यूक्रेन में “युद्ध” नहीं “स्पेशल ऑपरेशन”, रूसी विदेश मंत्री ने कहा- भारत का तटस्थ रुख़ सराहनीय !

नई दिल्ली (१ अप्रैल, २०२२) : रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग लंबे समय तक खिंच गई है। न ही रूस पीछे हटने को तैयार है और न ही यूक्रेन झुकने को। ऐसे में जब यूक्रेन में भारी तबाही जारी है, रूस के विदेश मंत्री का भारत आना काफ़ी कुछ कहता है।

ताज़ा हालात को देखते हुए जिस तरह से पश्चिम के देश रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे समय में सर्गेई लावरोफ़ का दौरा काफ़ी महत्वपूर्ण है। हालाँकि, पश्चिमी देश भारत पर दबाव बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

पिछले कुछ दिनों से भारत आ रहे हैं और भारत पर रूस के प्रति अपने रुख़ को बदलने के लिए दबाव बना रहे हैं। भारत ने अभी तक ख़ुद को तटस्थ दिखाने की पूरी कोशिश की है। और रूसी विदेश मंत्री लावरोफ़ और रूस भी सिर्फ़ इतना ही चाहते हैं कि जो रुख़ भारत ने अपनाया है वो उस पर दृढ़ रहे।वैसे पिछले १०-१५ साल पर गौर किया जाए तो हम पाते हैं. कि भारत के पश्चिमी देशों से भी तालुक़्क़ात गहरे भी हुए हैं। चीन के साथ चल रहे तनाव की वजह से ये नज़दीकी पिछले दो-तीन साल में और बढ़ी है। ऐसे में पश्चिमी देशों की अपेक्षा है कि भारत उनकी तरफ़ खड़ा हो और किसी भी सूरत में ऐसा न लगे कि भारत का झुकाव रूस की तरफ़ है।

शीत युद्ध के समय से ही भारत के रक्षा हित रूस के साथ जुड़े ही हुए हैं और रक्षा क्षेत्र में भारत की रूस पर निर्भरता जग ज़ाहिर है। यह तथ्य है कि भारत का लगभग ७० फ़ीसदी सैन्य हार्डवेयर रूस से ही आता है।

ऐसे हालात में ये माना जा रहा है कि भारत अपने रक्षा हितों को प्राथमिकता देते हुए रूस से अपनी दशकों पुरानी मित्रता पर कोई समझौता नहीं करेगा।

दूसरी बड़ी वजह, अमेरिका के नेतृत्व में रूस पर लगाए गए प्रतिबंध भी है। जिसके तहत रूस के कुछ बैंकों को स्विफ़्ट मैसेजिंग सिस्टम से हटा दिया गया है जिसका सीधा असर रूस की अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने की क्षमता पर पड़ा है रूस के विदेश मंत्री लावरोफ़ की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रूसी कच्चे तेल की क़ीमत के भुगतान के लिए रुपया-रूबल भुगतान प्रणाली पर विचार किया जा सकता है। हालाँकि, विशेषज्ञों के मुताबिक़ रुपया-रूबल समझौते और भारत के रूस से तेल ख़रीदने की बातें तो हो रही हैं, लेकिन इन बातों की उतनी अहमियत नहीं है क्योंकि भारत और रूस का व्यापार बहुत ज़्यादा नहीं है।

हाल के दिनों में भारत से जुड़ी कूटनीतिक गतिविधियों में तेज़ी दिखी है। और ऐसे समय में लावरोफ़ का भारत आना कोई इत्तफाक नहीं है, जब ब्रिटेन की विदेश सचिव लिज़ ट्रस और संयुक्त राज्य अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह भारत आए हुए हैं, तो दूसरी तरफ़ जर्मनी और यूरोपीय संघ के राजनयिक दिल्ली का दौरा कर रहे हैं।

ग़ौरतलब है कि भारत ने अब तक यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई की निंदा करने वाले किसी प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में वोट नहीं किया है। लेकिन साथ ही इस संकट से निपटने के लिए वार्ता और शांति का रास्ता अपनाने की पैरवी भी की है, जिसकी एक ख़ास वजह है। क्योंकि अगर रूस और पश्चिमी देशों के रिश्ते और ख़राब होते हैं तब भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी और उस पर दबाव बढ़ सकता है। क्योंकि भारत के ऊपर भी एस-४०० को लेकर प्रतिबंधों की तलवार लटकी हुई है।

