कोरोना लॉकडाउन: ज़िंदा रहने के लिए संघर्ष ज़रूरी है !

 

कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अचानक लगाए गए 21 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने लाखों मज़दूरों की ज़िंदगी में अफ़रा-तफ़री मचा दी है। देश के कोने-कोने में फँसे मज़दूर एक वक़्त के खाने को मोहताज हो रहे हैं।

जो लोग अपने पूरे जीवन का सारा हासिल सिर पर लादकर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने के लिए निकल पड़े हैं, उनके बारे में एक बात यकीन के साथ कही जा सकती है कि उन्हें न तो सरकार से कोई उम्मीद है, न ही समाज से। वे सिर्फ़ अपने हौसले के भरोसे अब तक ज़िंदा रहे हैं, और सिर्फ़ उस हौसले को ही जानते-मानते हैं।

दार्शनिक कह रहे हैं कि कोरोना के गुज़र जाने के बाद दुनिया हमेशा के लिए बदल जाएगी. 9/11 के बाद दुनिया कितनी बदल गई, ये हममें से बहुत लोगों ने देखा है, कोरोना का असर कहीं ज़्यादा गहरा है इसलिए दुनिया भर में बदलाव होंगे, हर तरह के बदलाव।

भारत में हो सकने वाले बदलावों को समझने के लिए ज़रूरी है कि हम दो तस्वीरों को अपने दिमाग़ में बिठा लें, एक तस्वीर आनंद विहार बस अड्डे पर उमड़े मजबूर लोगों के हुजूम की, और दूसरी तस्वीर अपने ड्रॉइंग रूम में तसल्ली से दूरदर्शन पर रामायण देखते लोगों की, जिनमें केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं।

सोशल मीडिया पर हंगामा मचने के बाद, टीवी चैनलों ने पैदल जाते लोगों की ख़बर पर ध्यान दिया, इन ख़बरों में दो-तीन चिंताएं थीं– अरे, इस तरह तो लॉकडाउन फ़ेल हो जाएगा, वायरस फैल जाएगा, ये कैसे ग़ैर-ज़िम्मेदार लोग हैं, इन लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिए था, क्या वे जहाँ थे, वहीं पड़े नहीं रह सकते थे।

यानी चैनलों की चिंताओं में फिर भी उन लस्त-पस्त लोगों की तकलीफ़ नहीं थी जो स्क्रीन पर दिख रहे थे। ग़रीबों,दलितों, वंचितों और शोषितों के प्रति जो हमारा रवैया है, उसी की परछाईं सरकार के रवैए में दिखती है।

देश के प्रधानमंत्री ने मेडिकल सर्विस में लगे लोगों का शुक्रिया करने के लिए शाम पाँच बजे थाली और ताली बजाने की अपील कर साबित कर दी। उस अपील में भी एक बात साफ़ थी कि उनके दिमाग में जो इंडिया है उसमें सब लोग बालकोनी और छतों वाले घरों में रहते हैं।

एक सर्वे में भी सामने आया कि लॉकडाउन का असर मजदूरों और किसानों पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है। अभी किसानों के लिए खेती का उचित समय है। ऐसे में सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए उन्हें फसल काटने और मंडी तक ले जाना सबसे बड़ी मुश्किल लग रहा है। 74.5 फीसदी लोगों ने बताया कि उनकी आय और मजदूरी को अत्यधिक नुकसान हुआ है।

सरकार की तरफ से कई दावें किये जा रहे हैं लेकिन जमीन की सच्चाई कुछ अलग ही दिखती है।राज्य और केंद्र सरकारों ने हेल्पलाइन शुरू की है, ताकि फँसे लोगों की पहचान कर उन तक राशन और ज़रूरी सामान पहुँचाई जा सके।

लेकिन, हालात के सामने हेल्पलाइन भी होपलेस हो गए हैं। दसियों हज़ार मज़दूर रोज़ाना हेल्पलाइन पर कॉल करके मदद मांग रहे हैं जबकि हज़ारों को भूखे पेट सोना पड़ रहा है। प्रवासी मज़दूर सिर्फ़ सरकार द्वारा बांटे गए खाने पर निर्भर करते हैं लेकिन सरकार के पास भी खाना सीमित है और खाने वाले ज़्यादा.. बिहार बेतिया के प्रवासी मज़दूर राम सागर 5 किलोमीटर पैदल चल कर दिल्ली में मजनू के टीले के पास वाले स्कूल में खाना लेने पहुंचे तो वहाँ पॉलीथीन में खिचड़ी मिली।

