केंद्र ने बच्चों को जेनेटिक बीमारियों से बचाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। देश के आठ बड़े केंद्रों में विशेष प्रशिक्षण सेंटर खोले जा रहे हैं, जिनमें जेनेटिक विशेषज्ञ तैयार किये जाएंगे। योजना है कि कुछ समय बाद देश के हर बड़े अस्पताल में जेनेटिक विशेषज्ञों की नियुक्ति की जा सकेगी। इससे गर्भावस्था के दौरान ही बच्चों को होने वाली जेनेटिक बीमारियों का पता लगाया जा सकेगा और उसी समय उनका उपचार शुरु किया जा सकेगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने सोमवार को ‘उम्मीद’ कार्यक्रम के तहत देश के पांच सेंटरों पर ‘निदान’ नाम से जेनेटिक प्रयोगशालाओं की भी शुरुआत की। इनमें लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज दिल्ली, निजाम इंस्टीट्यूट हैदराबाद, एम्स जोधपुर, आर्मी हास्पिटल दिल्ली और एनआरएस अस्पताल कोलकाता शामिल हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ की जेनेटिक विभाग की प्रोफेसर शुभा फड़के ने अमर उजाला को बताया कि जेनेटिक बीमारियों की कुछ कैटेगरी कम घातक होती है, लेकिन कई वर्ग ऐसे भी हैं, जिनमें बच्चे के जीवित रहने के बाद पूरी जिंदगी उनकी देखरेख कर पाना बहुत बड़ी समस्या हो जाती है। ऐसे में अगर गर्भावस्था के पहले से तीसरे माह के बीच ही यह पता चल जाए कि बच्चे को इतनी गंभीर समस्या होने वाली है, परिवार के पास बच्चे को रखने या न रखने का विकल्प उपलब्ध हो जाएगा। यह जांच सुविधा के उपलब्ध हो जाने से बच्चे के गर्भावस्था के दौरान ही इलाज शुरु किया जा सकेगा, जिससे बाद में उसकी जिंदगी को ज्यादा बेहतर बनाया जा सकेगा।
जेनेटिक बीमारियां कितनी घातक
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रति वर्ष लगभग 4.95 लाख बच्चे वंशानुगत बीमारियों के साथ पैदा होते हैं। इनमें 21,400 बच्चे लोवर सिंड्रोम, 9000 बच्चे थैलीसीमिया, 9760 बच्चे एमीनो एसिड डिसऑर्डर जैसी बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। कुछ मामले में बच्चों को बचाना बेहद मुश्किल होता है। अगर समय रहते बच्चों को होने वाली इन बीमारियों का पता चल जाए तो समय रहते उनका उपचार शुरु किया जा सकेगा।