केंद्रीय बजट-२०२२: कोरोना महामारी के बीच “विश्‍वास का बजट” या “गीला पटाखा”?

मिडिल क्लास यानी आम आदमी की उम्मीदें हर बार की तरह इस बार भी टैक्स में राहत मिलने से ही जुड़ी थीं। मंगलवार को पेश किए गए केंद्रीय बजट-२०२२-२३ में टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया।

इसके बाद से सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी पीड़ा ज़ाहिर करनी शुरू कर दी और देखते-देखते मीम्स की बाढ़ सी आ गई। जहां केंद्रीय मंत्री और नेता इसे आत्मनिर्भर भारत का बजट बता रहे थे, वहीं विपक्षी पार्टियों के नेता ने इसे “गीला पटाखा” से लेकर ”पेगासस स्पिन बजट” तक कह डाला।

हालाँकि, हम सब जानते हैं कि केंद्रीय बजट-२०२२ में इनकम टैक्स स्लैब में कोई फेरबदल नहीं किया गया, लेकिन इसके बावजूद मोदी सरकार ने कॉपोरेटिव (सहकारिता) टैक्स को घटाने के साथ उस पर लगने वाला सरचार्ज को कम किया है। मंगलवार (एक फरवरी, २०२२) को संसद में ९० मिनट के अपने चौथे बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि पेंशन पर लगने वाले टैक्स में कर्मचारियों को छूट दी जाएगी। जहां क्रिप्टो करेंसी से होने वाली आय पर 30 फीसदी टैक्स चुकाना होगा। वहीं, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) एक नई डिजिटल करेंसी लेकर आएगा।

लेकिन, सवाल ये उठता है कि क्या ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था में इससे फ़ायदा होगा। ये सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है कि कुल आबादी का तक़रीबन दो-तिहाई हिस्सा भारत के ग्रामीण इलाक़ों में रहता है। और हाल में पेश किये गये किसी भी केंद्रीय बजट में इन इलाक़ों के साथ इंसाफ़ नहीं किया गया है। इस ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ज़बरदस्त अहमियत और इंडिया बनाम भारत वाली बहस को लेकर ज़ोर-शोर से बातें तो होती रहती हैं,लेकिन इसके बावजूद, ग्रामीण भारत को प्रभावित करने वाले कई मंत्रालयों और ख़ासकर ग्रामीण आजीविका और कल्याण से जुड़े तीन मंत्रालय- कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी के आवंटन में इन ज़्यादतर सालों में गिरावट ही आई है।

२०१९-२० में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना को ३,७४५ करोड़ रुपये के बजट अनुमान से २,७६० करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान की बड़ी कटौती का सामना करना पड़ा था। २०२०-२१ में इस कटौती ने ३,७०० करोड़ रुपये के बजट अनुमान से २,५५१ करोड़ रुपये की भारी कटौती करके ख़ुद को दोहराया। और इस बार भी कृषि बजट को पहले की तरह किस्मत में कटौती ही मिली। असल में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए जितने पैसों की ज़रूरत है,उससे कम का आवंटन भारत की विरासत से मिली समस्या रही है।

इसके बावजूद केंद्र सरकार ने किसानों के लिए दो भरोसा दिए हैं। पहला, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रिकॉर्ड खरीद की जाएगी। इसके लिए सरकार ने २.३७ लाख करोड़ के बजट की व्यवस्था की है। दूसरा, आर्गेनिक खेती और खासकर इसे गंगा नदी के किनारे बढ़ावा दिया जाएगा। कृषि मंत्रालय के दायरे को भी बढ़ाने की घोषणा की है। कृषि में ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ाया जाएगा। लेकिन किसान और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की दिशा में बजट में कुछ संतोषजनक नहीं है। मनरेगा के बजट को भी सरकार ने कम किया है। किसानों को क्या मिला है, इसे लेकर किसान नेता राकेश टिकैत कुछ भी नहीं बता पा रहे हैं।

सरकार द्वारा धान, गेहूं के एमएसपी पर खरीद के डिजिटल भुगतान को झुनझुना बता रहे हैं। राकेश टिकैत कहते हैं कि सरकार को २३ एमएसपी वाली फसलों को ही डिजिटल सिस्टम से जोड़ देना चाहिए था।

