पक्षियों को खूब भा रहे बिहार के ताल-तलैया

देश के पक्षी हों या प्रवासी पक्षी, बिहार के ताल तलैया इन्हे खूब पसंद आ रहे हैं। इसका खुलासा बिहार में पक्षी गणना के पूर्व किए गए सर्वेक्षण में हुआ।

बिहार में वेटलेन्ड्स इंटरनेशनल के मध्य शीतकालीन एशियाई जल पक्षी गणना का कार्य इस वर्ष वृहत पैमाने पर हो रहा है। भारत में यह कार्यक्रम सन 1987 से शुरू हुआ और प्रत्येक वर्ष मध्य शीतकाल में इन पक्षियों की गिनती की जाती है, जब प्रवासी और स्थानीय पक्षियों का जमावड़ा एक साथ होता है और लाखों करोड़ों प्रवासी पक्षी सुदूर देशों से हमारे यहाँ आते हैं।

पक्षियों के जानकार इस साल गरही जलाशय में गूजेंडर और यलो थ्रोटेड स्पैरो को देखा जाना एक सुखद संदेश मान रहे हैं। पिछले दिसंबर माह में यहां इस क्षेत्र के लिए दुर्लभ व्हाइट कैप्ड वाटर रेड स्टार्ट भी दिखा था।

एक अधिकारी ने बताया कि इन पक्षियों की स्थिति के आधार पर हमें पता चलता है कि हमारी जल भूमि की स्थिति क्या है और जल संरक्षण की नीतियां हमें कैसे निर्धारित करनी हैं कि ये पक्षी हमारे ताल-तलैया और झीलों में उगे खर-पतवारों का भोजन कर हमें समस्या से निजात दिलाते हैं, वरना हमारे ये जलाशय गाद से भरते चले जायंगे और सूख कर कठोर भूमि में बदल जायंगे।

बिहार सरकार के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग ने इस जल पक्षी गणना में खासी दिलचस्पी दिखाई है और वेटलेन्ड्स इंटरनेशनल तथा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के साथ मिलकर बिहार में वैसे लगभग 60 जलाशयों को चिन्हित किया है, जहां ये पक्षी हमारे मेहमान होते हैं।

सरकार की ओर से की जा रही इस गणना में बिहार के वैसे अनुभवी और युवा लोगों को लगाया गया है, जो पक्षियों की दुनियां में रुचि रखते हैं और इनके संरक्षण में अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं।
वेटलेन्ड्स इंटरनेशनल के एशियाई जल पक्षी गणना के राज्य समन्वयक अरविन्द मिश्रा ने बताया कि इस गणना की बिहार में अत्यंत आवश्यकता थी क्योंकि कई राज्यों में तो हजारों हजार पक्षी प्रेमी प्रति वर्ष इस जल पक्षी गणना में स्वैच्छिक तौर पर हिस्सा लेते हैं।

उन्होंने कहा, बिहार भी पक्षियों के लिए काफी संमृद्ध राज्य है, लेकिन यहाँ की इन विशेषताओं का प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया और अध्ययन या प्राकृतिक भ्रमण के लिए यह पक्षी प्रेमी पर्यटकों को आकर्षित नहीं कर पाया ।

मिश्रा ने बताया कि जमुई जिले के नागी-नकटी, पैलबाजन, देवन आहर, बेला टांड और खैरा प्रखंड के गरही जलाशय में जल पक्षी गणना का यह कार्य शुरू हुआ है।
पैलबाजन, देवन आहर और बेला टांड में पक्षियों की गणना की गई ओर वहां के प्राकृतिक आवास का अध्ययन भी किया गया क उन्होंने बताया कि पूरे देश में ही यदा कदा दिखाई देने वाला फाल्केटेड डक यानी काला सिंखुर सन 2018 से लगातार जमुई जिले में कभी देवन आहर, कभी नागी-नकटी और इस वर्ष बेला टांड में दिखा जो एक सुखद आश्चर्य और शोध का विषय है।

खास बात यह है कि यह पक्षी हजारों के बीच बस एक ही दिखाई देता है जिसे खोजी आँखे ही देख पाती हैं।

जमुई में नागी और नकटी पक्षी अभयारण्य में करीब चार हजार जल पक्षी दिखे, जिनमें लालसर, अरुण, सरार, चेउं, गर्िी, काला सर बतख, सफेद बुजा और बड़ी संख्या में पनडुब्बी आदि हैं। उन्होंने बताया कि एक शिकारी पक्षी लॉन्ग लेग्ड बजार्ड (चूहामार) भी पाया गया है।

यह पक्षी छोटे-छोटे जानवरों के साथ पक्षियों का भी शिकार करता है क लगभग पचास की संख्या में प्रवासी पक्षी केंटिश प्लोवर भी दिखे जो इतनी बड़ी संख्या में यहाँ पहले नहीं देखे गए थे।
इसके अलावा झाझा रेलवे स्टेशन के सटे रेलवे जलाशय में लगभग 500 छोटी सिल्ही भी नजर आई है।

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