दिल्ली विश्वविद्यालय, शिक्षकों के समायोजन के लिए अध्यादेश लाए सरकार: डूटा

दिल्ली विश्वविद्यालय और सम्बद्ध कॉलेजों में लगभग साढ़े चार हजार से अधिक तदर्थ व अस्थाई शिक्षक विभिन्न पूर्णकालिक, अनुमोदित और स्वीकृत पदों पर असुरक्षित नौकरी और सामाजिक असुरक्षा के बीच कार्य कर रहे हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ यानी डूटा ने विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में कार्यरत इन तदर्थ शिक्षकों के समायोजन की मांग दोहराई है। अपनी इस मांग को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के तमाम शिक्षक धरना प्रदर्शन भी कर रहे हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षकों की मौजूदा स्थिति को तुरंत सही किया जाना चाहिए। जरूरत पड़ने पर इसके लिए सरकार अध्यादेश लेकर आए।

डूटा अध्यक्ष डॉ एके भागी और डूटा कार्यकारिणी सदस्यों के नेतृत्व में शिक्षकों ने इस विषय पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ एके भागी ने समायोजन की मांग जाएज बताते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन से समायोजन के मामले में हस्तक्षेप की मांग की है।

उनका कहना है कि लंबे समय से यह शिक्षक विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रतिष्ठित कॉलेजों में सामाजिक असुरक्षा के बीच कार्य कर रहे हैं और अब इन्हें जिला में समायोजित किया जाना चाहिए।
वहीं डूटा सचिव डॉ सुरेंद्र सिंह ने कहा की सरकार को संज्ञान लेकर यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर एकबारगी समायोजन की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए और इसके लिए आवश्यकता पड़ने पर अध्यादेश या बिल लाना चाहिए।

डूटा ने समायोजन की मांग पर जोर देते हुए कहा कि समायोजन समानता,शिक्षक गरिमा,लैंगिक समानता और दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक होगा। डूटा ने मांग की कि दिल्ली विश्वविद्यालय और यूजीसी पांच दिसंबर, 2019 के रिकॉर्ड ऑफ डिस्कशन को लागू करे।

दिल्ली विश्वविद्यालय और सम्बद्ध कॉलेजों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गो के आरक्षण के लागू होने पर पच्चीस प्रतिशत अतिरिक्त पदों की स्वीकृति मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर श्रेणी के आरक्षण को पूर्वप्रभावी रूप से लागू न किया जाए।

पूर्व डूटा अध्यक्ष डॉ अदित्य नारायण मिश्रा एवं डॉ राजीब रे ने इस समस्या के समाधान के लिए डूटा द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में सभी शिक्षकों से भागीदारी की अपील की। विद्वत परिषद सदस्य सुनील कुमार ने कहा कि समायोजन के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए जाने की आवश्यकता है।

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