रोजगार की तलाश में छत्तीसगढ़ तेलंगाना गए आदिवासी मजदूर अब वापस लौट के आ रहे हैं।
सैकड़ों की तादाद में लौट रहे इन मजदूरों की स्वास्थ्य विभाग तलाशी कर रहा है। उनके हाथों पर होम क्वॉरेंटाइन के सिक्के लगाकर घर पर ही रहने की हिदायत दे रहा है।
परंतु हर गांव कस्बे में पहुंचने के लिए इन स्वास्थ्य कर्मियों की आवश्यकता है जो इस काम के लिए कम पड़ रही है। जिसके चलते प्रशासन के सामने इन मजदूरों को क्वॉरेंटाइन करना एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है।
महाराष्ट्र का गडचिरोली जिला छत्तीसगढ़ तेलंगाना की सीमा से लगा हुआ है। घने जंगलों से घिरा यह क्षेत्र माओवादियों के दहशत के तले हर पल बना रहता है।
कदम हर कदम नक्सलियों की दहशत यहां पर बनी है।
गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़कें हैं और ना मूलभूत सुविधाएं बरसात के मौसम में क्षेत्र यह क्षेत्र किसी टापू से कम नहीं होती 4 से अधिक महीने यह क्षेत्र दुनिया से बिल्कुल कटे हुए रहते हैं ऐसे में बरसात के बाद रोजी रोटी कमाने के लिए यह लोग पड़ोसी राज्य तेलंगाना तथा छत्तीसगढ़ में चले जाते हैं।
कोरची तहसील के मसेली से लेकर सिरोंज तहसील तक कुल अंतर 500 किलोमीटर है। यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था हमेशा से वेंटिलेटर पर रहती है जिसका कई बार अनुभव हो चुका है।
वक्त पर एंबुलेंस न पहुंचने के कारण कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। ऐसे में कोरोना संक्रमण से लड़ने का बड़ा आवान स्वस्थ यंत्रणा के सामने है।
फिलहाल गढ़चिरौली जिले में कोई भी कोरोना पॉजिटिव नहीं मिला है जो एक राहत की बात है। गडचिरोली जिला की सीमा से लगे तेलंगाना तोता छत्तीसगढ़ सिरोंज भामरागढ़ अहेरी जैसे दुर्गम तहसीलों के कई लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में गए थे अब कोरोना के चलते सभी तरफ लॉक डाउन कर दिया गया है,|
जिसे इन मजदूरों का रोजगार छीन लिया है। बाहर राज्य में रहकर खाने पीने की जरूरी चीजें उपलब्ध ना होने के चलते यह लोग पैदल या मिले उस संसाधन से घर पहुंच रहे हैं।
वापस लौटे इन लोगों को गांव वालों की मदद से स्वस्थ सेवी कर्मी तथा आशा वर्कर क्वॉरेंटाइन करने की वर्कर्स कोशिश कर रहे हैं।
यह स्वास्थ्य सभी कर्मचारी दिन रात एक कर के उन लोगों की तलाश कर रहे हैं जो बाहर राज्य से गांव में लौटे हैं।
जैसे-जैसे वक्त बीतेगा इन मजदूरों को एहतियातन निगरानी में रखना और इनमें को कोरोना जैसे संक्रमण के लक्षण दिखते हैं अस्पताल तक पहुंचाना अपने आप में बड़ा मुश्किल काम लग रहा है|
क्योंकि जहां यह लोग रहते हैं वहां ना तो सड़कें हैं मोबाइल की सुविधा यहां किसी मरीज की जांच थर्मामीटर के अलावा नहीं की जा सकती।
जिले से 2०० किलोमीटर दूर बसे इन गांव में स्वस्थ सेवाएं वक्त पर पहुंचाना भी अपने आप में बहुत मुश्किल काम है।