इसके ठीक विपरीत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में कोरोना काल के दौरान स्कूली शिक्षा को लेकर पैदा हुई चुनौतियां का असर साफ दिखाई दिया। वित्त मंत्री ने डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना, ई-विद्या के विस्तार की घोषणा की है। शिक्षा के क्षेत्र में क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई, २०० चैनल के माध्यम से शिक्षा को धार देने की घोषणा की है। आईटीआई में ड्रोन स्किल की शिक्षा देने, डिजिटल एजुकेशन को बढ़ाने पर जोर दिया है।

बजट में वित्त मंत्री की घोषणा से साफ है कि सरकार पर खर्च घटाने का भारी दबाव है। राजकोषीय घाटा भी बढ़ा है। इसमें रोजगार बढ़ाने के कोई खास उपाय नहीं दिखाई दे रहे हैं। २५००० किमी राजमार्ग निर्माण, एमएसएमई को दो लाख करोड़ रुपये की सहायता से कुछ सहूलियत आ सकती है, लेकिन इससे रोजगार की दिशा में कोई तेजी आने की संभावना कम है। केंद्र सरकार ने रेलवे में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लक्ष्य को मंत्र के तौर पर अपना लिया है। 400 वंदे भारत ट्रेन चलाने की घोषणा हुई है।

यह सब उपाय देश पर पड़ रहे बेरोजगारी के दबाव को कम करने में नाकाफी दिखाई दे रहे हैं। सरकार खर्च के दबाव को महसूस कर रही है। वित्त मंत्री ने भी कहा कि अगले साल तक इसे कम किया जाएगा। उससे साफ है कि वित्त वर्ष २०२२-२३ में भी मंहगाई की रफ्तार पर कोई ब्रेक नहीं लगने वाला है। हालांकि सरकार ने सामाजिक-आर्थिक बजट के क्रम में नए वित्त वर्ष में 5.5 लाख करोड़ घरों में जल से नल और ४८ हजार करोड़ की लागत से प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ८० लाख लाख घरों के निर्माण का लक्ष्य रखा है। कुल मिलाकर बजट में आय बढ़ने के साधनों का आभाव दिखाई पड़ रहा है।

पिछले कई साल से मध्यम वर्ग के हाथ लगातार खाली हैं। सामान्य बाजार में रौनक गायब है। औद्योगिक क्षेत्र में कोरोना काल में हुई बड़े पैमाने पर छंटनी, नए रोजगार के अवसरों में कमी तथा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा भर्ती प्रक्रिया में शिथिलता बरतने से दबाव महसूस कर रहा है। मध्यम वर्ग के आयकरदाताओं के खाते में भी कुछ नहीं आया। टैक्स में छूट, टैक्स अदायगी की सीमा में 80सी के तहत छूट जैसे प्रावधानों में केंद्र सरकार ने किसी बदलाव की कोई घोषणा नहीं की। वित्त मंत्री ने माना कि आयकरदाताओं ने अच्छा योगदान दिया। केंद्र सरकार के खजाने में जीएसटी से १.४० करोड़ रुपये की रिकार्ड वसूली हुई, लेकिन मध्यम वर्ग के हाथ पूरी तरह से खाली हैं।

फिर भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले आए इस बजट में वित्तमंत्री ने इसे “अमृत काल के अगले २५ सालों का ब्लू प्रिंट” बता डाला। उन्होंने कहा, “इस बजट से ६० लाख नई नौकरियों का सृजन होगा। अगले तीन साल में ४०० नई जेनरेशन की वंदे भारत ट्रेनें लाई जाएंगी और अगले तीन सालों में १०० पीएम गति शक्ति कार्गो टर्मिनल विकसित होंगे। साथ ही ई-चिप लगे पासपोर्ट इसी साल आएंगे। पोस्ट ऑफिसों यानी डाकघरों को कोरबैंकिंग सिस्टम से लैस किया जाएगा। 5जी सेवा इसी साल आएगी और गांवों को ब्रॉडबैंड से जोड़ा जाएगा।”

संसद में मौजूद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने इस बजट को “गीला पटाखा” करार देते हुए कहा कि इसमें कोई दम और आवाज नहीं है। इस बीच, एक्सपर्ट्स भी बोले कि इस बजट से मिडिल क्लास को कुछ खास नहीं मिला। बता दें कि यह सीतारमण का चौथा और नरेंद्र मोदी सरकार का 10वां बजट है और इस बार का बजट भी कागजरहित (Paperless Budget) था। विपक्ष की ओर से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी औऱ कांग्रेस के वरिष्ठ सासंद जयराम रमेश ने भी अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दी। ममता बनर्जी ने बजट-२०२२ पर निराशा जताते हुए कहा कि बेरोज़गारी और महंगाई की मार झेल रहे आम लोगों के लिए बजट में कुछ भी नहीं है।

