कम बारिश से बिहार में खेत सूखे, आसमान की ओर ताक रहे किसान

बिहार में अच्छी बारिश नहीं होने के कारण सूखे की आशंका प्रबल हो गई है। रूठे मानसून के कारण किसान मायूस हो गए हैं।
राज्य में कम बारिश होने के कारण राज्यभर में करीब 20 फीसदी ही धान की रोपनी हो पाई है। कई जिलों में तो धान की बीज (बिचड़े) डालने तक की बारिश नहीं हुई है।

आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में अब तक 263 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन नौ जुलाई तक 191.7 मिलीमीटर ही बारिश हुई है।

बताया जा रहा है कि राज्य के 20 से 22 जिले ऐसे हैं जहां सामान्य से 40 फीसदी या उससे भी कम बारिश हुई है।
कृषि विभाग के अनुसार, राज्य में बारिश नहीं होने के कारण धान और मक्का की खेती पर असर पड़ना अब तय माना जा रहा है। कहा जाता है कि आद्र्रा नक्षत्र में झमाझम बारिश होने के बाद धान की रोपनी होने के बाद धान की उपज अच्छी होती है, लेकिन आद्र्रा नक्षत्र गुजर जाने के बाद भी कहीं भी झमाझम बारिश नहीं हुई है।

राज्य के भोजपुर, रोहतास, कैमूर, भागलपुर सहित कई ऐसे जिले हैं, जिनकी पहचान धान की अच्छी उपज के रूप में की जाती है लेकिन इन जिलों में भी आवश्यकता से कम बारिश होने के कारण किसान मायूस हो गए हैं।

समस्तीपुर, पूसा स्थित राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. एस के सिंह कहते हैं कि लंबी अवधि की धान की खेती के लिए मई, जून से 10 जुलाई तक बिचड़ा डालना होता है। मध्यम अवधि की धान की खेती के बिचड़ा डालने का समय 25 जून तक है। उन्होंने कहा कि बिचड़ा डालने के लिए किसानों को अब बारिश का इंतजार नहीं करना चाहिए, अब बिचड़ा बचाने के लिए किसानों को उपाय करना होगा।

उन्होंने बताया कि धान की अच्छी उपज के लिए रोपनी 15 से 20 जुलाई तक समाप्त हो जानी चाहिए।
पूसा के राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के एक अन्य कृषि वैज्ञानिक एन के सिंह मानते हैं कि पिछले 10 वर्षों से धान की खेती के मौसम में ऐसी ही स्थिति बनती रही है। उन्होंने कहा कि धान की फसल के लिए कई तरह के आधुनिक तकनीक के बीज आ गए हैं। उन्होंने साफ लहजे में कहा कि अब धान की सीधी बुआई यानी गेहूं की तरह बुआई करना ही एकमात्र विकल्प है। उन्होंने कहा कि कई प्रकार के बीज कम समय में ही तैयार होते हैं।

कृषि विभाग के अनुसार, इस साल बिहार में 34 लाख 69 हजार हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 36 हजार 718 हेक्टेयर में बिचडे लगाए गए हैं। बताया जाता है कि इसमें से 190 गांवों के 22 हजार एकड़ से ज्यादा की भूमि में जलवायु अनुकूल कृषि तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।

इधर, मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो राज्य में मानसून पहुंचने के बाद कमजोर पड़ गया, जिस कारण अच्छी बारिश नहीं हुई। इधर, किसान भी सूखे को देखकर हताश हैं। औरंगाबाद जिले के एक किसान श्याम जी बताते हैं कि अब तक धान की रोपाई की कौन कहे, धान के बिचड़े (पौध) को बचाने में ही किसान जुटे हैं। उपज की बात छोड़ दीजिए, इस वर्ष अगले वर्ष के लिए बिचड़े ही हो जाए वही किसानों के लिए बड़ी बात होगी।

इधर, राज्य के कृषि विभाग के एक अधिकारी कहते हैं कि सरकार किसी भी आपदा से निपटने को तैयार है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सूखे की आशंका को लेकर अधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा की है।

सूखे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उर्जा विभाग ने किसानों को प्राथमिकता के आधार पर सिंचाई के लिए बिजली उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। इसके तहत किसानों को कम से कम आठ घंटे सिंचाई के लिए बिजली उपलब्ध कराई जाएगी। नहरों से भी सिंचाई के प्रयास किए जा रहे हैं। कृषि विभाग किसानों के बीच वैकल्पिक फसल उपजाने के लिए भी प्रचार प्रसार करने की तैयारी में है।

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