शीतकालीन सत्र: दूसरे दिन भी दोनों सदनों में जमकर हंगामा, राज्यसभा से विपक्ष का वॉकआउट

नई दिल्ली- संसद के शीतकालीन सत्र के पहला और दूसरा दिन हंगामे के भेंट चढ़ा। लेकिन विपक्षी एकजुटता में दरार दिखी, जिसके लिए आने वाले दिनों में कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष कुछ अलग रणनीति आजमा सकता है।

कई मुद्दों पर सरकार को घेरने को आतुर विपक्ष की संसद में अब क्या रणनीति होगी, इस पर सुबह मंथन भी हुआ।

इसके बाद संसद के दोनों सदनों से बिना बहस के तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने वाले विधेयक को पास कराने और राज्यसभा में 12 विपक्षी सांसदों के निलंबन के विरोध में मंगलवार को कांग्रेस और 13 अन्य दल संसद के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन राज्यसभा से वॉकआउट किया।

इस मामले पर विपक्षी पार्टियों का कहना था कि सरकार इस निलंबन के ज़रिये विपक्षी पार्टियों की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है जबकि सरकार की तरफ से कहा गया कि विपक्षी पार्टी के सांसदों का जो आचरण था वह संसद की गरिमा गिराने वाला था लिहाजा उसी को देखते हुए यह कार्रवाई की गई है।

सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि सदन चले और आपको सहयोग करें। हम यहां हवामहल में रहने के लिए नहीं आते, हम चर्चा और आम लोगों के मुद्दे उठाने के लिए आते हैं। हम चाहते थे कि कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी विधेयक पर चर्चा हो, लेकिन सरकार नहीं चाहती थी।

टीआरएस के नेता नमा नागेश्वर राव ने कहा, ‘‘सरकार की तरफ से तेलंगाना के किसानों की धान की खरीद नहीं की जा रही है। सरकार बोलती कुछ है और करती कुछ है। हम चाहते हैं कि सरकार की तरफ से इस पर जवाब दिया जाए।

बिरला ने टीआरएस के सदस्यों से कहा कि वे अपने स्थान पर जाएं ताकि आगे सदन चल सके। नारेबाजी जारी रहने पर उन्होंने अपराह्न तीन बजकर करीब 15 मिनट पर कार्यवाही बुधवार सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।

राज्यसभा में नेता सदन पियूष गोयल ने कहा कि अगर निलंबित सांसद अपनी गलती मानते हुए माफी मांगते हैं तो उनके निलंबन के फैसले पर पुनर्विचार हो सकता है।इस वॉकआउट से पहले राज्यसभा में नेता विपक्ष मलिकार्जुन खड़गे ने कहा कि जिस तरह से सांसदों को निलंबित करने का फैसला किया गया वह विपक्ष की आवाज दबाने के लिए किया गया है।

इसके साथ ही मलिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठाया कि अगर घटना मॉनसून सत्र की थी तो फिर कार्रवाई शीतकालीन सत्र में क्यों हुई।

कांग्रेस समेत 16 राजनीतिक दलों के नेताओं ने राज्यसभा के 12 विपक्षी सदस्यों के निलंबन के मुद्दे पर मंगलवार को सभापति एम वेंकैया नायडू से मुलाकात की और इन सदस्यों का निलंबन रद्द करने का आग्रह किया।

सूत्रों के अनुसार राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में पहुंचे नेताओं से नायडू ने कहा कि सदन में सुगम तरीके से कामकाज चले बिना और सदस्यों के आचरण के लिए उनके माफी मांगे बिना यह संभव नहीं है।

जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘किस बात की माफ़ी? संसद में जनता की बात उठाने की? बिलकुल नहीं!

हालाँकि, सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार और विपक्ष के नेताओं के बीच सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर चर्चा हुई और चर्चा के बाद उम्मीद जगी की अब यह गतिरोध खत्म हो सकता है। अगर ये गतिरोध खत्म होता है तो संसद के शीतकालीन सत्र में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर शांतिपूर्वक माहौल में चर्चा हो सकती है।

मालूम हो कि मौजूदा शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित सांसदों में कांग्रेस के छह, टीएमसी और शिवसेना के दो-दो और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और सीपीआई (एम) से एक-एक शामिल थे।

हालाँकि, विपक्षी दलों ने इस मामले पर इससे पहले भी बैठक की थी, जिसमें विरोध प्रदर्शन और चर्चा के लिए दबाव बनाने के साथ-साथ शेष शीतकालीन सत्र का बहिष्कार करने के विकल्पों चर्चा की गई थी। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) कांग्रेस के नेतृत्व वाली बैठक में शामिल नहीं हुई।

