विशेष: अरब देशों के साथ भारत के रिश्ते अपने सबसे ऊंचे मुकाम पर, कैसे यूएई बना भारत का सबसे ख़ास?

पिछले महीने ही अयोध्या में नए राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई और  14 फ़रवरी को संयुक्त अरब अमीरात के अबूधाबी में 27 एकड़ ज़मीन पर मंदिर का भारत के प्रधानमंत्री ने उद्घाटन कर डाला। 

यह ज़मीन यूएई के राष्ट्रपति शेख़ मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाह्यान ने लीज़ पर दी है। चुनावी साल में नरेंद्र मोदी के लिए यह अहम इवेंट था। 

दरअसल, साल 2015 में 16 अगस्त को नरेंद्र मोदी ने पीएम के रूप में यूएई का जब पहला दौरा किया था, तो यह भारत के किसी भी प्रधानमंत्री का 34 साल बाद हुआ दौरा था। पीएम मोदी से पहले इंदिरा गांधी 1981 में यूएई गई थीं और  उसके बाद के नौ सालों में यह सातवां मौका है, जब भारत के प्रधानमंत्री UAE की यात्रा पर गए थे। 

इस दौरे में पीएम मोदी और  यूएई के राष्ट्रपति के साथ द्विपक्षीय बैठक भी हुई, जिसमें अलग-अलग क्षेत्रों के लिए क़रीब १० समझौते किए गए। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी बढ़ने का नतीजा है। दोनों देशों के बीच 85 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है। यही नहीं UAE में करीब 35 लाख प्रवासी भारतीय रहते हैं, जो वहां की कुल आबादी की करीब 35 फीसदी है।

साथ ही, भारत के प्रधानमंत्री यूएई के बाद क़तर भी गए थे। पिछले दस सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये दूसरी कतर यात्रा थी। इसकी घोषणा उस समय हुई, जब कतर ने वहां कैद आठ भारतीय पूर्व नौसेनाकर्मियों को रिहा कर दिया और उनमें से सात भारतीय स्वदेश पहुंच गए। यह कतर सरकार का बड़ा कदम इसलिए भी था कि इन भारतीयों पर ऐसा गंभीर आरोप था जिसमें इन्हें निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। इनकी रिहाई ने दोनों देशों के सर्वोच्च नेतृत्व के स्तर पर बने गुडविल को रेखांकित किया। 

साथ ही कतर के इस दोस्ताना रुख का परिणाम पीएम मोदी की इस यात्रा के दौरान रिश्तों को नई ऊंचाई देने वाले समझौतों के रूप में सामने आई।।

अगर ये कहा जाए कि अरब देशों के साथ भारत के रिश्ते अबतक के अपने सबसे ऊंचे मुकाम पर हैं तो गलत न होगा। आखिर खाड़ी के देश मोदी की शीर्ष प्राथमिकता में क्यों हैं? 

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत ही खाड़ी देशों के साथ मजबूत रिश्तों के लिए बेचैनी दिखा रहा। खाड़ी देश भी उसके साथ रिश्तों को एक नई ऊंचाई तक ले जाने को लालायित दिख रहे। आइए समझते हैं कि आख़िर भारत के साथ क्यों दोस्ताना रिश्ता चाहते हैं खाड़ी के देश?

खाड़ी के देश क्यों इतने अहम हैं, ये इससे समझा जा सकता है कि भारत से बाहर जितने भी भारतीय रहते हैं उनमें से एक चौथाई से ज्यादा तो सिर्फ गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) देशों में रहते हैं। दुनियाभर में 3.21 करोड़ भारतीय प्रवासी रहते हैं, इनमें से 90 लाख यानी 27 प्रतिशत सिर्फ जीसीसी देशों में रहते हैं। खाड़ी देशों की बात करें तो सबसे ज्यादा 34.3 लाख भारतीय यूएई में, उसके बाद 25.9 लाख सऊदी अरब में, 10.3 लाख कुवैत, 7.8 लाख ओमान, 7.5 लाख कतर और 3.3 लाख भारतीय बहरीन में रहते हैं। खाड़ी देशों में भारतीय प्रवासियों की विशाल तादाद का पीएम मोदी को राजनीतिक फायदा भी मिलता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में पश्चिम एशिया की यात्रा की, जिसको भारत और उस क्षेत्र के रिश्तों में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और कतर का दौरा किया। UAE में, उन्होंने एक बड़े निवेश समझौते पर हस्ताक्षर किए। 

प्रधानमंत्री की पश्चिम एशिया यात्रा का मुख्य उद्देश्य व्यापार, प्रवासियों और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सहयोग को मजबूत करना था। भारत अरब देशों के सामने खुद को निवेश का एक आकर्षक ठिकाने के तौर पर पेश कर रहा है। उसकी कोशिश खुद को चीन के एक विकल्प के रूप में स्थापित करने की है।

आजादी के बाद, भारत और खाड़ी देशों के बीच संबंध कमजोर पड़ गए थे। लेकिन अब भारत सरकार इन्हें फिर से मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है। आर्थिक मोर्चे पर देखें तो भारत पहले सिर्फ कच्चा तेल खरीदता था और वहां मजदूर भेजता था। अब व्यापार का स्वरूप बदल चुका है। यूएई अब भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात बाजार है और दोनों देशों ने मिलकर साल 2030 तक व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है।

