रवासी विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के साथ मंच पर मौजूद रहेंगे।

गुयाना और सूरीनाम के राष्ट्राध्यक्षों का शामिल होना गर्व का विषय

यह सच में गर्व का विषय है कि गुयाना और सूरीनाम के राष्ट्रपति भी प्रवासी सम्मेलन में शामिल रहेंगे। इन दोनों देशों में 150 साल से भी पहले भारतीय गिरमिटिया मजदूर के रूप में चले गए थे।

ब्रिटेन को 1840 के दशक में गुलामी प्रथा का अंत होने के बाद श्रमिकों की जरूरत पड़ी जिसके बाद भारत से मजदूर बाहर के देशों में जाने लगे। भारत के बाहर जाने वाला प्रत्येक भारतीय अपने साथ रामचरित मानस,हनुमान चालीसा आदि के रूप में एक छोटा भारत ले कर जाता था। इसी तरह भारतवंशी अपने साथ तुलसी, रामायण, भाषा, लोकगीत खानपान एवं परंपराओं के रूप में भारत की संस्कृति ले कर गए थे। उन्हीं ही मजदूरों की संतानों के कारण फीजी, त्रिनिडाड, गयाना, सूरीनाम और मारीशस जैसे देश लघु भारत के रूप में उभरे।

इन देशों में ले जाए गए मजदूरों से गन्ने के खेतों में काम करवाया जाता था। इन श्रमिकों ने कमाल की जीवटता दिखाई और घोर परेशानियों से दो-चार होते हुए अपने लिए जगह बनाई। इन भारतीय श्रमिकों ने लंबी समुद्री यात्राओं के दौरान अनेक कठिनाइयों को झेला। अनेकों ने अपनी जानें भी गवाई I अपने देश से हजारों किलोमीटर दूर जाकर बसने के बावजूद इन्होंने अपने संस्कारों को छोड़ा नहीं। इनके लिए अपना धर्म, भाषा और संस्कार बेहद खास थे।

प्रवासी भारतीय दिवस: पुरखों की भूमि से जोड़ता सम्मेलन

प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का आयोजन बहुत जरूरी है। भारत उन भारतीयों से दूर नहीं जा सकता जो अपनी जन्मभूमि या पुरखों की भूमि को छोड़कर अन्य जगहों में बस गए हैं।  भारत से बाहर जाकर बसे भारतवंशी और प्रवासी भारतीय (एनआरआई) देश के स्वतः स्फूर्त ब्रांड एंबेसेडर हैं। यह कहना होगा कि देश में नरेन्द्र मोदी सरकार के नेतृत्व में  सरकार बनने के बाद विदेश नीति के केन्द्र में आ गए हैं विदेशों में बसे भारतीय। मोदी सिडनी से लेकर न्यूयार्क और नैरोबी से लेकर दुबई जिधर भी गए वे वहां पर रहने वाले भारतीय मूल के लोगों से गर्मजोशी से मिले। उनसे पहले यह कतई नहीं होता था। वैसे भारतवंशियों से कोई रिश्ता न रखने की यह नीति पंडित जवाहरलाल नेहरू के दौर से ही चली आ रही थी। कहते हैं कि नेहरू जी ने संसद में 1957 में यहाँ तक कह दिया था कि  देश से बाहर जाकर बसे भारतीयों का हमारे से कोई संबंध नहीं है। वे जिन देशों में जाकर बसे हैं, उनके प्रति ही अपनी निष्ठा दिखाएं। यानी कि उन्होंने विदेशों में उड़ते अपने पतंग की डोर स्वयं ही काट दी थी। उनके इस बडबोलेपन से विपक्ष ही नहीं तमाम राष्ट्रवादी कांग्रेसी भी आहत हुए थे। उन्हें ये सब कहने की आवश्यकता तक नहीं थी। जो भारतीय किसी अन्य देश में बस भी गया है, तब भी वह भावनात्मक स्तर पर तो भारतीय ही रहता है जिंदगीभर। नेहरू जी की सोच के जवाब में मैं यहां पर अवतार सिंह सोहल तारी का अवश्य जिक्र करूंगा। सारी दुनिया के हॉकी प्रेमी अवतार सिंह सोहल तारी का नाम बड़े सम्मान से लेते हैं। उन्हें फिलवक्त संसार का महानतम सिख खिलाड़ी माना जाता है। उन्होंने 1960, 1964, 1968 और 1972 के ओलंपिक खेलों के हॉकी मुकाबलों में केन्या की नुमाइंदगी की है। फुल बैक की पोजीशन  पर खेलने वाले तारी तीन ओलपिंक खेलों में केन्या टीम के कप्तान थे। वे लगातार भारत आते रहते हैं। वे कहते हैं कि मैं पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ के पदाधिकारी के रूप में घूमता हूं। मैं हर जगह भारतवंशियों को भारतीय टीम को सपोर्ट करते हुए ही देखता हूं। वे उस देश की टीम को  सपोर्ट नहीं करते जिधर वे या उनके परिवार लंबे समय से बसे हुए हैं। मुझे लगता है कि भारतवंशियों के लिए भारत एक भौगोलिक एन्टिटी ( वास्तविकता) ही नहीं है। ये समझना होगा। अगर बात सिखों की करूं तो भारत हमारे लिए गुरुघर है। इसलिए इसके प्रति हमारी अलग तरह की निष्ठा रहती ही है। शेष भारतवंशियों के संबंध में भी कमोबेश यही कहा जा सकता है। इसलिए वे केन्या, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन वगैरह में बसने के बाद भी अपने को भारत से दूर नहीं कर पाते। इसका उदाहरण हमें इंगलैंड, आस्ट्रेलिया या दक्षिण अफ्रीका में देखने को मिलता है। इन देशों में बसे भारतवंशियों का समर्थन स्थानीय टीम के साथ नहीं होता। हो सकता है कि आने वाले 50-60 वर्षों के बाद भारतवंशियों की सोच बदले। हालांकि वहां बसे भारतीय उन देशों के निर्माण में अपना अहम रोल निभा रहे हैं।

खैर,प्रवासी सम्मेलन में उन भारतवंशियों को भी आमंत्रित किया जाना चाहिए जो खेल,बिजनेस, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं।  दुनिया के चोटी के भारतवंशी जैसे विश्व विख्यात फीजी के गॉल्फर विजय सिंह तथा फ्रांस की फुटबॉल टीम के खिलाड़ी रहे विकास धुरासू जैसे प्रख्यात प्रवासी भारतीय भी प्रवासी सम्मेलन में आते तो अच्छा होता। काश! कभी सलमान रश्दी को बुलाया गया होता ? मुझे नहीं लगता कि कभी महान लेखक वी.एस.नॉयपाल को बुलाने के बारे में किसी ने सोचा हो? साउथ अफ्रीका से नेल्सन मंडेला के साथी मैक महाराज और उन पर फिल्म बनाने वाले अनंत सिंह के भी सम्मेलन में आने की कोई खबर नहीं है। प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के दौरान सात समंदर पार बसे भारतीयों के मसलों को हल करने पर तो विचार होगा ही। ख्याति प्राप्त प्रवासियों का उचित सम्मान भी होना चाहिये I

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-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via Twitter @shahidsiddiqui

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