पार्टी के राज्यसभा नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि इसने अपनी अगली कार्रवाई तय करने के लिए एक अलग बैठक बुलाई थी।मालूम हो कि शेष सत्र के लिए राज्यसभा से निलंबित किए गए 12 सांसदों में टीएमसी के दो सांसद भी शामिल हैं। बता दें कि पहले दिन भी विपक्षी दलों की बैठक से टीएमसी दूर रही थी।माना जा रहा है कि टीएमसी विपक्षी खेमे का नेतृत्व करना चाहती है।

फ़िलहाल, विपक्षी पार्टियों के लिए संसद के शीतकालीन सत्र का बहिष्कार करना एक विकल्प है, लेकिन पार्टियों को योजना के लिए सहमत होना होगा। यह योजना इस बात पर भी निर्भर करेगी कि कृषि विधेयक पर बहस करने में विफल रहने के बाद विपक्षी दलों को संसद में फसल समर्थन की गारंटी के लिए कानून की मांग करने का मौका मिलता है या नहीं। बता दें कि संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार से शुरू हुआ और 23 दिसंबर तक चलेगा।

ग़ौरतलब है कि सरकार तीन विवादित कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा पहले ही कर चुकी है। इससे पहले शीत-सत्र की पूर्व संध्या सरकार की बुलाई सर्व-दलीय बैठक में भी किसानों का मुद्दा ही हावी रहा। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बैठक में शामिल नहीं हुए। वहीं आम आदमी पार्टी ने बैठक का बहिष्कार किया।

उधर विपक्ष के अलावा बीजेपी के साथ दिखने वाली कई पार्टियों ने भी किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग का समर्थन किया था। सर्वदलीय बैठक में कई दलों ने महिला आरक्षण विधेयक को जल्द पेश किए जाने की मांग भी की।

वहीं तृणमूल कांग्रेस और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने फ़ायदा कमा रही सार्वजनिक कंपनियों को ना बेचने की अपील की। विपक्षी दलों ने इस बैठक में महंगाई, बेरोजगारी, पेगासस, महिला आरक्षण बिल, बीएसएफ का क्षेत्र विस्तार के मुद्दों को भी ज़ोर शोर से उठाया।

जबकि इससे पहले कृषि बिल वापस होने पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि यह कानून एक बीमारी थी। अब उसका इलाज हो गया। अब किसानों को सरकार से एमएसपी पर गारंटी चाहिए। चार दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में आगामी रणनीति तय की जाएगी।

इससे पहले उन्होंने कहा कि सरकार सरकार चाहती है कि देश में कोई विरोध प्रदर्शन न हो, लेकिन हम एमएसपी सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा से पहले धरना स्थल नहीं छोड़ेंगे। मालूम हो कि इससे एक दिन पहले रविवार को टिकैत ने मुंबई में महापंचायत में हिस्सा लिया था।

मालूम हो कि राकेश टिकैत देश के अलग-अलग राज्यों में घूम-घूमकर किसानों की महापंचायत करके उनको एकजुट होकर करने का प्रयास कर रहे हैं। लखनऊ, पश्चिम बंगाल, मुंबई, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में जाकर वो पंचायत कर चुके हैं और किसानों को इसके लिए एकजुट होने की अपील कर चुके हैं। इससे साबित होता है कि किसानों को अब भी पूरा भरोसा नहीं है और उन्हें डर है कि कहीं चोर रास्ते से ये तीनों क़ानून फिर तो नहीं आ जाएगा!

पड़ताल करने पर पता चला कि किसानों का डर जायज है। क्योंकि संसद में पारित किये गए क़ानून वापसी के क़ानून में कलाबाजी साफ दिखती है।  कोई 1495 शब्दों के इस रिपील बिल में कानूनों के नाम और अन्य तकनीकी शब्द हटा दिए जाएँ तो आधे से कहीं ज्यादा  (743) शब्द इन तीनो कानूनों को सही और इन्हे किसानों का कल्याण करने का महान काम बताने के लिए खर्च किये गए हैं।

दुनिया के संसदीय लोकतंत्र में शायद ही कहीं ऐसा हुआ हो कि जब कानूनों को वापस लिया जा रहा हो तब भी उनकी इतनी भूरि-भूरि प्रशंसा की जा रही हो । इसके लिए जो “तर्क और फायदे” गिनाये गए हैं उन पर चर्चा करने में समय खर्च करने की कोई आवश्यकता नहीं।  साल भर चला किसान आंदोलन इनकी बखिया पहले ही उधेड़ चुका है।

ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि कैसे इस शीतकालीन सत्र को सरकार हंगामे से बचा पाती है, जब हमलावर विपक्ष के पास कृषि बिल वापसी विधेयक पर बहस की माँग के अलावा, फसल समर्थन की गारंटी के लिए कानून और १२ सांसदों के निलंबन जैसे मुद्दे सामने पड़े हैं।

-डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी

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