दूसरी तरफ़, पश्चिम एशिया भारत के लिए एनर्जी और ट्रांसमिशन का भी एक प्रमुख स्रोत है। भारत का लगभग 30 प्रतिशत तेल आयात इसी क्षेत्र से होता है। प्राकृतिक गैस की 90 प्रतिशत आवश्यकता खाड़ी देशों से पूरी होती है। लेकिन कोई भी इस क्षेत्र में बदलती भू-राजनीतिक स्थिति को नजरअंदाज नहीं कर सकता।

भारत और मध्य पूर्व देशों के बीच व्यापार बढ़ने के साथ-साथ वहां रहने वाले भारतीयों की संख्या भी बढ़ी है। खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों (बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और UAE) में फिलहाल करीब 90 लाख भारतीय रहते हैं।

इन देशों में रहने वाले भारतीय हर साल भारत में जितना पैसा रेमिटेंस के तौर पर भेजते हैं, उनका तकरीबन आधा तो सिर्फ जीसीसी के देशों से आता है। 2014-15 में भारत को विदेश में रहने वाले अपने नागरिकों से मिले कुल रेमिटेंस का करीब 29 प्रतिशत जीसीसी देशों से आता था जो 2020-21 में बढ़कर 50.3 प्रतिशत हो गया। 2020-21 में भारत को कुल 89,12.7 करोड़ डॉलर का रेमिटेंस मिला था जिसमें साढ़े 4 हजार करोड़ डॉलर सिर्फ जीसीसी देशों से मिला था। 

GCC देशों में UAE के साथ सबसे ख़ास रिश्ता !

अगर पिछले १० साल का आँकलन करें तो हमें पता चलता है कि भारत के प्रधानमंत्री खाड़ी सहयोगी परिषद (GCC) देशों के 13 दौरें कर चुके हैं। इनमें से 7 दौरे तो अकेले यूएई के हैं।जीसीसी देशों में बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई। प्रधानमंत्री मोदी इसके अलावा ईरान, मिस्र और जॉर्डन की यात्रा भी कर चुके हैं।

हालाँकि, चौंकाने वाली एक बात ये भी है कि मोदी के कार्यकाल के दौरान इजरायल के साथ भारत के रिश्ते और मजबूत हुए ही हैं, अरब देशों के साथ ताल्लुकात भी एक नई ऊंचाई पर हैं।

 इजरायल और अरब देशों के बीच छत्तीस के आंकड़े के मद्देनजर दोनों के साथ भारत की दोस्ती कामयाब विदेश नीति की एक नई ही इबारत लिख रही है। साथ ही इजरायल और अरब का संतुलन

बनाने में भी भारत सफल रहा है। जहां एक तरफ़ पिछले साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास के बर्बर हमले को बिना लागलपेट के आतंकी कृत्य बताते हुए निंदा की। वहीं इजरायल की जवाबी कार्रवाई और गाजा में चल रहे युद्ध के बीच कई बार भारत शांति की अपील कर चुका है और गाजा युद्ध के बीच संयुक्त राष्ट्र में कुछ मौकों पर भारत इजरायल के खिलाफ भी वोट दे चुका है।

अब खाड़ी देश, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनना चाहते हैं, भारत में अरबों डॉलर का निवेश कर रहे हैं। यूएई ने पिछले 5 सालों में भारत में करीब 10 अरब डॉलर का निवेश किया है, जबकि सऊदी अरब ने 100 अरब डॉलर निवेश का वादा किया है। पिछले हफ्ते ही भारत ने 2048 तक कतर से लिक्विड नेचुरल गैस (एलएनजी) के आयात को बढ़ाने के लिए 78 अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए। भारतीय कंपनियों को भी खाड़ी देशों में बड़े बुनियादी ढांचे के ठेके मिल रहे हैं। इसके अलावा, मोदी की हालिया यात्रा में हुए समझौतों से भारत और यूएई के बीच व्यापार और सहयोग और मजबूत होने की उम्मीद है। इन समझौतों में निवेश संधि, डिजिटल भुगतान प्रणालियों को जोड़ना और भारत, यूरोप और मध्य पूर्व को जोड़ने वाले व्यापार गलियारे की योजना शामिल है।

हालाँकि, विशेषज्ञों ने भारत -खाड़ी देश के बीच बढ़ती नज़दीकियों को लेकर सावधान रहने की सलाह दे डाली है।   विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्षेत्र में भारत की पहुंच मुख्य रूप से सुन्नी अरब दुनिया तक है। लेकिन पश्चिम एशिया में ईरान के प्रभाव और क्षेत्रीय उथल-पुथल में उसकी मौजूदा भागीदारी को देखते हुए, भारत को सावधान रहना चाहिए।

विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि शिया देशों के साथ हमारा शत्रुतापूर्ण रिश्ता है। दरअसल, भारत में शियाओं की तीसरी सबसे बड़ी आबादी है। इराक, ईरान और सीरिया के साथ हमारे पूर्ण मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। जब भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, तो सीरिया और यमन को छूट दे दी गई। लेकिन हमें ध्यान देना चाहिए कि अरब देश भारत को भविष्य में महत्वपूर्ण और एक उभरती हुई सैन्य शक्ति के रूप में देखते हैं। 

-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X  @shahidsiddiqui

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