श्रीलंका में अब जनता ही जनार्दन, ऐतिहासिक मोड़ पर पहुँचा देश!

कोलंबो: महज दो साल में अकूत बहुमत से सत्ता हासिल करने वाला परिवार किस तरह से सबसे बड़े विलेन के रूप में जनता में बैठ गया, यह विकासक्रम बहुत कुछ कहता है।

श्रीलंका में राजपक्षे जिस तरह से तमिल इलम का खौफनाक ढंग से संहार करके सत्ता में भारी बहुमत के साथ आए थे, उस समय शायद ही किसी ने ये सोचा होगा कि उनका हश्र यह होगा। श्रीलंका में लगातार हो रहे प्रदर्शन के बीच मंगलवार देर रात आख़िरकार राष्‍ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा।

साल २०२० में यानी दो साल पहले ही राजपक्षे की पार्टी श्रीलंका पीपुल्स फ्रंट ने २२५ सीटों में से १४५ सीटें जीती थी, साथ में पांच सीटें उनके सहयोगी दलों को मिली थीं।

राजपक्षे ने अपने पूरे शासनकाल में सबसे पहले अल्पसंख्यकों पर हिंसा का जो सिलसिला शुरू किया, वह बेहद खूनी और हिंसक रूप लिए हुआ था। जिस तरह से अपने शासनकाल में २००९ में तमिल ईलम-लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) का जिस अमानवीय ढंग से सफाया किया, उसकी दुनिया भर में आलोचना हुई।

राजपक्षे के खिलाफ युद्ध अपराध का मामला दर्ज करने की, अंतर्राष्ट्रीय जांच की मांग भी लंबित है। लेकिन इसकी बदौलत, श्रीलंका में राजपक्षे ने बड़ा बहुमत हासिल किया। लेकिन नफ़रती एजेंडा रुका नहीं। श्रीलंका के दूसरे अल्पसंख्यक समूहों—मुसलमानो-ईसाइयों के खिलाफ नफरत औऱ हिंसा सरकारी एजेंडे पर रही।

लेकिन इस नफरती एजेंडे ने देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचा दिया। एक तानाशाही सरकार किस तरह से एक के बाद एक जनविरोधी कदम उठाती है—इसे भी श्रीलंका की राजपक्षे सरकार ने दिखाया। लोग इन विनाशकारी नीतियों से त्राहि-त्राहि करते रहे—खाने को अनाज नहीं, ईंधन नहीं, पेट्रोल-डीजल नहीं, नौकरी नहीं—यानी पूरी तरह से तबाही।

और आख़िरकार आज देश की जनता सड़कों पर आने को मजबूर हो गई। और नतीजा ये हुआ कि बुधवार देर रात राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे अपनी पत्‍नी और बॉडीगार्ड के साथ श्रीलंका की वायुसेना के विशेष विमान से मालदीव की राजधानी माले भागना पड़ा।

हालांकि, गोटाबाया राजपक्षे के मालदीव की राजधानी माले में पहुंचने पर भी उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। मालदीव में भी काफी संख्या में श्रीलंका निवासी बसे हैं, जिन्होंने उनके पहुंचते ही उनके ख़िलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया और GO HOME RAJAPAKSAS की तख्तियां दिखाईं। मालदीव की मालदीवस नेशनल पार्टी (MNP) ने इस बात पर गहरी नाराजगी दर्ज कराई है कि आखिर क्यों मालदीव सरकार ने श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया को उनके देश में आने की इजाजत दी।

ऐसे देखा जाए तो मालदीव में प्रदर्शन और राजपक्षे का विरोध श्रीलंका के मुकाबले कुछ नहीं है। ये वक्त के साथ शांत भी पड़ सकता है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक गोटाबाया राजपक्षे के पास यूएई जाने का भी विक्लप है। इसी बीच श्रीलंका के सोशल मीडिया में दावा किया जाने लगा कि भारत ने गोटाबाया को मालदीव भागने में मदद की। हालाँकि इस अफवाह पर भारतीय उच्‍चायोग ने तत्‍काल ट्वीट करके इसका पुरजोर खंडन किया है।

