खुलासा: जामिया में भर्ती के लिए सौदेबाज़ी और वसूली चरमपर, जामिया टीचर ने खोले पोल !

नई दिल्ली- पिछले साल ४ नवंबर का वो दिन जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली के मुख्य प्रॉक्टर कार्यालय ने सतर्कता जागरूकता सप्ताह के तहत कॉम्बेटिंग करप्शन लीगल फ्रेमवर्क इन इंडिया विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया, जहां तत्कालीन डीन, विधि संकाय,  प्रोफ़ेसर इक़बाल हुसैन ने भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की आवश्यकता को दोहराया था। वहीं, इस मौक़े पर कर्मचारियों को जामिया की कुलपति प्रो.नजमा अख्तर ने भी सत्यनिष्ठा की शपथ दिलाई थी। लेकिन, क्या वो सब दिखावा भर था? जामिया मिल्लिया इस्लामिया मिडिल स्कूल के फिजिकल एजुकेशन टीचर हारिस उल हक से ख़ास बातचीत से तो यही मालूम पड़ता है।

सद्भावना टूडे की टीम ने शिक्षण संस्थानों में धड़ल्ले से चल रहे भर्ती घोटाले को उजागर करने क्रम में कई विभागों से सबूत इकट्ठे किए। जामिया यूनिवर्सिटी का लॉ डिपार्टमेंट हो या फारसी विभाग कोई इससे अछूता नहीं है। ये कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती।

जामिया स्कूल में पढ़ा रहे हारिस के मुताबिक़ ये सब जामिया की कुलपति प्रो.नजमा अख्तर की इशारे पर हो रहा है। उनका कहना है कि हालात तो इतने बदत्तर हो चुके हैं कि ज़मीन बेचने के मामले से लेकर सेल्फ़ फ़ाइनेंस कोर्स के पैसे में से ६ फ़ीसदी रक़म भी लेने से गुरेज़ नहीं है। 

उधर सत्तारूढ़ पार्टी की छात्र इकाई एबीवीपी ने भी एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि  जामिया की कुलपति प्रो.नजमा अख्तर की निरंकुशता का सीमा यह है कि  विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा असंवैधानिक तरीक़े से NOC जारी कर  विश्वविद्यालय की 855 गज सांपवि को भू-माफियाओं को बेचने का निर्णय ले लिया गया।

जामिया एबीवीपी ने आगे आरोप लगाते हुए कहा कि अब जब कुलपति का कार्यकाल महज़ २ महीने से भी कम रह गए हैं तो नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए धड़ल्ले से हर विभाग में नियुक्तियाँ की जा रही हैं, जिसमें भाई – भतीजावाद और सौदेबाज़ी चरम पर है।

हालाँकि, इस बात का खुलासा सद्भावना टुडे ने 8 अगस्त को एक इ-मेल के ज़रिए कुलपति, रजिस्ट्रार एवं विजिलेंस को अवगत करा दिया था कि कैसे फ़ारसी विभाग में तीन ख़ास आवेदकों को चयन करने के लिए फ़र्ज़ी इंटरव्यू का जाल रचा जा रहा है। वो नाम थे यासिर अब्बास, अहमद हसन और  नावेद जाफ़री  जिन्हें इंटरव्यू से पहले ही फ़ाइनल कर दिया गया था। जबकि इंटरव्यू में शामिल होने वाले आवेदक इन तीनों से ज़्यादा योग्य एवं अनुभव रखते थे। 

इसके अलावा सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये भी है कि तथाकथित भाई – भतीजावाद और सौदेबाज़ी की वजह से चयनित इन तीनों में एक ऐसा आवेदक  (यासिर अब्बास) को चुना गया है जिसे छेड़खानी के आरोप में जामिया प्रशासन ने 2014 में उसे निलंबित भी किया था। तत्कालीन रजिस्ट्रार शाहिद अशरफ़ ने यासिर अब्बास को एक पत्र जारी कर उसे जामिया से निलंबित किया था। इससे हम अंदाज़ा लगा सकते हैं आने वाले दिन जामिया के लिए कैसे होंगे।

