“भारत जोड़ो यात्रा” अब यूपी में, जयंत ने कहा- ‘तप कर ही धरती से बनी ईंटें छू लेती हैं आकाश!

जैसे ही भारत जोड़ो यात्रा  उत्तरप्रदेश में अपनी दस्तक दी, आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने यात्रा का समर्थन करते हुए इस अभियान को लोगों को एक सूत्र में जोड़ने वाला करार दिया। जयंत चौधरी ने यात्रा के समर्थन में ट्वीट कर कहा, ‘तप कर ही धरती से बनी ईंटें छू लेती हैं आकाश! भारत जोड़ो यात्रा के तपस्वियों को सलाम! देश के संस्कार के साथ जुड़ कर उत्तर प्रदेश में भी चल रहा ये अभियान सार्थक हो और एक सूत्र में लोगों को जोड़ते रहें!’

हालंकि, इससे पहले भारत जोड़ो यात्रा में जयंत चौधरी ने शामिल होने से मना कर दिया था।  कांग्रेस पार्टी की तरफ से उन्हें यात्रा में शामिल होने के लिए न्योता दिया गया था, लेकिन जयंत ने यात्रा में आने से मना करते हुए कहा था कि उनके कुछ दूसरे राजनीतिक कार्यक्रम हैं, ऐसे में राहुल के साथ नहीं चल सकते।

दरअसल 7 सितम्बर से शुरू हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मंगलवार को उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर गई है, जिसमें राहुल गांधी के साथ पार्टी के कई वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ता और समर्थक शामिल हैं। केंद्र की सत्ता तक पहुंचने के लिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नए सिरे से रणनीति तैयार कर रही है। खासकर 1990 से पहले वाला अपना खोया वोट बैंक फिर से जुटाना चाहती है।

यह यात्रा मंगलवार सुबह क़रीब 10 बजे दिल्ली के कश्मीरी गेट के निकट जमुना बाज़ार से रवाना हुई और दोपहर तक उत्तर प्रदेश के लोनी (गाज़ियाबाद) पहुंच गई जहां से यह देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में दाख़िल हो गई।

‘भारत जोड़ो यात्रा’ सात सितंबर को कन्याकुमारी से आरंभ हुई थी और गत 24 दिसंबर को दिल्ली पहुंची थी। नौ दिनों के विराम के बाद आज यह फिर से आरंभ हुई है और उत्तर प्रदेश के बाद हरियाणा, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर जाएगी।

कांग्रेस के संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने सोमवार को बताया था कि उत्तर प्रदेश में यह यात्रा पांच जनवरी तक रहेगी। छह जनवरी को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ हरियाणा में प्रवेश करेगी जहां यह 10 जनवरी तक रहेगी। इसके बाद यह यात्रा 11 जनवरी को पंजाब में प्रवेश करेगी तथा एक दिन के लिए 19 जनवरी को हिमाचल प्रदेश से भी गुज़रेगी।

वेणुगोपाल के अनुसार, 20 जनवरी को यह यात्रा जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करेगी। 30 जनवरी को श्रीनगर में राहुल गांधी तिरंगा फहराएंगे और वहीं इस यात्रा का समापन होगा।

बता दें कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने गत शनिवार को देश में भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर ‘अंडरकरंट’ (माहौल) होने का दावा किया था और उन्होंने कहा था कि देश को वैकल्पिक दृष्टिकोण देने के लिए विपक्ष को एकजुट होना होगा।

कांग्रेस पार्टी के अनुसार सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में यूपी में शामिल होने के लिए सभी विपक्षी पार्टियों के अध्यक्षों को न्योता दिया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी, बसपा अध्यक्ष मायावती को न्योता है।

इसी की प्रतिक्रिया के तौर पर मगंलवार को आरएलडी प्रमुख ने भारत जोड़ो यात्रा पर अपना समर्थन जाहिर किया है।जानकारी के अनुसार कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में बागपत, शामली समेत यूपी के कई जिलों में आरएलडी के नेता और कार्यकर्ता शामिल होंगे।

भारत जोड़ो यात्रासे किसको कितना फ़ायदा?

अपार समर्थन और साहस के बावजूद राहुल गांधी इस “भारत जोड़ो यात्रा” से क्या कुछ हासिल कर पाए हैं? ये सवाल अब लाज़िमी हो जाता है जब ये अपने आख़िरी पड़ाव में है। 

हालाँकि,  इतना तो सर्वविदित है कि कांग्रेसियों में ज़रूर  उम्मीदें जगी हैं। 100 दिन से ज़्यादा हो चुके इस भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा पहलू यह भी है कि ऐसी यात्राएं राजनेता में विश्वास भी बढ़ाती हैं। नेता अपने जीवन काल में फिर चाहे वह चुनाव हारे या जीते, लेकिन उसकी आत्मशक्ति में अद्भुत निखार होता है। “भारत जोड़ो यात्रा” से भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है।

