किसानों को राहत देने का दावा करने वाली ज्यादातर कर्ज माफी योजनाएं अपने मकसद पर खरी नहीं उतर पाई हैं। कर्ज माफी की कड़ी शर्तों के चलते बड़े पैमाने पर मदद के हकदार किसान इससे वंचित रह गए हैं। हालांकि केरल में 2007 से लागू किसान कर्ज माफी योजना अन्य राज्यों के लिए किसी सीख से कम नहीं। इसमें विशेषज्ञों की एक टीम गांव-गांव जाकर किसानों के कर्ज का आकलन करती है और उसी के हिसाब से आर्थिक मदद मुहैया कराने का फैसला लेती है।
2006 के संकट से लिया सबक
साल 2006 में केरल में बड़े पैमाने पर किसान आत्महत्याओं का सिलसिला शुरू हो गया। वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में रबड़ और कालीमिर्च की कीमतों में भारी गिरावट थी। दरअसल, राज्य के किसान अच्छी कमाई के मकसद से निर्यात के लिए मुफीद इन फसलों की खेती में ज्यादा दिलचस्पी लेते थे। देखते ही देखते उन पर टूटे कहर की गूंज दिल्ली तक पहुंच गई। मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन के नेतृत्व वाली वाम सरकार हरकत में आ गई। उसने दिल्ली के मशहूर आर्थिक विश्लेषक प्रभात पटनायक को राज्य योजना बोर्ड का उपाध्यक्ष नियुक्त किया।
ब्रिटिश काल की योजना अपनाई
केरल पहुंचे पटनायक जब आर्थिक मामलों की जानकार पत्नी से किसान संकट पर चर्चा करने लगे तो उन्हें ब्रिटिश हुकूमत में पंजाब में चलाई गई उस राहत योजना की जानकारी मिली, जिसके तहत सर छोटू राम आयोग के सदस्य गांवों का दौरा कर कर्ज में डूबे किसानों की समस्या जानते थे और उसी के आधार पर आर्थिक मदद उपलब्ध कराते थे। फिर क्या था। वह अपनी टीम के साथ मिलकर योजना को मौजूदा हालातों के हिसाब से गढ़ने की कोशिशों में जुट गए। जनवरी 2007 में उनके सुझाव पर अच्युतानंदन सरकार ने केरल राज्य कृषि ऋण राहत आयोग का गठन किया।
थम गईं किसानों की खुदकुशी की घटनाएं
किसानों, कानून विशेषज्ञों, कृषि अर्थशास्त्रियों और सरकारी नुमाइंदों से लैस केरल राज्य कृषि ऋण राहत आयोग का सात सदस्यीय दल गांव-गांव घूमता है। साथ ही किसानों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर उनकी समस्याएं जानता है। कर्ज से जुड़े दस्तावेजों की पड़ताल के बाद वह फैसला लेता है कि संबंधित किसान के नाम कितनी राहत राशि जारी की जानी चाहिए। जानकारों के मुताबिक इस क्रांतिकारी योजना की बदौलत हर उस किसान को मदद पहुंचाना मुमकिन हो पाया, जो वाकई में इसका हकदार था। नतीजा यह हुआ कि दो साल में वहां किसान खुदकुशी में भारी कमी आई। 2018 आते-आते यह लगभग थम-सी गई।
लाभ की शर्तें
कृषि ऋण बैंकों या सहकारी समितियों से लिया गया हो
· संबंधित किसान के पास पांच एकड़ से ज्यादा भूमि न हो
· पट्टे पर खेती करने वाले भी शामिल, बशर्ते अधिकतम पांच एकड़ पर खेती कर रहे हों
· राहत के लिए अर्जी देने वाले किसानों की सालाना आय दो लाख रुपये से ज्यादा न हो
· 50 हजार रुपये से अधिक कर्ज लेने की सूरत में अधिकतम एक लाख की राहत मिलेगी
आंकड़ों में राहत
· 11354 किसान साल 2018 में इस योजना से लाभान्वित हुए हैं
· 11 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया सरकार ने योजना के तहत