कोरोना की मार और केंद्रीय मदद के बगैर भी तेलंगाना की वित्तीय स्थिति सुदृढ़

हैदराबाद: कोविड महामारी के कारण पिछले दो वर्षों के दौरान राजस्व में आयी गिरावट और केंद्रीय मदद में कमी के बावजूद, तेलंगाना आर्थिक रूप से मजबूत स्थिति में है।

कई बड़े राज्यों की तुलना में उच्च विकास दर और प्रति व्यक्ति आय के साथ, भारत का सबसे युवा राज्य आठ साल से भी कम समय में राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में चौथा सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया है और कल्याण और विकास में पूरे देश के लिये एक मॉडल होने का दावा करता है।

2020-21 के बजट अनुमानों के अनुसार, तेलंगाना का अनुमानित बकाया ऋण 2.86 लाख करोड़ रुपये से अधिक होगा। हालांकि, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि राज्य के पास कर्ज प्रबंधन की क्षमता है।

पिछले महीने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी एक अध्ययन पत्र के अनुसार, तेलंगाना का ऋण-जीएसडीपी अनुपात देश में सबसे कम है, जो राज्य के वित्तीय स्वास्थ्य को दर्शाता है।
शोध पत्र से पता चलता है कि 2014-15 और 2018-19 के बीच के वार्षिक आंकड़ों के आधार पर तेलंगाना के राज्य प्रदर्शन समग्र सूचकांक (एसपीसीआई) में सुधार हुआ है। एसपीसीआई राज्यों के वित्तीय प्रदर्शन और बाजार विकास दोनों को मापता है।

वर्ष 2014-15 से 2018-19 तक तेलंगाना के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का औसत ऋण 16.1 फीसदी था, जो देश के राज्यों में सबसे कम है।

राज्य के वित्त मंत्री टी. हरीश राव ने विपक्षी दलों के इस दावे को खारिज करते हुये कि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सरकार ने राज्य को कर्ज के दलदल में धकेल दिया है, कहा कि तेलंगाना देश के सबसे कम कर्ज वाले राज्यों में से एक है।

हरीश राव ने पिछले साल विधानसभा में कहा था कि तेलंगाना का कर्ज का बोझ जीएसडीपी का केवल 22.8 प्रतिशत है, जो एफआरबीएम अधिनियम के तहत सीमा के भीतर है। तेलंगाना तब देश में नीचे से तीसरे स्थान पर था।

उन्होंने कहा, केंद्र का कर्ज का बोझ जीडीपी का 62.2 फीसदी है जबकि तेलंगाना का कर्ज का बोझ जीएसडीपी का सिर्फ 22.8 फीसदी है।

आरबीआई ने हाल ही में यह भी खुलासा किया कि तेलंगाना देश की अर्थव्यवस्था में चौथा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। हैंडबुक ऑफ स्टैटिस्टिक्स ऑन द इंडियन इकोनॉमी 2020-21 के अनुसार तेलंगाना द्वारा देश में मौजूदा कीमतों पर शुद्ध राज्य मूल्य वर्धित (एनएसवीए) 2014-15 में 4,16,930 करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-21 में 8,10,503 करोड़ रुपये हो गया।

सत्तारूढ़ टीआरएस के नेताओं का कहना है कि यह योगदान इस तथ्य को देखते हुए महत्वपूर्ण है कि तेलंगाना भौगोलिक क्षेत्र के मामले में 11वां और जनसंख्या के मामले में 12वां सबसे बड़ा राज्य है।

इस सप्ताह जारी तेलंगाना राज्य सांख्यिकीय सार रिपोर्ट के अनुसार, अस्थायी अनुमान बताते हैं कि 2020-21 में तेलंगाना का जीएसडीपी मौजूदा कीमतों पर 9,80,407 करोड़ रुपये था। वर्ष 2012-13 और 2020-21 के बीच, तेलंगाना की औसत वार्षिक जीएसडीपी वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत थी और भारत की जीडीपी विकास दर 5.1 प्रतिशत थी।

राज्य ने 2021-22 के लिये अर्थव्यवस्था को अत्यधिक प्रभावित करने वाली महामारी के बावजूद 2.31 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया। वर्ष 2020-21 में बजट 1.82 लाख करोड़ रुपये के था।
वित्त वर्ष 22 के बजट में 1.69 लाख करोड़ रुपये का राजस्व व्यय और 29,046 करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय शामिल था। पिछले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 33,191 करोड़ रुपये से बढ़कर 45,509 करोड़ रुपये हो गया।

तेलंगाना की विकास दर लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2018-19 में जीडीपी विकास दर 6.5 प्रतिशत के मुकाबले यह 9.8 प्रतिशत थी।
एक अन्य प्रमुख प्रदर्शन संकेतक में, तेलंगाना की प्रति व्यक्ति आय 2011-12 में 91,121 रुपये से बढ़कर 2020-21 में 2,37,632 रुपये हो गयी। यह 2011-12 में 63,462 रुपये से लेकर 2020-21 में 1,28,829 रुपये के अखिल भारतीय औसत के विपरीत है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में सबसे कम 0.7 प्रतिशत बेरोजगारी है।

