UN में भिड़े अमेरिका-रूस, आसमान में परमाणु हथियार तैनात करने पर टकराव, चीन ने किसका दिया साथ?

पूरी दुनिया इन दिनों मध्‍यपूर्व में सैन्‍य टकराव के युद्ध में तब्‍दील होने की आशंका से जूझ रहा है. पिछले दिनों ईरान ने इजरायल पर ड्रोन और मिसाइल से हमला कर दिया था. इसके बाद इजरायल ने भी ईरान पर पलटवार करने का दावा किया था. इन सबके बीच, दुनिया के समक्ष एक और बड़ा मुद्दा खड़ा हो गया है- आसमान में परमाणु हथियारों की तैनाती. पिछले दिनों मीडिया रिपोर्ट में रूस की ओर से पृथ्‍वी की कक्षा में परमाणु हथियार तैनात करने की योजना बनाने की बात सामने आई थी. इसके बाद अमेरिका ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में इसे प्रतिबंधित करने का प्रस्‍ताव लाया था. रूस ने इस प्रस्‍ताव पर वीटो कर दिया. अब वॉशिंगटन ने मॉस्‍को के इस कदम की कड़ी आलोचना की है.

अमेरिका ने अंतरिक्ष संधि पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को वीटो करने के लिए रूस की आलोचना की है. इस प्रस्‍ताव में कानूनी रूप से बाध्यकारी दायित्व रखा गया था कि देशों को परमाणु हथियारों सहित सामूहिक विनाश के हथियार (डब्ल्यूएमडी) को पृथ्‍वी की कक्षा में नहीं रखना चाहिए. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने एक बयान जारी कर कहा, ‘जैसा कि हमने पहले नोट किया है, संयुक्त राज्य अमेरिका का आकलन है कि रूस परमाणु उपकरण ले जाने वाला एक नया उपग्रह विकसित कर रहा है. हमने राष्ट्रपति (व्लादिमीर) पुतिन को सार्वजनिक रूप से यह कहते सुना है कि रूस का अंतरिक्ष में परमाणु हथियार तैनात करने का कोई इरादा नहीं है. यदि ऐसा होता तो न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में रूस द्वारा प्रस्ताव पर वीटो नहीं किया गया होता.’

अमेरिका और जापान का प्रस्‍ताव
सुलिवन ने आगे कहा, ‘रूस ने अमेरिका और जापान द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को वीटो कर दिया. यह प्रस्‍ताव बाहरी अंतरिक्ष में किसी भी सदस्‍य देश द्वारा परमाणु हथियार तैनात न करने को लेकर था.’ उन्होंने बताया कि प्रस्ताव में सभी सदस्य देशों से विशेष रूप से कक्षा में स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किए गए परमाणु हथियार विकसित न करने का भी आह्वान किया गया था. सुलिवन ने कहा, ‘किसी देश द्वारा कक्षा में परमाणु हथियार रखना न केवल बाहरी अंतरिक्ष संधि का उल्लंघन होगा, बल्कि महत्वपूर्ण संचार, वैज्ञानिक, मौसम विज्ञान, कृषि, वाणिज्यिक और राष्ट्रीय सुरक्षा सेवाओं को खतरे में डाल देगा.’

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