‘दंगल’ और ‘छिछोरे’ जैसी कहानियां पर्दे पर कहने वाले निर्देशक नितेश तिवारी की फिल्म ‘बवाल’ आज प्राइम वीडियो पर रिलीज हो चुकी है. वरुण धवन और जाह्नवी कपूर स्टारर ये फिल्म यूं तो एक लव-स्टोरी है, लेकिन हिंदी सिनेमा की आम सी दिखने वाली लव स्टोरी नहीं है, बल्कि जरा हटके है. और साथ में है फिल्म में इस्तेमाल किया गया ‘वर्ल्ड वॉर 2’ यानी द्वितीय विश्व युद्ध की वो झलकियां जो इस कहानी में एक्साइटमेंट और बढ़ा देती हैं. ये सब हमने ट्रेलर में देखा, लेकिन क्या ये फिल्म आपको इतिहास की गलियों से लेते हुए मनोरंजन के चौबारे तक पहुंचाएगी, तो आइए आपको इस रिव्यू में बताते हैं.
क्या कहती है कहानी
ये कहानी है अज्जू भैया यानी अजय दीक्षित (वरुण धवन) की जिनका पूरे लखनऊ में अलग ही भौकाल सेट है. किसी के लिए वो ‘बस कलेक्टर बनते-बनते रह गए’ तो किसी के लिए वो ‘आर्मी ऑफिसर बनते-बनते रह गए’. उन्होंने अपने माहौल को सेट करने वाली कुछ ऐसी कहानियां पूरे शहर को सुना रखी हैं कि हर कोई उनके इस माहौल का दीवाना है. हालांकि असल में अज्जू भैया अनमने मन से बच्चों को एक स्कूल में इतिहास पढ़ाते हैं. शादी उनकी हुई है निशा यानी जाह्नवी कपूर से जो शादी करते वक्त उनके स्टेटस के हिसाब से परफेक्ट लड़की थीं और इसीलिए अज्जू भैया ने इतनी सुंदर दिखने वाली टॉपर निशा से शादी कर ली. लेकिन इस शादी में एक ऐसी परेशानी आई कि अज्जू भैया को ये शादी अपनी जिंदगी का ‘मिस फायर’ लगने लगी. अब अज्जू और निशा की गाड़ी कैसे पटरी पर आती है और क्या इनके बीच लव-स्टोरी पनप पाती है, बस यही इस फिल्म की कहानी है.
क्या खटकता है
कहानी की शुरुआत में अज्जू भैया के भौकाल का टैंपू सही अंदाज में सैट किया गया है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है अज्जू भैया की पर्सनेलिटी का खोखलापन इस कहानी में भी दिखने लगता है. कहानी का असली पॉइंट है, अजय का इस कदर डर जाना कि वो बस बचने के लिए कोई उपाय ढूंढता है. लेकिन यूरोप जाकर बच्चों को इतिहास पढ़ाना, और इसके लिए एक मिडिल क्लास पिता का 10-12 लाख खर्च करना ये प्लॉट ही थोड़ा अटपटा; लगता है. वर्ल्ड वॉर 2 की जगहों पर जाकर उन किस्सों के जरिए आज के आंतरिक युद्ध को दर्शाने की कोशिश एक अच्छा प्रयास है, लेकिन दिक्कत है कि आप इस बात से ही उतना कनवेंस या एक्साइट नहीं हो पाते.
हालांकि एक प्रेम कहानी को पकने और पनपने के लिए जिस ठहराव और धैर्य की जरूरत है, वो इस फिल्म में आपको बखूबी देखने को मिलेगी. कहानी का फर्स्ट हाफ जहां आपको हंसाता है, तो वहीं सेकंड हाफ में कई इमोशनल सीन सोचने पर मजबूर करते हैं.
निर्देशक नितेश तिवारी हमें ‘दंगल’ और ‘छिछोरे’ जैसी कहानियां दिखा चुके हैं, जो अपने हर सीन के बाद दूसरे सीन को देखने और उससे जुड़े रहने की चुंबकीय शक्ति रखती है. लेकिन ‘बवाल’ नितेश की पुरानी दो फिल्मों की लीग में उस स्तर को आगे बढ़ाने में तो नहीं जुड़ पाएगी. स्क्रिप्ट का ये ढीलापन ही इस फिल्म का सबसे बड़ा ड्रॉबैक है. निखिल महरोत्रा, श्रेयस जैन, पीयूष गुप्ता और खुद नितेश तिवारी ने मिलकर ये कहानी लिखी है, लेकिन ये 4 मिलकर भी इसकी कसावट नहीं कर पाए.
क्या दिल को भाएगा
एक्टिंग की बात करें तो यही इस फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है. वरुण धवन अपने अज्जू भैया के किरदार में बिलकुल जचे हैं. अपने इमेज खराब होने के डर से जो घबराहट उनके चहरे पर आती है, उसपर यकीन करने का मन करता है. जाह्नवी कपूर ने इस फिल्म के जरिए साबित किया है कि वो अपने क्राफ्ट को निखारने के लिए लगातार काम कर रही हैं. वो कई सीन में काफी सटल रही हैं. इस किरदार में निशा को बोलने से ज्यादा महसूस कराना था और जाह्नवी ने ये काम पूरी इमानदारी से किया है.
अपने अंदर की लड़ाई को इतिहास की गलतियों से समझने और उसे पर्दे पर उतारने की कोशिश करती ये कहानी एक नया और अच्छा प्रयास है. इस फिल्म को देखते हुए मुझे 2016 में नित्या मेहरा की फिल्म ‘बार बार देखो’ की याद आई, जो अपने रिश्तों की गलतियों को समझाने के लिए भविष्य में जाने का सहारा लेती है. सिद्धार्थ मल्होत्रा और कैटरीना कैफ की वो फिल्म फ्लॉप रही थी लेकिन ‘बवाल’ यही काम इतिहास की कहानियों को दिखाकर करती है. निर्देशक नितेश तिवारी की ये फिल्म एक अच्छा प्रयोग है, बशर्ते इसकी कहानी पर थोड़ा और काम किया जा सकता था. ये फिल्म एक बार जरूर देखी जानी चाहिए.