उन्होंने अपने एक ट्वीट में बजट को ”पेगासस स्पिन बजट” करार दिया। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ”बेरोज़गारी और महंगाई से कुचले जा रहे आम लोगों के लिए बजट में कुछ नहीं है, सरकार बड़ी-बड़ी बातों में खो गई है, जिसका कोई मतलब नहीं है, ये एक पेगासस स्पिन बजट है।’’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाते हुए कहा कि मोदी सरकार एक तरफ़ पर्यावरण की बात करके और दूसरी तरफ़ पारिस्थितिकी तंत्र को नुक़सान पहुंचाने वाले रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट को बढ़ावा देकर बर्बादी के रास्ते पर चल रही है। जयराम रमेश की ये टिप्पणी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में उस एलान के बाद आई जिसमें उन्होंने बुनियादी ढांचा विकास की परियोजनाओं को बढ़ावा देने की घोषणा की है।

जयराम रमेश ने ट्विटर पर कहा, “एक तरफ़ तो बजट में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के संरक्षण की बात कर रही है तो दूसरी तरफ़ पारिस्थितिकी तंत्र को नुक़सान पहुंचाने वाली रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट्स योजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस मोर्चे पर मोदी सरकार बर्बादी के रास्ते पर चल रही है।” मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय जयराम रमेश पर्यावरण मंत्री के पद पर थे। इस समय वे कांग्रेस पार्टी के राज्य सभा में चीफ़ व्हीप हैं।

पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा है कि आज का बजट भाषण किसी एफएम द्वारा पढ़ा गया अब तक का सबसे पूंजीवादी भाषण है। ‘गरीब’ शब्द पैरा ६ में केवल दो बार आता है और हम एफएम को यह याद रखने के लिए धन्यवाद देते हैं कि इस देश में गरीब लोग हैं। कहा कि लोग इस पूंजीवादी बजट को खारिज कर देंगे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी बजट को दिशाहीन बताया। कहा- इसमें किसानों, महिलाओं और युवाओं को देने के लिए कुछ भी नहीं है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट में कहा, “हमारे देश में चारों ओर निराशा है, हमारे युवाओं का कोई भविष्य नहीं है और एक बार फिर मोदी सरकार का बजट इस दर्दनाक वास्तविकता को पूरी तरह से नजरअंदाज करता है।”

उधर बचाव में सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भविष्य को ध्यान में रखकर बनाए गए इस बजट को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बधाई दी। उन्होंने ट्वीट किया, “भारत के अमृतकाल में आत्मनिर्भर भारत का बजट पेश करने के लिए पीएम मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी को बधाई। उन्होंने आगे कहा कि मल्टी मॉडल इन्फ्ऱा और निवेश के नए रास्तों पर ज़ोर से भारत उभरती वैश्विक अर्थव्यवस्था के केंद्र में आ सकेगा”

जबकि केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया को ट्वीट करके इसकी सराहना की। उन्होंने कहा, “वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को २०२२-२३ का बेहतरीन बजट पेश करने के लिए बधाई। यह एक ऐसा बजट है जो मेक इन इंडिया को प्रोत्साहन देगा, मांग में बढ़ोतरी करेगा और एक मज़बूत, समृद्ध और आत्मविश्वास से परिपूर्ण भारत का निर्माण करेगा।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी मंगलवार को पेश वित्त वर्ष २०२२-२३ के केंद्रीय बजट को ‘काफी संतुलित’ बताया जो कोविड बाद सुधार के लिये काफी जरूरी था । संघ से जुड़े संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने मांग की कि सरकार को क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए ।

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने बजट पर प्रत‍िक्र‍िया देते हुए १०० साल के व‍िश्‍वास का बजट बताया। उन्‍होंने कहा क‍ि बजट में हर वर्ग का ध्‍यान रखा गया है। इससे आने वाले समय में न‍िवेश बढ़ेगा और युवाओं के ल‍िए रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। उन्‍होंने कहा यह कोरोना महामारी के बीच व‍िश्‍वास का बजट है।

– डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी ,
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