इससे पहले श्रीलंका में आर्थिक और राजनीतिक संकट के बीच जनता ने जब आक्रामक रुख अपनाकर राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा कर लिया तो राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने ऐलान किया था कि वह बुधवार को इस्तीफा दे देंगे। लेकिन, उन्होंने यूटर्न ले लिया था और इस्तीफा देने के लिए शर्त रख दी थी। उन्होंने संकेत दिए थे कि जब तक वह और उनका परिवार श्रीलंका से सुरक्षित नहीं निकल जाएगा, वह इस्तीफा नहीं देंगे। इसी बीच मंगलवार की आधी रात उनके भागने की ख़बर आ गई। और जिस प्रकार तेजी से श्रीलंका में घटनाएं घट रही हैं, इससे साफ है कि आंदोलन ने जीत की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। जिस तरह का जन दबाव है, उसमें सत्ता हस्तांतरण के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। ताज़ा घटनाक्रम के मुताबिक़ राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के मालदीव जाने के बाद श्रीलंका में बुधवार को आपातकाल की घोषणा कर दी गई। साथ ही श्रीलंका के राजनीतिक दलों ने एक सर्वदलीय सरकार बनाने और दिवालिया हुए देश में अराजकता फैलने से रोकने के लिए २० जुलाई को नए राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए प्रयास भी तेज कर दिए हैं।

ग़ौरतलब है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन में उठा जन-तूफान, ईंधन की कमी के कारण चल रहे आर्थिक संकट की परिणति था। लाखों श्रीलंकाई लोगों को लगता है कि अब उनके सामने कोई रास्ता नहीं है और इसलिए उन्हें भविष्य का डर सता रहा है।

इससे पहले श्रीलंका की राजधानी कोलंबो के ठीक बाहर रहने वाली एक महिला प्रदर्शनकारी ने कहा, “यहां जीवन और मृत्यु की स्थिति पैदा हो गई है। कोई नौकरी नहीं, भोजन खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं और न ही देश से बाहर निकलने का कोई रास्ता बचा है। हमें रात में नींद नहीं आती है। यह मेरे जीवन में अब तक का सबसे बुरा वक़्त है। मैं अपना मासिक किराया भी नहीं दे सकती हूँ।”
मौजूदा आर्थिक उथल-पुथल के चलते अपने तीन बच्चों को पालने की कोशिश कर रही इस महिला प्रदर्शनकारी की भी हालत अन्य लाखों श्रीलंकाई लोगों की तरह ही है, जो अपने भविष्य के बारे में अनिश्चित है। आर्थिक और राजनीतिक संकट के बीच श्रीलंका के अधिकांश स्कूल और संस्थान बंद हैं, और साथ ही इंटरनेट या विश्वसनीय बिजली संवाएं भी ठप पड़ी हैं।

मालूम हो कि ९ जुलाई का जन-विरोध आर्थिक मंदी का परिणाम था जिसने ईंधन, भोजन और अन्य आवश्यकताओं की तीव्र कमी को जन्म दिया था। तकरीबन एक साल से अधिक समय से जनता जिंदा रहने के लिए संघर्ष करती रही और तानाशाही सरकार मगन रही। आज हालात ये हैं कि कोलंबो में लोगों को अपने गाड़ी के लिए कोई ईंधन उपलब्ध नहीं है। उन्हें चार दिनों तक कतार में लगना होता है और तब जाकर पांचवें दिन ही ईंधन मिलता है। और एक लीटर पेट्रोल की कीमत लगभग ४९० श्रीलंकाई रुपये (यानि १.३३ यूरो) है। देश में बस, ट्रेन और मेडिकल ज़रुरतों से जुड़े वाहनों के लिए भी ईंधन नहीं बचा है। अधिकारियों का कहना है कि आयात के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा अब नहीं बची है। ईंधन की कमी से पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में बहुत बढ़ोतरी हो रही है। जून के आख़िरी हफ़्तों में सरकार ने ग़ैर -जरूरी वाहनों के लिए ईंधन की बिक्री पर रोक लगा दी थी।

नतीजा ये है कि गैस से खाना बनाने वाले अब मिट्टी का चूल्हा लेने पर मजबूर हैं। कई परिवार को तो अब दिन में तीन बार की जगह अब केवल दो बार ही खाना नसीब हो रहा है।स्थानीय लोगों का मानना है कि यह सब राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के कुप्रबंधन के कारण हुआ है। लोगों का विरोध प्रदर्शन करने के लिए मीलों पैदल चलना और अधिकारियों का इस्तीफा एक अस्थायी जीत के तौर पर देख रहे है।

हालांकि विरोध तो कई महीनों से चल रहा था, लेकिन स्थिति तब और गंभीर हो गई जब शनिवार को हजारों लोगों ने महल की तरफ मार्च किया। सैनिकों ने हवा में गोलियां चलाईं, गुस्साई भीड़ को राष्ट्रपति भवन पर हावी होने से रोकने की कोशिश की, लेकिन प्रदर्शनकारी अंततः महल में घुस ही गए। सोशल मीडिया पर जारी तस्वीरों में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स तोड़ते हुए और सरकारी घरों में आग लगाते हुए दिख रहे थे। बाद में, विभिन्न प्रसारकों के वीडियो में प्रदर्शनकारियों को महल में जिम, स्विमिंग पूल और रसोई का इस्तेमाल करते हुए भी दिखाया गया था।

हालांकि, ये तूफान पूर्व प्रधान मंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफा देने के ठीक दो महीने बाद आया है, जिससे सरकार समर्थक और सरकार विरोधी समूहों के बीच देशव्यापी हिंसा शुरू हो गई थी, जिसमें नौ लोग मारे गए थे और कई ज़ख़्मी हो गए थे। ऐसी ख़बर है कि, इस सप्ताह के अंत में, गोटबाया राजपक्षे अपनी सुरक्षाकर्मियों के साथ महल से गायब हो गए हैं, और वर्तमान में उनका ठिकाना अज्ञात है। लेकिन स्थानीय मीडिया ने रविवार को कहा कि राष्ट्रपति काम पर वापस आ गए हैं और उन्होंने अधिकारियों को गैस वितरण में तेजी लाने का आदेश दिया है।

हालाँकि, शनिवार के विरोध प्रदर्शन में कोलंबो के तीन सबसे महत्वपूर्ण स्थानों पर लोगों ने हंगामा किया। राष्ट्रपति भवन के अलावा, प्रधान मंत्री के निजी आवास और राष्ट्रपति सचिवालय पर भी हमले हुए, जहां से राष्ट्रपति काम करते हैं। हालात ऐसे थे कि लोगों को पुलिस, विशेष कार्यबल और सेना के प्रतिरोध को तोड़ना पड़ा। यह उन तथ्यों का परिणाम है कि लोग अपनी बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं और बिना आकांक्षाओं के जीने को मजबूर हो गए हैं।

श्रीलंका के लोग अब गोटबाया राजपक्षे पर से अपना भरोसा पूरी तरह खो दिया है।
शनिवार के विरोध के बाद, देश के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भी एक सर्वदलीय सरकार का मार्ग प्रशस्त करते हुए पद छोड़ने पर सहमति व्यक्त की थी। विक्रमसिंघे को केवल मई में ही नियुक्त किया गया था और वर्तमान में वह वित्त मंत्रालय भी संभाल रहे हैं। इस बीच, रॉयटर्स ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, श्रीलंका की राजनीतिक उथल-पुथल के समाधान की उम्मीद कर रहा है जो एक बेलआउट पैकेज पर बातचीत को फिर से शुरू करने की राह पर है।  १९४८ में स्वतंत्रता हासिल करने के बाद से श्रीलंका वर्तमान में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है। श्रीलंका, अप्रैल में अपने विदेशी ऋण को लौटा नहीं पाया था, और देश के २२ मिलियन लोगों को इसके दंश को तब झेलना पड़ा, जब सरकार के पास खाद्य सामग्री, ईंधन और दवा जैसे आवश्यक सामान को आयात करने के विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो गया था, जिससे लोगों को महीनों तक बढ़ती मुद्रास्फीति और लंबी बिजली कटौती का सामना करना पड़ा।

ताज़ा ख़बरों के मुताबिक़, श्रीलंका की सरकार पर विदेशी कर्ज़ बढ़कर ५१ बिलियन डॉलर हो गया है। इसमें से ६.५ बिलियन डॉलर चीन का है और दोनों देश इसे लेकर फिर से विचार कर रहे हैं। इस साल श्रीलंका को अपने कर्ज़ के लिए ७ बिलियन डॉलर का भुगतान करना होगा। विश्व बैंक श्रीलंका को ६०० मिलियन डॉलर का उधार देने के लिए सहमत हो गया है। भारत ने १.९ बिलियन डॉलर का वादा किया है और वो आयात के लिए अतिरिक्त १.५ बिलियन डॉलर उधार दे सकता है। हालाँकि प्रमुख औद्योगिक देशों के समूह G7 जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं, उन्होंने भी कहा है कि वे ऋण से राहत में श्रीलंका की मदद करेगा।

-डॉ. म शाहिद सिद्दीक़ी
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