मप्र में दल-बदल की राजनीति जोरों पर!

भोपाल – मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले दल-बदल की पटकथाएं लिखने का दौर जारी है। आने वाले कुछ दिनों में कई नेताओं के दल-बदल की संभावनाएं बढ़ चली हैं।

मध्यप्रदेश में सरकार बने सवा साल ही हुआ है लेकिन उसकी अस्थिरता की चर्चा जोरों से चल पड़ी है।

कांग्रेस और भाजपा दो सबसे बड़ी पार्टियां हैं, मप्र में लेकिन दोनों को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला।

कांग्रेस को सीटें ज्यादा मिल गई लेकिन सत्तारुढ़ भाजपा को वोट ज्यादा मिले। कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं और भाजपा को 107 ! जो छोटी-मोटी पार्टियां हैं, उनके तीन और चार निर्दलीय विधायकों को मिलाकर कांग्रेस ने भोपाल में अपनी सरकार बना ली।

विधानसभा में कुल 230 सदस्य हैं। दो सीटें अभी खाली हैं याने 228 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस पार्टी का शासन मजे में चल रहा था। मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने कुछ ऐसे कदम भी उठाए हैं, जो भाजपा की सरकार उठाती लेकिन वे सात गैर-कांग्रेसी सदस्य हिलने-डुलने लगे हैं।

एक कांग्रेसी विधायक ने विधानसभा से ही इस्तीफा दे दिया है। भोपाल में इतनी भगदड़ मच गई है कि सभी पार्टियों के नेताओं ने अपने सार्वजनिक कार्यक्रम स्थगित कर दिए हैं।

कुछ सरकार गिराने में व्यस्त हैं और कुछ सरकार बचाने में ! कुछ विधायकों को गुड़गांव और कुछ को बेंगलूर में घेरा गया है। कुछ लापता हैं और कुछ दावा कर रहे हैं कि उन पर फिजूल ही पाला बदलने का शक किया जा रहा है।

यह शक इसलिए भी बढ़ गया है कि मप्र में राज्यसभा के लिए तीन सदस्य तुरंत चुने जाने हैं लेकिन न कांग्रेस और न ही भाजपा के पास इतने विधायक हैं कि वे दो सदस्यों को जिता सकें। एक-एक सदस्य दोनों पार्टी चुन लेगी लेकिन तीसरे सदस्य को चुनने के लिए भी यह जोड़-तोड़ हो रही है।

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