घरेलू क्रिकेट की आग में तप कर निखरे हैं मयंक


भारतीय टेस्ट टीम के सलामी बल्लेबाज मयंक अग्रवाल ने दक्षिण अफ्रीका के साथ विशाखापत्तनम में हुए पहले टेस्ट मैच में अपना पहला शतक जड़ा और उसे दोहरे तब्दील कर अपना नाम रिकार्ड बुक में दर्ज करा लिया। मयंक भारत के चौथे ऐसे बल्लेबाज हैं, जिन्होंने अपने पहले टेस्ट शतक को दोहरे में तब्दील किया।

मयंक ने घरेलू परिस्थति में जिस परिपक्वता से बल्लेबाजी की वह उनकी कड़ी मेहनत का फल है जो उन्होंने लम्बे समय तक घेरलू सत्र में की है और भारतीय टीम की जर्सी पहनने का इंतजार बड़े धैर्य के साथ किया। घरेलू सत्र में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के बाद ही मयंक को पिछले साल भारत में ही वेस्ट इंडीज के खिलाफ खेली गई टेस्ट सीरीज में राष्ट्रीय टीम में चुना गया। वह हालांकि पदार्पण नहीं कर सके। इसके लिए उन्हें बॉक्सिंग डे टेस्ट का इंतजार करना पड़ा। ऑस्ट्रेलिया में उन्होंने अपना पहला टेस्ट मैच खेला और तब से वह टीम के नियमित सलामी बल्लेबाज बने हुए हैं।

घरेलू क्रिकेट में दिखाया दम
यहां तक पहुंचने से पहले मयंक ने हालांकि अपने आप को घरेलू क्रिकेट की आग में तपाकर निखारा। अंडर-19 से लेकर रणजी ट्रोफी में रनों की झड़ी लगाई। यही कारण है कि वीरेंदर सहवाग को अपना आदर्श मानने वाला बल्लेबाज अब उन्हीं की तरह निडर अंदाज में बल्लेबाजी करते देखा जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ लगाए गए दोहरे शतक के बाद भारतीय टीम के पूर्व बल्लेबाज वीवीएस. लक्ष्मण ने तो यह तक कह दिया कि मयंक बिल्कुल सहवाग की तरह निडर होकर बल्लेबाजी करते हैं। अपने आदर्श से तुलना मयंक को बेहद राहत की सांस देगी, लेकिन वे जानते हैं कि अभी काफी लंबा सफर बाकी है। उससे कई लंबा जितना उन्होंने अभी तक तय किया है।

प्रदर्शन में निरंतरता की थी कमी
यूं तो मयंक ने अक्टूबर 2010 में अपने घरेलू राज्य कर्नाटक के साथ टी-20 से पदार्पण कर घरेलू क्रिकेट में दस्तक दी थी। उन्हें यह मौका भी 2010 में खेले गए अंडर-19 विश्व कप में भारतीय टीम से खेलते हुए बेहतरीन बल्लेबाजी के दम पर मिला था। इसके बाद भी मयंक के लिए चीजें आसान नहीं रहीं। प्रदर्शन में निरंतरता की कमी उनके रास्ते में बड़ा रोड़ा था और इसी कारण उन्हें अपना पहला रणजी ट्रोफी मैच खेलने के लिए तीन साल का इंतजार करना पड़ा।

खेल में आने लगा था सुधार
सात नवंबर को मयंक ने झारखंड के साथ खेलते हुए कर्नाटक से अपना रणजी ट्रोफी पदार्पण किया और 90 रन बनाए। यहां से मयंक का करियर राह पकड़ने लगा था। वह कर्नाटक की टीम में लगातार खेल रहे थे लेकिन निरंतरता की कमी उनके अंदर बनी हुई थी। इसी कारण वह 2014-15 में आधे सीजन से ही टीम से बाहर कर दिए गए थे। मयंक सब कुछ देख रहे थे और समझ भी रहे थे। वह जानते थे कि उन्हें अगर भारतीय टीम में जाना है तो दो कदम आगे आकर अपने आप पर काम करना होगा। उन्होंने ऐसा किया भी मयंक ने अब हर असफलता से सीखना सीख लिया था और आगे बढ़ रहे थे।

मानसिकता में किया बदलाव
मयंक ने अब अपने खेल के अलावा अपनी मानसिकता को बेहतर रखने के लिए काम किया और इस दौरान वह विपासना के घेर में आए और यहीं से लगातार उनके अंदर बदलाव आने लगे। अपने खेल में वह तकनीकी रूप से दक्ष बने। नतीजतन 2017-18 में मयंक ने रणजी ट्रोफी में सबसे ज्यादा रन बनाए। अब वह वह बेहतर बल्लेबाज बनकर निरतंरता के साथ रन कर रहे थे। विजय हजारे ट्रोफी, सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में भी मयंक ने दमदार प्रदर्शन किया। अब मयंक चयनकर्ताओं की नजरों में आ गए थे। इंडिया-ए में उन्हें लगतारा मौके मिल रहे थे और यहीं से उनका सपना साकार होने की राह मजबूत होती जा रही थी। अपनी मजबूत तकनीक, सकारात्मक नजरिए के दम पर वह दिन प्रतिदिन भारतीय टीम के दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे।

ऑस्ट्रेलिया में हुई शुरुआत
अंतत: उन्हें विंडीज के खिलाफ टेस्ट टीम में चुना गया। वह अंतिम-11 में जगह नहीं बना पाए लेकिन ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन्हें मेलबर्न में मौका मिला। मयंक जैसे इस मौके की घात लगाए बैठे थे। उन्होंने अपनी पहली पारी में 72 रन बनाए। अगले टेस्ट में फिर उन्होंने सिडनी में 77 रन बनाए। हाल ही में विंडीज दौरे पर भी उनके नाम एक अर्धशतक है, लेकिन मयंक को जिस पल का इंतजार था वो विशाखापत्तनम के एसीए-वीसीए स्टेडियम में आया। मयंक ने पहला सैंकड़ा किया और उसे दोहरे में तब्दील कर छाप छोड़ी। मयंक के लिए हालांकि अभी राह आसान नहीं है क्योंकि इंग्लैंड, साउथ अफ्रीका, न्यू जीलैंड की पिचों पर उनके पैर अभी पड़े नहीं है। उनके लिए अभी भी चुनौती कम नहीं है और इस चुनौती के लिए उन्हें खुद को तैयार करना होगा।

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