नई दिल्ली। भारत-मध्य एशिया तीसरी वार्ता में रविवार को अफगानिस्तान की स्थिति और क्षेत्र पर इसके प्रभाव को लेकर चर्चा की गई। वार्ता में शामिल सभी देशों ने एक बार फिर शांतिपूर्ण अफगानिस्तान के लिए अपना समर्थन जताया।
इसके आंतरिक मामलों में क्षेत्रीय अखंडता और गैर-हस्तक्षेप के सम्मान पर जोर दिया। यह वार्ता दिल्ली में आयोजित की गई, जिसकी मेजबानी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने की। इसमें तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया।
बैठक में विदेश मंत्री डॉ० एस. जयशंकर ने कहा है कि भारत और मध्य एशियाई देशों के, अफगानिस्तान के साथ गहरे और ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंध हैं। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के लोगों की हर संभव सहायता की जानी चाहिए।
डॉ० जयशंकर ने आज नई दिल्ली में तीसरे भारत-मध्य एशिया संवाद में अपनी शुरूआती टिप्पणी में यह बात कही। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के बारे में भारत और मध्य एशियाई देशों की चिंताएं एक समान हैं।
विदेश मंत्री ने इस संदर्भ में अफगानिस्तान में वास्तव में समावेशी तथा प्रतिनिधि सरकार, आतंकवाद तथा मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने, बिना किसी बाधा के मानवीय सहायता उपलब्ध कराने और महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की चर्चा की।
विदेश मंत्री ने कहा कि यह मंच क्षेत्रीय और द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा का अवसर प्रदान करता है। उन्होंने कोविड की दूसरी लहर के दौरान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय विशेषकर कजाख्स्तान और उज्बेकिस्तान द्वारा भारत को दी गई सहायता के लिए उनकी सराहना की।
डॉ० जयशंकर ने कहा कि भारत ने कजाख्स्तान और उज्बेकिस्तान सहित 90 से अधिक देशों को कोविडरोधी टीकों की आपूर्ति की है। उन्होंने कहा कि भारत ने मित्र देशों को टीकाकरण कार्यक्रम में सहायता के लिए कोविन प्लेटफार्म उपलब्ध कराने का भी प्रस्ताव किया है।
विदेश मंत्री ने राजनयिक संबंधों को अगले स्तर पर ले जाने के लिए भारत की तत्परता का आश्वासन देते हुए कहा कि भारत-मध्य एशिया संबंधों को 4 सी- वाणिज्य (Commerce), क्षमता वृद्धि (Capacity enhancement), कनेक्टिविटी (Connectivity) और संपर्कों (Contacts) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
इस बैठक में कजाख्स्तान, किर्गिज गणराज्य, ताजिकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों भाग लिया। बैठक में उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्री अब्दुल अजीज कमिलोव ने कहा कि इस मंच की शुरूआत मध्य दक्षिण एशिया में अंतरक्षेत्रीय सहयोग को बढावा देने के लिए 2019 में की गई थी । यह एक प्रभावी माध्यम के रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से संबद्ध दो क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा के संरक्षण में योगदान के लिए कार्यसंरचना तैयार की गई है। अफगानिस्तान की स्थिति पर उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार किए जाने की आवश्यकता है।
वहीं ताजिकिस्तान के विदेश मंत्री सिरोजीद्दिन मुहरीद्दीन ने भारत तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था पर ज़ोर देते हुए कहा कि भारत में उद्योगों का सशक्त आधार और वैज्ञानिक तथा तकनीकी संभावनाएं मौजूद हैं। इससे व्यापार, अर्थव्यवस्था, उद्योग, शिक्षा, कृषि, संस्कृति और अन्य क्षेत्रों में परस्पर लाभकारी सहयोग के लिए सकारात्मक परिस्थितियां पैदा होती हैं।
किर्गिस्तान के विदेश मंत्री रुस्लान कजाकबाएव ने भी किर्गिस्तान राजनयिक संबंध बनाए रखने के लिए भारत का आभार जताते हुए कहा कि भारत और मध्य एशियाई देशों के गहरे ऐतिहासिक संबंध हैं और नई दिल्ली इस क्षेत्र के सभी देशों का रणनीतिक साझेदार है।
उधर तुकमेनिस्तान के विदेश मंत्री राशिद मेरेदोव ने भी परस्पर सहयोग और भागीदारी की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि यह संवाद भागीदारी और सहयोग के नए लक्ष्यों के प्रति दृष्टिकोण तथा परिस्थितियों के सामंजस्य के लिए उचित दिशा निर्देश तय करेगा।
कजाख्स्तान के विदेश मंत्री मुख्तार तिलियूबेर्डी ने विश्वास व्यक्त किया कि इस आयोजन से द्विपक्षीय, राजनीतिक, आर्थिक और मानवीय संबंधों को बढावा देने में मदद मिलेगी। तिलेबर्दी ने कहा कि भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी गतिशील रूप से बढ़ रही है।
उन्होंने कहा, मुझे विश्वास है कि यह मंच हमारी साझा प्राथमिकताओं और हमारी साझेदारी को नए स्तर की गुणवत्ता तक बढ़ाने की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए एक और मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि यह बहुत प्रतीकात्मक है कि हमारी बैठक ऐसे समय में हो रही है जब मध्य एशिया के देश अपनी आजादी की 30वीं वर्षगांठ मना रहे हैं।
मालूम हो कि इससे पहले डॉ० एस जयशंकर ने शनिवार को मध्य एशियाई देशों के विदेशमंत्रियों के स्वागत में रात्रिभोज दिया था। जयशंकर इसी साल पहले ही कजाकिस्तान, किर्गिज गणराज्य, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान का दौरा कर चुके हैं और अक्टूबर में तुर्कमेनिस्तान के विदेश मंत्री से भी मिले थे। भारत-मध्य एशिया तीसरी वार्ता में भाग लेने वाले सभी विदेश मंत्री प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात कर सकते हैं।
डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी