निजी क्षेत्रों में आरक्षण का कोई प्रस्ताव नहीं : केंद्र सरकार


केंद्र सरकार ने कहा है कि निजी क्षेत्रों में भी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को आरक्षण दिए जाने जैसा कोई प्रस्ताव तैयार नहीं हुआ है। हालांकि सरकार ने यह जरूर स्वीकार किया कि वर्ष 2006 में प्रधानमंत्री कार्यालय ने पहल करते हुए इसको लेकर एक समन्वय कमेटी बनाई थी। तब उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने आरक्षण की बात खारिज करते हुए कौशल विकास और ट्रेनिंग पर जोर देने की बात कही थी।

दरअसल, भाजपा के कौशांबी से सांसद विनोद सोनकर ने मंगलवार (10 दिसंबर) को पूछा था कि क्या सरकार ने निजी क्षेत्र में आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई कदम उठाया है? क्या सरकार की ओर से निजी क्षेत्र में आरक्षण प्रदान किए जाने की संभावना है?

इस सवाल के लिखित जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया ने बताया कि औद्यौगिक संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) की सूचना के मुताबिक, निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। हालांकि, निजी क्षेत्र में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए वर्ष 2006 में प्रधानमंत्री कार्यालय ने सकारात्मक कार्रवाई के लिए एक समन्वय समिति गठित की थी।

उन्होंने बताया कि अब तक इस समिति की नौ बैठकें हुई हैं। समन्वय समिति की पहली बैठक में बताया गया था कि इस मुद्दे पर सफलता तभी हासिल होगी, जब उद्योग जगत खुद आगे बढ़कर पहल करे।

समिति ने हालांकि जब निजी क्षेत्र में आरक्षण दिए जाने के संबंध में उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से चर्चा की तो उनका कहना था कि आरक्षण समस्या का समाधान नहीं है। इसके लिए वे अपने स्तर से एससी-एसटी के लिए मौजूदा भर्ती नीति में वृद्धि करने, सरकारी और अन्य एजेंसियों के साथ भागीदारी करने के साथ कौशल विकास और प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करने को ज्यादा उपयुक्त मानते हैं।

समिति की नौवीं बैठक में उद्योग संघों से अनुरोध किया गया था कि वे अपने यहां ट्रेनी स्टाफ की नियुक्ति में कम से कम 25 प्रतिशत स्थान एससी-एसटी वर्ग के लोगों को देंगे।

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