“कोमल है कमजोर नहीं है-शक्ति का नाम ही नारी है”

मंजुला सिंह

इन पंक्तियों को चरितार्थ किया मंजुला सिंह जी ने। एक तरफ जब महिलाएं गहने रूपी जंजीरों में जकड़ कर, पावों में सामाजिक बेड़िया पहनकर और घूंघट की ओट में घर की चारदीवारी में पूरा जीवन बिता देती हैं।

और पुरुष प्रधान समाज द्वारा कभी मर्यादाओं के नाम पर, कभी लोक-लाज के नाम पर। नारी समाज को दबाकर रखा जाता रहा हो, उसे सिर्फ एक घर की वस्तु समझा जाता रहा हो.. खेलने का खिलौना समझा जाता रहा हो… पांव की जूती समझा जाता रहा हो… जब नारियों की इतनी विकट परिस्थिति समाज में हो तो उसी समाज में अपनी सारी बंदिशों को तोड़कर अपने दम पर अपनी पहचान बनाने और पथरीली चट्टान में दूब खिलाने का कार्य किया मंजुला सिंह जी ने।

मालूम हो कि मंजुला सिंह ,इनका जन्म 16 नवम्बर 1974 को ग्राम पटेल नगर जिला प्रयागराज (इलाहाबाद) उत्तर प्रदेश के एक सम्पन्न परिवार मे हुआ। इनके परिवार में पिता रामायण सिंह और माता ऊषा उर्फ यशोदा सिंह, दो बहन और एक भाई और अपने सभी भाई-बहनों में सबसे बड़ी है।

मंजुला सिंह जी ने शिवाजी इंटर कालेज से 11वीं तक शिक्षा ग्रहण की, उसके बाद इनका विवाह मध्य प्रदेश के ग्राम अतरैला -11तहसील त्योथर जिला रीवा के श्री नारेन्द्र सिंह के साथ 13 मई 1989 को संपन्न हुआ। ससुराल मे आर्थिक स्थिति अच्छी ना हो पाने और ससुर जी के देहांत हो जाने के कारण इनके पति जो कि घर में सबसे बड़े थे उनके ऊपर अपनी तीन बहनों और तीन भाइयों की भी जिम्मेदारी कंधों पर थी।

आर्थिक स्थित खराब होने की वजह से इन्हे बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा..  25वर्ष की उम्र मे इनके यूट्रेस (बच्चेदानी) मे कैंसर हो गया। जिस कारण डॉक्टरों द्वारा इनकी जान बचाने के लिए इनका ऑप्रेशन कर दिया गया । अपने देवरो व ननदो की पढ़ाई उपरांत उनकी शादी भी इन्होंने करवाई…  पारिवारिक जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद इन्होंने भोजमुक्त विश्व विद्यालय मनगवां से बी.ए. भी किया.. इनके खुद के भी दो बेटे हैं..  अपने परिवार की सभी जिम्मेदारी संभालने के अलावा इनकी अभिरुचि बाल्यकाल से ही विशेष रूप से सामाजिक कार्यों में भी रही…  मंजुला जी अपने गांव के विकास के लिए सदैव चिंतित रहती थी… और उसके लिए हर संभव प्रयास करती रहती थी।

इन्होंने आर्थिक तंगी होने के बावजूद भी कभी हिम्मत नहीं हारी और अपने हौसलों के बल पर यह लगातार सामाजिक क्षेत्र में अपना पताखा फहराती गई।
सकारात्मक सोच और दृढ़ता से लक्ष्य प्राप्ति के लिये मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न को सहते हुये भी अपना धैर्य नहीं खोया। जब इन्होंने घर से बाहर कदम रखा.. तो बहुत सारी समस्यायों का सामना करना पड़ा…  शुरू-शुरू में मंजुला जी से लोगों द्वारा तरह-तरह के सवाल पूंछे जाते थे.. जैसा की अशिक्षित ग्रामीण इलाके मे अक्सर होता है,  कहां जाती हो??.. किस लिये जाती हो?? इत्यादि-इत्यादि??

इन सब झंझावातों को सहते हुए मंजुला जी ने सर्व प्रथम अपने ग्राम पंचायत की महिलाओं को जागरूक करने के लिये प्रत्येक विभाग के कर्मचारियों को बुलाकर चौपाल के माध्यम से महिलाओं को जागरूक किया। क्षेत्र की 20-25 बच्चियों को निःशुल्क सिलाई का प्रशिक्षण दिया…
त्योंथर मे बीस वर्ष से प्रस्तावित सौ बिस्तरीय चिकित्सालय की लड़ाई लड़ी,अकेली हाईकोर्ट मे जनहित याचिका दायर की जो कि अभी लम्बित है।
इनके अथक प्रयास से त्योंथर तहसील परिसर में सार्वजनिक शुलभ शौंचालय का निर्माण हुआ।

अपने अथक प्रयास से अपने गांव को सड़क मार्ग से जुड़वाया।  इन्होंने महिला बाल विकास विभाग के सहयोग से एक बाल विवाह भी रूकवाया।
पर्यावरण और जल संरक्षण पर भी ये लोगों को जागरूक कर रही हैं।  इन्हें मानसिक रूप से परेशान किया गया लेकिन इन्होने सिर्फ अपने लक्ष्य को याद रखा।
पहले जो महिलायें सवाल करती थीं.. आज वही कहती हैं अब मंजुला दीदी आप कार्यक्रम कब करवायेंगी।

पहले जो लोग इन पर हंसते थे आज वही सभी क्षेत्रीय लोग इनके द्वारा दिये योगदान की सराहना करते हैं। आज भी इनका एक ही सपना है हर एक गांव सपनों के गांव जैसा हो… जहां हरियाली हो.. खुशहाली हो.. आपसी भाईचारा हो।

मंजुला जी के हौसले को देख कर हर महिला को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.. और कुछ तो लोग कहेंगे-लोगों का काम है कहना की तर्ज पर सिर्फ और सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.. और अपने दम पर अपनी पहचान बनानी चाहिए.. क्योंकि,

बाजुओं में तेरे दम है तो किस्मत तेरे साथ हैं,  गर दिल में हौसला है, तो हर मंजिल तेरे पास है..
जज्बा तेरे नस-नस में जो, भरा है कामयाबी का,  तो उठके जरा देख.. तेरे कदमों तले आकाश है….

                                                                                                                                                       त्यौथर, रीवा से ज्योती सिंह की रिपोर्ट.

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