UN में प्रस्‍ताव से भारत की दूरी और फिर पीएम मोदी-राष्ट्रपति सीसी की बातचीत। क्या है इसके मायने?

संयुक्‍त राष्‍ट्र में हाल में लाए गए इजरायल-हमास संघर्ष संबंधी एक प्रस्‍ताव पर वोटिंग से भारत ने दूरी बनाई। यह इजरायल-हमास संघर्ष को विराम और गाजा में मानवीय सहायता पहुंचाने से जुड़ा था। इस प्रस्‍ताव के पक्ष में 121 देशों ने वोटिंग की। भारत सहित 44 सदस्‍यों ने वोटिंग से दूरी बनाकर रखी। 14 मुल्‍कों ने प्रस्‍ताव के खिलाफ मतदान किया। भारत के रुख पर विपक्ष ने तीखी नाराजगी जताई है। वहीं, सरकार ने अपने स्‍टैंड का मजबूती के साथ बचाव किया है। मतदान से दूर रहने की सबसे बड़ी वजह उसने आतंकवाद को बताया है। उसने दो-टूक कहा है कि आतंकवाद की कोई सीमा, राष्‍ट्रीयता या नस्‍ल नहीं है। दुनिया को आतंकी गतिविधियों को जायज ठहराने वालों की बातों को तवज्‍जो नहीं देना चाहिए। दूसरी ओर उसने गाजा में उभरते मानवीय संकट को लेकर चिंता भी जाहिर की है। भारत का यह रुख बिल्‍कुल सही है। यह कई चीजों को लेकर साफ मैसेज देता है। इसमें किसी तरह का घोलमेल नहीं हैं। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं…

इजरायल-हमास संघर्ष संबंधी प्रस्‍ताव से दूरी बनाकर भारत ने साफ कर दिया है कि वह आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी रखता है। वह इसे लेकर कोई समझौता नहीं करने वाला है। उसने दिखाया है कि वह मानवीय सहायता के पक्ष में है। लेकिन, आतंकवाद पर किसी तरह कोई कंप्रोमाइज नहीं करेगा। 7 अक्‍टूबर को इजरायल पर हमास के हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुले शब्‍दों में इसकी आलोचना की थी। साथ ही मुश्किल समय में इजरायल के साथ खड़े होने की बात कही थी। उन्‍होंने इसे आतंकी हमला करार दिया था। भारत आतंकवाद से दशकों से पीड़‍ित रहा है। उसने जितने आतंकी हमलों को देखा है, शायद ही दुनिया में किसी और मुल्‍क ने देखे हैं। प्रस्‍ताव से दूरी बनाकर उसने अपने स्‍टैंड पर मुहर लगा दी है। उसने बता दिया है कि जब बात आतंकवाद की आएगी तो वह अपने स्‍टैंड से रत्‍तीभर टस से मस नहीं होने वाला है। इसके जरिये उसने कनाडा जैसे देशों को भी मैसेज दिया है। उसने दिखा दिया है कि वह विदेश से भी अपने खिलाफ किसी भी तरह की आतंकी साजिश को बर्दाश्‍त नहीं करेगा।

लेकिन अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फ़तह अल सीसी से फ़ोन पर बात की। मिस्र की सरकार के बयान के मुताबिक़ दोनों नेताओं ने इसराइल के ग़ज़ा में सैन्य अभियान और उससे जुड़े ताज़ा घटनाक्रम पर चर्चा की।दोनों नेताओं ने ग़ज़ा के मानवीय संकट पर भी चर्चा की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोशल मीडिया पर बातचीत की जानकारी दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “राष्ट्रपति अल सीसी के साथ पश्चिमी एशिया में ख़राब हो रहे सुरक्षा और मानवीय हालात पर चर्चा की। हमने आतंकवाद, हिंसा और आम लोगों की जानों के नुक़सान को लेकर चर्चा की।”

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा बुद्ध और गांधी की बात करते रहे हैं। वह कई मौकों पर कह चुके हैं कि यह युग युद्ध का नहीं हैं। रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान भी दोनों देशों के प्रमुखों के साथ बातचीत कर उन्‍होंने यही बात कही थी। इजरायल-हमास संघर्ष में भी भारत ने यही बात दोहराई है।

भारत ने कहा है कि गाजा में उभरते मानवीय संकट को लेकर वह चिंतित है। उसने बताया है कि वह गाजा में मानवीय सहायता पहुंचाने को लेकर प्रत‍िबद्ध रहेगा।

मालूम हो कि इससे पहले पीएम मोदी ने फिलिस्‍तीन के राष्‍ट्रपति महमूद अब्‍बास और जॉर्डन किंग अब्दुल्लाह से भी बातचीत की थी।वैसे भी भारत शुरू से ही फिलिस्‍तीन की मांगों का समर्थन करता रहा है। वह 1947 में फिलिस्‍तीन के बंटवारे के खिलाफ खड़ा था। 1988 में वह भारत ही था जिसने फिलिस्‍तीन को एक देश के तौर पर मान्‍यता दी थी। यानी भारत के पुराने स्‍टैंड में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आया है। यह बात वह कह भी चुका है।

हालाँकि, पिछले कुछ सालों में भारत की विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। वह दूसरों के विवादों में फंसने से बचता है। कुछ यही रूस-यूक्रेन युद्ध में भी देखने को मिला था। अमेरिका और यूरोपीय देशों के चौतरफा दबाव के बावजूद व‍ह किसी भी खेमे में शामिल नहीं हुआ। उसने सिर्फ अपने हितों को तवज्‍जो दी। उसने अपने पुराने दोस्‍त रूस को बिल्‍कुल भी दगा नहीं दिया। न उसके खिलाफ खड़े देशों को नाराज किया। कुछ यही भारत ने इजरायल-हमास युद्ध में भी किया है। इजरायल और भारत के संबंध बहुत अच्‍छे हैं। वह किसी भी तरह से इन संबंधों को ताक पर नहीं रखना चाहता। उसने सही को सही और गलत को गलत कहा है।

इस बार UN में प्रस्‍ताव से दूरी बनाकर भारत ने दिखाया है कि वह अपने हितों के साथ दूसरों के लिए समझौता नहीं करने वाला है। उसने हमेशा इजरायल और फिलिस्‍तीन के बीच संतुलन रखा है। दिलचस्‍प यह है कि मुसलमानों का नेतृत्‍व करने वाले अरब देशों का नजरिया भी बीते कुछ सालों में इजरायल के प्रति बदला है। वे इजरायल का समर्थन करते दिख रहे थे। यही कारण है कि भारत ने भी अपने हितों को देखते हुए इजरायल और फिलिस्‍तीन को अलग नजरिये से देखना शुरू किया। भारत ही नहीं, ताजा प्रस्ताव पर हुई वोटिंग के दौरान दूरी बनाने वालों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन और ब्रिटेन भी थे।

आज के बदले हालात में सुरक्षा परिषद में मतदान से दूर रहने के बाद मिस्र के राष्ट्रपति से पीएम मोदी के फ़ोन कॉल को संतुलन बनाने के इसी प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। लेकिन, एक अहम सवाल ये उठता है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अल सीसी से बात करने से युद्ध के हालात पर कोई असर पड़ सकता है?

मेरी नज़र में बिल्कुल नहीं। इस बातचीत कोई ख़ास असर नहीं पड़ेगा। ये सिर्फ़ बातचीत ही है, इसे एक तरह से औपचारिकता कहें तो ग़लत नहीं होगा।

-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X (Twitter) @shahidsiddiqui

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