यही नहीं, जामिया के विधि विभाग ऐसे ही कुछ तथाकथित भाई – भतीजावाद और सौदेबाज़ी से ग्रस्त है। पिछले दिनों इस विभाग में 2 रिक्त पदों के लिए सिर्फ़ 2 आवेदकों को हीं निमंत्रित किया। जबकि इस पद के लिए कई ऐसे आवेदन आए थे जो इन दो आमंत्रित आवेदकों से काफ़ी अनुभवी और योग्य थे, जिन्हें इंटरव्यूह के लिए शाॉर्टलिस्ट भी नहीं किया गया।उन आवेदकों में एक ऐसे आवेदक थे जो एक सरकारी कलेजा में फ़िलहाल बतौर शिक्षक पढ़ा रहे हैं, जिन्हें इसी विभाग ने 2019 में उनकी योग्यता और अनुभव के आधार पर इंटरव्यू के लिए बुलाया था। लेकिन, उ्हें भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया।  इस उदाहरण से हम आसानी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस प्रक्रिया के पीछे कितनी बड़ी सौदेबाज़ी हो सकती है। हालाँकि,  सद्भावना टुडे ने तथाकथित भाई – भतीजावाद और सौदेबाज़ी के इस खेल की पड़ताल कर पहले ही विभाग एवं संबंधित अधिकारियों को अवगत कराते हुए पूछा था कि कैसे 2 रिक्त पदों के लिए सिर्फ़ 2 आवेदकों को हीं निमंत्रित किया जा सकता है, जब नियम के मुताबिक़ किसी भी पद की भर्ती के लिए इंटरव्यूह में कम से 3 आवेदक होने चाहिए।

 तथाकथित भाई – भतीजावाद और सौदेबाज़ी की कहानी में आगे खेल प्रशासनिक कुर्सी का भी है। और आश्चर्य की बात ये भी है कि हाल ही में जिन्हें कुलपति ने बतौर प्रो वॉयस चांसलर नियुक्त किया है वो भी जामिया के विधि विभाग के डीन रह चुके हैं, जिनपर  (सेक्सुअल हाराशमेंट) के 2 मुक़दमे चल रहे हैं। इस बात का खुलासा सद्भावना टुदे से बातचीत के दौरान जामिया स्कूल में पढ़ा रहे शिक्षक हारिस ने किया। 

हारिस ने कई विभागों से संधित धड़ल्ले से जारी सौदेबाज़ी और घोटाले के सबूत दिखाते हुए कहा कि जामिया की कुलपति प्रो.नजमा अख्तर जाँच से बचने के लिए बहुत जल्द अमेरिका भागने वाली हैं। उन्होंने कहा कि इतिहास में ये पहली बार है कि किसी भी शिक्षण संस्था में एक क़ानून बनाकर वसूली की जा रही है।

उन्होंने काग़ज़ात दिखाते हुए कहा कि “जामिया को सेल्फ़ फ़ाइनेंस कोर्स से क़रीब 50 करोड़ रूपये सलाना मिलते हैं। लेकिन, मोहतरमा नजमा अख़्तर को भत्ता और अपनी सैलरी से ज़रूरतें पूरी नहीं हुई तो एक क़ानून ही पास करवा दिया। और इस कानून के मुताबिक़ सेल्फ़ फ़ाइनेंस कोर्स से आए पैसे में से ६ फ़ीसदी रक़म कुछ अधिकारियों के बीच बाँटी जाएगी। और ये वसूली लगातार जारी है।”

मालूम हो कि सद्भावना टुडे अपनी खोजी पत्रकारिता के ज़रिए लगातार भ्रष्टाचार का पर्दाफ़ाश करता रहा है। इस कड़ी देश के कई शिक्षण संस्थान हैं जिसमें ऐसे कारनामें धड़ल्ले से जारी है। 

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