इसीलिए भारत की मजबूरी है कि वो दोनों के बीच संतुलन बना कर चले, ताकि वो दोनों तरफ़ दिखे। हालाँकि फिर भी इस पूरे घटनाक्रम के बाद भारत को दूसरे देशों के बारे में दोबारा से आकलन करने की ज़रूरत पड़ेगी। और पश्चिम के देशों को भी भारत के बारे में नया आकलन करना होगा। जिस तरह से पश्चिमी देशों ने व्यापार की भुगतान प्रणाली को एक सामरिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है वो सबके लिए एक सबक है। भारत को भी सोचना होगा कि उसे इन पश्चिमी प्रणालियों पर भविष्य में कितना निर्भर रहना चाहिए।

इसका एक ताजा उदाहरण है रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का गुरुवार को लिया गया फैसला। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने डॉलर की निर्भररता से बचने के लिए ऐलान कर दिया कि अब प्राकृतिक गैस के खरीदारों को रूबल में पेमेंट करनी पड़ेगी।हालाँकि, इस फ़ैसले का असर भारत पर कितना पड़ता है, ये आने वाला वक़्त बताएगा। भारत के दौरे पर पहुँचे रूस के विदेश मंत्री ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए कहा कि भारत को किसी भी सामान की आपूर्ति करने के लिए तैयार रहेंगे जो वो हमसे ख़रीदना चाहते हैं। लेकिन, ये साफ़ होना बाकि है कि पुतिन का ये फ़ैसला भारत पर कितना लागू होता है। उम्मीद है भारत पहुँचे रूस के विदेश मंत्री के साथ मुलाक़ात के दौरान इसकी चर्चा ज़रूर हुई होगी।

दिल्ली पहुँच कर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ सबसे पहले शुक्रवार को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मिले। मुलाक़ात के बाद लावरोफ़ ने कहा है कि भारत और रूस के संबंधों पर दबाव का कोई असर नहीं होगा।

साथ ही उन्होंने यूक्रेन संकट के दौरान भारत के रुख़ की तारीफ़ भी की। लावरोफ़ ने कहा, “इन दिनों हमारे पश्चिमी सहयोगी यूक्रेन संकट में किसी भी सार्थक मुद्दे को कम करना चाहते हैं। भारत ने पूरे हालात को सिर्फ एकतरफ़ा नहीं दिखते हुए, प्रभावी तरीक़े से लिया है, इसके लिए हम भारत की सराहना करते हैं।” रूसी विदेश मंत्री ने आगे ये भी कहा कि इस संकट के समाधान के लिए भारत मध्यस्थता कर सकता है।

तभी दिन में, खबर आई कि रूसी सेना ने चेर्निहीव के एक अस्पताल पर बम बरसाए हैं और कीव के मेयर ने कहा है कि राजधानी में भीषण लड़ाई हो रही है। तो दूसरी ओर, इससे पहले यूरोपीय नेताओं और चीन के शीर्ष नेतृत्व ने भी शुक्रवार को एक वर्चुअल बैठक की।

उन्होंने सवालों का जवाब देते हुए कहा कि हम भारत को किसी भी सामान की आपूर्ति करने के लिए तैयार रहेंगे जो वो हमसे ख़रीदना चाहते हैं। रूस और भारत के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं। लावरोफ़ का ये भी कहना था अगर दिल्ली तेल और हाई-टेक हथियार ख़रीदना चाहता है तो रूस इसके लिए तैयार है। लावरोफ़ ने कहा, “मेरा मानना है कि भारतीय विदेश नीति की ख़ासियत, स्वंतत्रता और राष्ट्र हित के मुद्दों पर केंद्रित रहना है। यही नीति रूस भी अपनाता है और इस वजह से हम बड़े देश, अच्छे दोस्त और वफ़ादार भागीदार हैं।” भारत ने भी अपनी सहमति जताते हुए कहा है कि हम रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रखेंगे।

प्रेस कॉन्फ़्रेंस में रूस-युक्र्रेन युद्ध पर सवाल पूछे जाने पर रूस के विदेश मंत्री लावरोफ़ ने इसे युद्ध मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने यूक्रेन में रूस के हमले को युद्ध न कहकर स्पेशल ऑपरेशन बताया डाला। उन्होंने कहा, “आपने इसे युद्ध कहा जो सही नहीं है, सैन्य ढांचों को निशाना बनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य यूक्रेन की सरकार को किसी भी ऐसे निर्माण से वंचित करना है, जो रूस के लिए ख़तरा है।”

मालूम हौ कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण शुरू करने के बाद से भारत की ये उनकी पहली यात्रा है। भारत आने से पहले लावरोफ़ चीन में थे जहां उन्होंने बुधवार को चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात की थी। और शुक्रवार देर शाम रूस के विदेश मंत्री लावरोफ़ ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाक़ात की।

– डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी ,
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