नई दिल्ली| स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कैंसर के 90 प्रतिशत मामले मुंह और फेफड़े से संबंधित पाए जा रहे हैं। साथ ही मरीजों में अन्य तरह के कैंसर भी देखे जा रहे हैं। सावधानी बरतकर कैंसर को पनपने से रोका जा सकता है।
ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वेक्षण 2017 के अनुसार, देश में धूम्रपान करने वाले 10.7 प्रतिशत वयस्क भारतीय (15 वर्ष और उससे अधिक) की तुलना में धूम्रपान धुआं रहित तंबाकू (एसएलटी) का सेवन करने वाले 21.4 प्रतिशत हैं। इससे त्रिपुरा (48 प्रतिशत), मणिपुर (47.7 प्रतिशत), ओडिशा (42.9 प्रतिशत) और असम (41 प्रतिशत) सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश (3.1 प्रतिशत), जम्मू और कश्मीर (4.3 प्रतिशत), पुदुच्चेरी (4.7 प्रतिशत) और केरल (5.4 प्रतिशत) सबसे कम प्रभावित राज्य हैं।
चिकित्सकों का कहना है कि जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान धुआं रहित तंबाकू का सेवन करती हैं, उनमें एनीमिया होने का खतरा 70 प्रतिशत अधिक होता है। यह कम जन्म के वजन और फिर भी दो-तीन बार जन्म के जोखिम को बढ़ाता है। महिलाओं में धुआं रहित तंबाकू उपयोगकर्ताओं में मुंह के कैंसर का खतरा पुरुषों की तुलना में आठ गुना अधिक होता है।
इसी तरह धुआं रहित तंबाकू सेवन करने वाली महिलाओं में हृदय रोग का खतरा पुरुषों की तुलना में दो से चार गुना अधिक होता है। इस तरह की महिलाओं में पुरुषों की तुलना में मृत्युदर भी अधिक होती है।
वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) के संरक्षक व मैक्स अस्पताल के कैंसर सर्जन डॉ. हरित चतुर्वेदी ने कहा, “धूम्ररहित तंबाकू के उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ी है, क्योंकि पहले के तंबाकू विरोधी विज्ञापनों में सिगरेट और बीड़ी की तस्वीरें ही दिखाई जाती थीं। लोगों में धारणा बन गई कि केवल सिगरेट और बीड़ी का सेवन ही हानिकारक है, इसलिए धीरे-धीरे धुआं रहित तंबाकू की खपत बढ़ गई।”
उन्होंने कहा, “लोग लंबे समय तक तंबाकू चबाते हैं, ताकि निकोटीन रक्त में पहुंचे। इस तरह वे लंबे समय तक बैक्टीरिया के संपर्क में रहते हैं। ऐसे में कैंसर और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।“