घर में 6 बच्चे हैं और पॉलीथीन में भरी खिचड़ी से ही काम चलाना है। ये हाल सिर्फ़ दिल्ली का ही नहीं है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश में भी प्रवासी मज़दूर परेशान हैं। इस मुसीबत के मारो में उन गरीब परिवार के बच्चे भी शामिल हैं।

एक आँकड़े के मुताबिक़ फ़िलहाल भारत में 47.2 करोड़ बच्चे हैं और दुनिया में बच्चों की सबसे बड़ी आबादी भी भारत में ही हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ग़रीब परिवारों के चार करोड़ बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं।

इनमें प्रवासी मज़दूरों के बच्चों के अलावा वो बच्चे भी शामिल हैं जो ग्रामीण इलाक़ों में खेतों में काम करते हैं और वो भी जो शहरों में कूड़ा बीनने का काम करते हैं। चौराहों पर गुब्बारे, पेन, पेंसिल बेचने वाले या भीख मांगने वाले बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ दिल्ली में क़रीब 70 हज़ार बच्चे सड़क पर रहते हैं।

ये बच्चे ज़्यादातर आत्मनिर्भर होते हैं। वो अपना पेट भरने की ख़ुद ही कोशिश करते हैं, ये पहली बार है कि उन्हें मदद की ज़रूरत पड़ रही है। लेकिन वो व्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं और उन तक पहुंचना भी आसान नहीं है, ख़ासकर मौजूदा परिस्थितियों में।

हालात से चिंतित बच्चे सोशल मीडिया पर वीडियो संदेशों में अपने परिजनों के बेरोज़गार होने का डर ज़ाहिर कर रहे हैं, वो पूछ रहे हैं कि राशन का इंतेज़ाम कैसे किया जाए या जब सब बंद है तो पैसे कैसे कमाए जाएं।

ऐसे बच्चों के भी वीडियो हमें मिले हैं जो अकेले रहते हैं। एक वीडियो में सड़क पर रहने वाला एक बच्चा कह रहा है, कई बार लोग आते हैं और खाना बांटते हैं, मुझे नहीं पता कि ये लोग कौन हैं लेकिन जो खाना हमें मिलता है वह बहुत कम है। हमें दो-तीन दिनों में एक ही बार खाना मिल पा रहा है।

ये बच्चे बता रहे है कि लॉकडाउन की वजह से न ही वो पानी भरने जा पा रहे है और न ही लकड़ी जुटाने। वो ग़ुहार लगाते हैं, “हम नहीं जानते कि हम कितने दिन ऐसे ज़िंदा रह पाएंगे, सरकार हमारी मदद करे।

अधिकारियों का कहना है कि वो मदद कर रहे हैं। बाल अधिकारों की रक्षा के लिए दिल्ली आयोग सड़क पर रहने वाले बच्चों और ग़रीब परिवारों में खाना बांट रहा है।

देश के कई और शहरों में भी गैर सरकारी संगठन और प्रशासन बेसहारा बच्चों और बेघर लोगों में खाना बांट रहे हैं लेकिन ये समस्या इतनी बड़ी है कि डराने वाली है।

इस हालात पर चिंता जताते हुए विपक्ष ने भी सरकार से मदद की अपील की है। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर गरीबों को अनाज उपलब्ध कराने की मांग की है।

सोनिया ने पीएम मोदी से अपील की है कि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई की इस घड़ी में सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी नागरिक को भूखे नहीं रहना पड़े।

सोनिया गांधी ने सोमवार को पीएम मोदी को पत्र लिखकर सरकार को इस साल सितंबर तक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के लाभार्थियों को प्रति व्यक्ति 10 किलो अनाज प्रदान करने के लिए भी कहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में, उन्होंने यह भी मांग की कि जो खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हों, लेकिन उनके पास राशन कार्ड नहीं है। ऐसे लोगों को भी 10 किलो अनाज छह महीने तक मुफ्त में प्रदान किया जाए।

उन्होंने कहा कि ऐसे लोग मुख्य रूप से प्रवासी मजदूर हैं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है।

वहीं, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को आरोप लगाया कि पूरे देश में एक ही तरह का लॉकडाउन लागू करने से करोड़ों किसानों, मजदूरों और कारोबारियों को बहुत पीड़ा हुई है।

गांधी ने ट्वीट किया, पूरे देश के लिए एक जैसा लॉकडाउन करने से करोड़ों किसानों, प्रवासी कामगारों, दिहाड़ी मजदूरों और कारोबार मालिकों को ऐसी तकलीफें झेलनी पड़ रही हैं जिन्हें बयां नहीं किया जा सकता।

मालूम हो कि कोरोना वायरस के रोकथाम के लिए देशभर में लागू 21 दिनों के लॉकडाउन का आज आखिरी दिन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की थी।

– डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी
Follow via Twitter@shahidsiddiqui

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *