मध्य एशिया शिखर सम्मेलन: ५ देशों के प्रमुख हुए शामिल, क्षेत्रीय संपर्क – सहयोग के लिए रोडमैप पर ज़ोर

दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को मध्य एशिया के पाँच देशों के साथ के पहली बार एक शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की। भारत ने इस समिट की मेज़बानी ऐसे समय किया, जब कज़ाख़स्तान गंभीर राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहा है और इस इलाक़े का पावर सेंटर रूस यूक्रेन को लेकर दो-दो हाथ करने को तैयार है।

ग़ौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता तालिबान के हाथों में आ गई थी और उसके बाद से भारत अपनी सुरक्षा और हितों को लेकर चिंतित है। इन्हीं चिंताओं के बीच भारत ने मध्य एशिया के देशों के साथ अपनी सक्रियता बढ़ाई है। और भारत की मध्य एशिया में बढ़ती सक्रियता और विस्तारित पड़ोसियों की अहमियत को दर्शाने के लिए हीं ये शिखर सम्मेलन आयोजित की गई।

इस वर्चुअल शिखर सम्मेलन में कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज गणराज्य, उजबेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपतियों ने भाग लिया।

इससे पहले भारत और मध्य एशियाई देशों के वर्चुअल समिट (शिखर सम्मेलन) को विदेशी मीडिया ने भी काफ़ी तवज्जो दी। बुधवार को जापानी अख़बार निक्केई एशिया ने इसे लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जिसमें लिखा था, ”इस समिट के मुख्य विषय अफ़ग़ानिस्तान में अतिवाद, आतंकवाद, ड्रग तस्करी और पलायन की चुनौतियां हैं। इस बैठक से संदेश देने की कोशिश की जाएगी कि तालिबान की सरकार में सभी समुदायों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होना चाहिए और तभी उसे क्षेत्रीय मदद मिल सकती है।’’

जबकि चीन के अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि ”इतिहास के बावजूद मध्य एशिया में भारत का कोई प्रभाव नहीं है। मध्य एशिया और भारत के बीच आर्थिक संपर्क बहुत ही कमज़ोर है।’’

इसी कमजोरी को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी लगातार कोशिश करते रहे हैं। विशेष रूप से २०१५ में प्रधानमंत्री मोदी ने सभी मध्य एशियाई देशों की ऐतिहासिक यात्रा की थी। इसके बाद, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर लगातार उच्च स्तरीय बातचीत होती रही।

इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए पिछले साल नवंबर और दिसंबर में भी मध्य एशिया के इन देशों के विदेश मंत्रियों के साथ भारत ने बैठक की थी। और ठीक उसी वक़्त दिसंबर में पाकिस्तान में ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी की बैठक चल रही थी, जिसे छोड़ इन पाँचों देशों के विदेश मंत्री भारत आए थे। इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक अफ़ग़ानिस्तान को लेकर ही पिछले महीने 19 दिसंबर को इस्लामाबाद में आयोजित हुई थी।

अब एक बार फिर से भारत मध्य-एशियाई देशों के साथ अपनी रणनीति को शिखर सम्मेलन के माध्यम से आगे बढ़ा रहा है। २७ जनवरी को आयोजित मध्य एशिया के पाँच देशों के साथ वर्चुअल समिट यानि शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत और मध्य एशिया देशों के कूटनीतिक संबंधों ने ३० सार्थक वर्ष पूरे कर लिए हैं। पिछले तीन दशकों में हमारे सहयोगियों ने कई सफलताएं हासिल की हैं।

उन्होंने आगे कहा कि आज के समिट के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं। पहला यह स्पष्ट करना कि भारत और मध्य एशिया का आपसी सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा और समृद्धि के लिए अनिवार्य है। दूसरा उद्देश्य हमारे सहयोग को एक प्रभावी ढांचा देना है। भारत की तरफ से मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि मध्य एशिया एक एकीकृत और स्थिर विस्तारित पड़ोस के भारत के दृष्टिकोण का केंद्र है। इससे विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न हितधारकों के बीच नियमित बातचीत का एक ढांचा स्थापित होगा।

उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए हम सभी की चिंताएं और उद्देश्य एक समान हैं। अफगानिस्तान के घटनाक्रम से हम सभी चिंतित हैं। इस संदर्भ में हमारा आपसी सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता के लिए और महत्वपूर्ण हो गया है।

इस समिट में ऊर्जा सहयोग भी अहम मुद्दे पर भी चर्चा हुई।इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत के सभी मध्य एशियाई देशों के साथ गहरे संबंध हैं। कजाखस्तान भारत की ऊर्जा सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भागीदार बन गया है। क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए हम सभी की चिंताएं और उद्देश्य एक समान हैं।

अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर चिंता ज़ाहिर करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि इस संदर्भ में हमारा आपसी सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता के लिए और महत्वपूर्ण हो गया है।तीसरा उद्देश्य को लेकर उन्होंने कहा कि शिखर सम्मेलन का उद्देश्य हमारे सहयोग के लिए एक महत्वाकांक्षी रोडमैप तैयार करना है, जो क्षेत्रीय संपर्क और सहयोग के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने में सक्षम बनाएगा।

वैसे भी प्रधानमंत्री की चिंता वाजिब है। क्योंकि पिछले दो दशक से भी ज़्यादा समय बीत चुका है लेकिन आज भी तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट अटका हुआ है। १९९० के दशक से ही इस तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया पाइपलाइन की बात चल रही है लेकिन अब भी अधूरा है। और ऊपर से पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान में वो पुरानी सरकार भी नहीं रही। ऐसे में मध्य एशिया में भारत की मौजूदगी मज़बूत करने में रूस की भूमिका भी काफ़ी अहम हो सकती है। भारत रूस के ज़रिए ही मध्य-एशिया में पहुँच सकता है। इसके अलावा भारत के लिए ईरान भी ज़रूरी देश है। पाकिस्तान को बाइपास कर चाबहार के ज़रिए मध्य-एशिया में पहुँचना है तो ईरान ही काम आएगा। ईरान भारत के साथ अमेरिका की नज़दीकी होने से नहीं आ सकता।तो ऐसे में रूस ही मदद कर सकता है। रूस अगर चाह जाए कि भारत को मध्य एशिया में क़दम नहीं रखने देना है तो वो ऐसा कर सकता है।

हालाँकि शिखर सम्मेलन के आख़िर में इस बात पर भी सहमति बनी कि इसे नए मंज़िल तक पहुँचाने के लिए मध्य-एशिया के पाँचों देशों के बीच लगातार वार्ता और संपर्क होनी चाहिए। नतीजतन, अब हर दो साल में एक बार मध्य एशिया शिखर सम्मेलन आयोजित की जाएगी जिसमें सभी देशों के प्रमुख हिस्सा लेंगे।

– डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी ,
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