नई दिल्ली। आज यानि ४ जुलाई का दिन रवांडा का स्वतंत्रता दिवस और सार्वजनिक अवकाश का दिन है, लेकिन फिर भी इस अवसर पर चिह्नित करने के लिए कोई राष्ट्रीय समारोह आयोजित नहीं किया गया।
इसके बजाय, रवांडा सरकार उस घटना को लिबरेशन डे – या क्विबोहोरा के साथ जोड़ कर दर्शाती है, जैसा कि स्थानीय रूप से जाना जाता है – तीन दिन बाद। इसी तर्ज़ पर दिल्ली स्थित रवांडा उच्चायोग ने भी २८वां लिबरेशन डे मनाया और रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौक़े पर क़रीब २० से अधिक देशों के राजदूत के अलावा बतौर मुख्य अतिथि विदेश राज्य मंत्री मिनाक्षी लेखी भी समारोह में शामिल हुईं।
दरअसल, स्वतंत्रता दिवस को टालना जानबूझकर है क्योंकि यह विभाजन की यादें ताज़ा करता है जिसने लाखों रवांडा के नागरिकों को तीन दशकों से ज़्यादा समय तक निर्वासन के लिए मजबूर कर दिया था।यही नहीं, ये लिबरेशन डे रवांडा गृहयुद्ध में जुवेनल हब्यारिमाना और रवांडा सशस्त्र बलों की पूर्व तानाशाही पर राष्ट्रपति पॉल कागामे के नेतृत्व में रवांडन पैट्रियटिक फ्रंट (आरपीएफ) की जीत की भी याद दिलाता है। आरपीएफ की जीत ने अंततः 1994 में तुत्सी के खिलाफ किए गए नरसंहार को ख़त्म कर दिया, जिसमें हुतु चरमपंथियों ने 100 दिनों में अनुमानित 800,000 तुत्सी और उदारवादी हुतु को मार डाला था। परिणामस्वरूप, 2 मिलियन से अधिक रवांडा देश छोड़कर भाग गए थे।
हालाँकि, सोमवार को आयोजित “लिबरेशन डे – या क्विबोहोरा” में इस प्रकार को कोई ज़िक्र नहीं किया गया। बल्कि, दिल्ली स्थित रवांडा उच्चायोग ने भारत और रवांडा के मज़बूत संबंध को समर्पित कर दिया। इस मौक़े पर भारत में रवांडा उच्चायुक्त जैकलिन ने कहा, “भारत और रवांडा में कई समानताएँ हैं, जहां दोनों के पास परस्पर विकास की अपार संभावनाएँ हैं। पर्यटन उद्योग के साथ साथ ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश को सरकार काफ़ी प्रोत्साहन देती है। रवांडा में सिर्फ़ ६ घंटे में किसी भी कंपनी का पंजीकरण इसकी मिसाल है।”
उधर विदेश राज्य मंत्री मिनाक्षी लेखी ने भी इस मौक़े पर लोगों एवं सरकार को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हम अपने समग्र वैश्विक सामरिक गठजोड़ को मजबूत बनाने की दिशा में मिल कर काम करना जारी रखेंगे।‘‘
लिबरेशन डे – या क्विबोहोरा समारोह के आख़िर में भारतीय और अफ्रीकी सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए गए।
-डॉ. म शाहिद सिद्दीक़ी
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