मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ एक लाख से ज्यादा श्रमिकों ने उठाई आवाज

श्रमिक अधिकारों पर तेज होते हमले के खिलाफ मजदूर अब लॉकडाउन से निकलकर लामबंद होने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों को लेकर प्रतिरोध जताने के बाद तीन जुलाई को देशभर में एक लाख से ज्यादा श्रमिकों ने सड़कों-दफ्तरों पर प्रदर्शन कर आवाज बुलंद की।

प्रदर्शन में कोयला क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ जारी हड़ताल को भी समर्थन दिया गया।
भाजपा समर्थित भारतीय मजदूर संघ के अलावा सभी सेंट्रल ट्रेड यूनियनों के संयुक्त प्रदर्शन में शामिल श्रमिकों ने सरकार पर पूंजीपतियों के हित में काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अब सरकार बिना हिचक खुलेआम आमजन और श्रमिकों के खिलाफ उतर आई है।

राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में मज़दूरों ने दिल्ली के इंडस्ट्रियल इलाके सहित श्रमशक्ति भवन के सामने विरोध प्रदर्शन किया। इसी तरह अलग-अलग बाकी ट्रेड यूनियनों के नेतृत्व ने प्रदर्शनों का मोर्चा संभाला।

श्रमिक नेताओं ने कहा कि लॉकडाउन के बाद फैक्ट्रियां खुल गई हैं, लेकिन अधिकांश जगह नौकरी से निकालकर कम मजदूरी पर लोगों को रखने का सिलसिला चल रहा है। तमाम जगह वेतन कटौती, समय से ज्यादा काम और असुरक्षित तरीके से काम कराया जा रहा है, जिसको लेकर कहीं कोई न सुनवाई है, न कार्रवाई।

भारत में करीब 14 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, यदि इस में हम दिहाड़ी मज़दूरों, ठेका मज़दूरों को शामिल कर देंगे तो यह आकड़ा 24 करोड़ तक पहुंच जाएगा, ये लोग एक समय के खाने के लिए भी मोहताज हैं।

महामारी के समय में सरकार के रवैये को लेकर प्रदर्शनकारी ने कहा कि जब मज़दूरों, गऱीबों को सुरक्षा, भोजन और स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूरत थी, मोदी सरकार ने क्रूरता का रुख अपनाया। जब मज़दूर सड़कों पर मर रहे थे, लोग पैदल चलकर अपने घर जा रहे थे, उस समय मोदी सरकार पूंजीपतियों के लिए ‘अवसर’ भुनाने को उत्साहित कर रही थी।

श्रमिक नेताओं ने कहा, सरकार रेलवे, बंदरगाह, एयर इंडिया, कोयला, डाक, अंतरिक्ष, उर्जा क्षेत्र को निजी हाथों में देने की तैयारी में जुट गई है।

कोयला खदानों को निजी हाथों में सौंपने की पूरी तैयारी करके घोषणा भी कर चुकी है। कोयला क्षेत्र के मजदूर इसका तीन दिन से विरोध करने को हड़ताल पर हैं, जिसको दबाने के प्रयास हो रहे हैं। ये हड़ताल चार जुलाई चलेगी।

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