अनोखा रिपोर्ट कार्ड जो मार्क्‍स दिखाने के बजाय बताता है कि बच्चों ने क्या सीखा

डॉ. बी.आर.अम्बेडकर स्कूल्स ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस बोर्ड ने अनोखा रिपोर्ट कार्ड तैयार किया है। यह रिपोर्ट कार्ड स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे के मार्क्‍स दिखाने के बजाय बताता है कि बच्चों ने सालभर में क्या सीखा। दिल्ली के स्कूल्स ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस बोर्ड के कहना है कि हम अब रटने की आदत से हटकर सीखने की आदत को अपना रहे हैं। हमारे शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी कमी रटने की आदत है और हम उसे समझने और सीखने की आदत में बदल रहे हैं।

दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि किसी भी बच्चे को आर्थिक कारणों से क्वालिटी एजुकेशन न मिल पाए, इसके जबाब के रूप में ये स्कूल तैयार किए हैं। गौरतलब है कि दिल्ली में बढ़ते कोरोना के बीच स्कूल खुले रखने का फैसला किया गया है। इस बीच गुरूवार को दिल्ली के डॉ. बी.आर.अम्बेडकर स्कूल्स ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस में आयोजित पहली मेगा पीटीएम भी आयोजित की गई। इस दौरान पेरेंट्स को बच्चे का व फीडबैक देने के लिए टीचर्स के साथ वन-टू-वन इंटरेक्शन का मौका मिला।

दिल्ली सरकार के मुताबिक पेरेंट्स का कॉन्फिडेंस और उनके चेहरे की खुशी ये साबित कर रही थी कि इन स्कूलों में उनके बच्चों के भविष्य की शानदार नींव डाली जा रही है। गुरुवार को दिल्ली के शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया ने भी इन स्कूलों का दौरा किया और पीटीएम के दौरान पेरेंट्स व बच्चों से बातचीत की।

यहां हर तबके के बच्चों को शानदार शिक्षा दी जा रही है। अब वो दिन दूर नहीं जब एसओएसई से सीखकर देश के सारे स्कूल बदलेंगे। उन्होंने कहा कि एसओएसई देश के पहले ऐसे सरकारी स्कूल है जहां बचपन से ही उनकी प्रतिभा को संवारा जाता है।

सिसोदिया ने कहा कि यहां एग्जिबिशन के माध्यम से बच्चों के काम,प्रोजेक्ट्स, रोबोटिक्स मॉडल, उनके टैलेंट को देखने व सराहने का मौका दिया गया। खास बात यह है कि इसमें पेरेंट्स जबरदस्त उत्साह के साथ शामिल हुए।

एसओएसई में उपमुख्यमंत्री से बातचीत के दौरान एक पैरेंट ने बताया कि ह्यपिछले प्राइवेट स्कूल की तुलना में यहां मेरे बच्चे का कॉन्फिडेंस काफी बढ़ा है। अब मुझे विश्वास है कि मेरी बेटी भविष्य में बेहतर कर पाएगी। उन्होंने कहा कि इस स्कूल की सबसे बेहतर बात ये है कि यहां बच्चों को एक्सपेरिमेंटल लनिर्ंग दी जाती है, जबकि पिछले स्कूल में केवल किताबी पढ़ाई ही होती थी। वहां टीचर्स केवल 4-5 बच्चों को ही हर चीज में आगे रखते थे लेकिन इस स्कूल में हर बच्चे के ओवरआल डेवलपमेंट पर ध्यान दिया जाता है।

धर्मेन्द्र लाकड़ा नाम के एक पैरेंट ने बताया कि एसओएसई में एडमिशन करवाने से पहले वो अपने बच्चे का स्कूल 6 बार बदल चुके थे, क्योंकि वो किसी भी स्कूल से संतुष्ट नहीं थे लेकिन स्कूल बदलने का ये सिलसिला एसओएसई में खत्म हो गया जहां बच्चों को पढ़ाया नहीं बल्कि सीखाया जाता है।

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