भारत में राजनीतिक लोगों की यात्राएं एक तो भारत की असली समझ को विकसित करने में सहायक होती हैं दूसरी ये यात्राएं समाज, देश, दुनिया के बीच बनी नेता की छवि का भी रियल टेस्ट हो जाती हैं। अब तक की यात्राएं देखें तो समझ सकते हैं कि नेताओं ने इनके जरिए पॉलिटिकली हाईजंप तो लिया है।

आज “भारत जोड़ो यात्रा” के इस पड़ाव पर आइए जानते हैं कि   राहुल ने इस यात्रा से क्या खोया और क्या पाया और क्या वे पा सकते हैं। राहुल गांधी भारत के बड़े नेता हैं। उनकी स्वीकार्यता को लेकर भले ही प्रश्न होते रहे हैं, लेकिन बड़ी पार्टी के बड़े नेता को लेकर कोई संशय नहीं है। अगर संक्षेप में पूरी यात्रा को समेटें तो पाते है कि राहुल गांधी ने इस यात्रा में कई ऐसी चीजें हासिल की हैं, जिनका काट किसी के पास फिलहाल नहीं है। वो इस प्रकार है…

जैसा कि राहुल पर यह इल्जाम लगता रहा है कि वे ठहरते नहीं। चुनावों के तुरंत बाद छुट्टियां मनाने चले जाते हैं। इस यात्रा ने उनकी यह छवि तोड़ी है। जिसकी वजह से उन्हें एक अथक नेता के तौर पर देखा जा रहा है। 

इसके अलावा राहुल की छवि अपरिपक्व की भी बनी हुई है। जिसे तोड़ने में वे कामयाब नजर आ रहे हैं। वे इस दौरान निर्मल नेता के रूप में उभर रहे हैं। इसके साथ-साथ समाज के हर वर्ग से मिलने के कारण उनकी छवि इस यात्रा में समाज की अच्छी समझ रखने वाले नेता की भी बन रही है।

सबको साथ लेकर चलने की कोशिश के मूलमंत्र के साथ राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से यह छवि प्रमाणित हो रही है।अब लोग उन्हें  सामाजिक समझ वाले नेता के रूप में भी देखने लगे हैं।

मौजूदा हिमाचल, गुजरात जैसे अहम चुनावों के दौरान भी राहुल ने अपनी यात्रा को जारी रखने के फ़ैसले ने भी उन्हें सर्वकालिक नेता के रूप में स्थापित किया है। इससे उनकी छवि चुनावी नेता से ज्यादा पूर्णकालिक नेता की बनी, जो सिर्फ़ चुनाव के लिए नहीं बना है।

शारीरिक रूप से नौजवान नेता, जिसे बिजनेस बाजार की समझ है

राहुल गांधी की छवि पर लगी अपरिपक्वता की मुहर को वे साफ करते हुए शारीरिक रूप से भी बलिष्ठ नौजवान नेता की बनाने में कामयाब हैं। वे युवा हैं यह उनकी थकानमुक्त यात्रा सिद्ध कर रही है।

उनकी यात्रा में आरबीआई गवर्नर का साक्षात्कार दिखाता है कि वे बिजनेस, बाजार को भी अच्छी तरह से समझते हैं। विशेषज्ञों को मोबलाइज कर सकते हैं।

वैसे तो भारत में प्रेसप्रिय नेताओं में इस वक्त सबसे ऊपर मोदी हैं। लेकिन  इंदौर की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया है।  विवादों से तो बहुत से नेता प्रेसप्रिय रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी अब मोदी के बाद दूसरे ऐसे नेता हैं, जो निर्विवाद रूप से प्रेस के प्रिय नेता बनकर उभर रहे हैं। इंदौर की प्रेस कॉन्फ्रेंस और सधी हुई बातें इसका प्रमाण हैं।

दूसरी तरफ़, वे अपनी यात्राओं में कांग्रेस के ही नेताओं को डांट, डपट भी करते देखे गए हैं, जहां वे असहमत हैं वहां वे साफ कह रहे हैं। इससे सिद्ध हो रहा है कि वे एक अच्छे प्रशासक भी हैं। नए भारत में जोड़-तोड़ की सरकारों के लिए स्थान कम हो रहा है। ऐसे में जो आएगा बहुमत से ही आएगा। क्योंकि लोग करीब से बहुमत की सरकार की ताकत और काम देख रहे हैं। ऐसे में राहुल की यह यात्रा कांग्रेस के लिए संजीवनी सिद्ध होगी। 2024 में वे भले न जीतें, लेकिन देश में एक मजबूत विकल्प बनकर तो उभर रहे हैं। यह ऐसा विकल्प भी ऐसा विकल्प नहीं जो विकल्पहीनता में चुना जाए, बल्कि स्वमेव, स्वस्फूर्त चुना जा सकने वाला विकल्प। हल्के-फुल्के अंदाज में कहें तो वे कुंवारे हैं और दाढ़ी भी बढ़ा रखी है। पैदल चल ही रहे हैं। सकारात्मकता से सबसे मिल ही रहे हैं और देश को अपना एक विजन भी बता ही रहे हैं। ऐसे में कहना ग़लत नहीं होगा कि वे पीएम मोदी के विकल्प बनने की ओर से बढ़ चुके हैं।

-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via Twitter @shahidsiddiqui

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