अर्थशास्त्री पापा राव का मानना है कि तेलंगाना को कोई वित्तीय चिंता नहीं है क्योंकि केंद्र से समर्थन नहीं मिलने के बावजूद यह अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
उन्होंने कहा, कुछ कर्ज अनुचित रूप से लिये गये थे, लेकिन राज्य के पास उन्हें प्रबंधित करने की क्षमता है। यह अपने स्वयं के संसाधन उत्पन्न कर सकता है।

उन्होंने कहा कि चालू वर्ष के दौरान राज्य के कर राजस्व में वृद्धि हुई है। हालांकि, उन्होंने कहा कि राज्य को नये ऋण जुटाने में सतर्क रहना चाहिये।

उनके अनुसार, तेलंगाना बहुत कम समय में एक प्रगतिशील राज्य के रूप में उभरा है और हैदराबाद विकास इंजन के रूप में बड़े पैमाने पर निवेश को आकर्षित कर रहा है। राज्य ने सिंचाई परियोजनाओं और मिशन भगीरथ के रूप में परिसंपत्ति बनायी है, जिसमें हर घर में पेयजल आपूर्ति की परिकल्पना की गयी है।

पापा राव ने कहा, राज्य में 50 लाख दलित परिवार हैं। इतना बड़ा फंड जुटाना बहुत मुश्किल है। इसमें कई साल लग सकते हैं और वांछित परिणाम नहीं मिल सकते हैं।
यह बताते हुए कि दलितों की बड़ी आबादी कृषि मजदूर है, अर्थशास्त्री ने कहा कि नकदी के बजाय भूमि का वितरण अधिक व्यावहारिक होता।

40,000 करोड़ रुपये से अधिक के कल्याणकारी बजट के साथ यह राज्य देश में कल्याणकारी योजनाओं के मामले मेंं नंबर एक होने का दावा करता है। यह सामाजिक सुरक्षा पेंशन से लेकर विभिन्न श्रेणियों तक की कल्याणकारी योजनाओं को लागू कर रहा है, गरीब लड़कियों की शादी के लिये, रायथु बंधु जिसके तहत प्रत्येक किसान को हर एकड़ के लिये वार्षिक निवेश सहायता के रूप में 10,000 रुपये मिलते हैं।

हालांकि, विपक्षी कांग्रेस पार्टी के नेता दासोजू श्रवण का कहना है कि कल्याणकारी कार्यक्रमों को अंतत: लोगों को सशक्त बनाना चाहिये।
उन्होंने कहा, रायथु बंधु के बावजूद किसानों की आत्महत्या नहीं रूकी है। पिछले 4-5 वर्षों के दौरान 8,000 किसानों ने अपना जीवन समाप्त कर लिया है। किसान बंधु नहीं चाहते हैं, वे अपनी मेहनत की फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य चाहते हैं और कृषि उपज के लिए बाजार का समर्थन चाहते हैं।

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता का मानना है कि टीआरएस सरकार मतदाता को आकर्षित करने वाले कार्यक्रमों पर ज्यादा ध्यान दे रही है लेकिन मतदाता सशक्तिकरण कार्यक्रमों पर नहीं। उन्होंने कहा, इसके कारण राज्य एक गंभीर ऋण जाल में फंस गया है और आज हम एक आर्थिक रूप से दिवालिया राज्य हैं। हमारे पास वेतन के लिये पैसा नहीं है और हमारे पास ठेकेदारों को भुगतान करने के लिए पैसा नहीं है।

कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार राज्य भर में अधिक से अधिक शराब और बार की दुकानें खोलकर लोगों को शराब का आदी बना रही है।
उन्होंने कहा,यह सरकार रायथु बंधु के तहत पेंशन और कुछ पैसे दे रही है लेकिन शराब पर बिक्री कर के माध्यम से प्राप्त अपने संसाधनों को खत्म कर रही है। देखें इन 7-8 वर्षों में शराब राजस्व कैसे बढ़ा है।

शराब की बिक्री से प्राप्त राजस्व, जो 10,833 करोड़ रुपये था, 2020-21 में बढ़कर 27,888 करोड़ रुपये हो गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि टीआरएस सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सृजन जैसे क्षेत्रों की पूरी तरह से अनदेखी की है।

श्रवण ने कहा ,मुख्यमंत्री गर्व से कहते हैं कि हैदराबाद में एक निजी विला की कीमत 25 करोड़ रुपये है और अभी भी लोग आ रहे हैं और खरीद रहे हैं। क्या यह एक विकास संकेतक है। यह खराब शासन का संकेतक है। प्रबंधन में हम प्रदर्शन का विश्लेषण करते समय इसे महत्वपूर्ण घटना विश्लेषण कहते हैं। मुख्यमंत्री ने आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं, जो उनकी सहज मानसिकता को दर्शाती हैं कि वे विकास को कैसे देखते हैं।

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