COP27 मिस्र में शुरू, इससे पहले पानी पर “इंडिया वाटर वीक” में हुई थी समीक्षा

जलवायु परिवर्तन के भविष्य के प्रभावों को समझने और उनसे बचने के लिए COP27 आज रविवार को मिस्र में शुरू हो गया। इस सम्मेलन का मिस्र में होना अपने आप में एक अधिक महत्वपूर्ण है, जो  एक नदी के किनारे बसा एक अफ्रीकी देश होते हुए पानी की अहमियत को अच्छे तरह से समझ सकता है। 

भारत समेत 120 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों के साथ, COP27 में दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को लेकर चर्चा होगी। इस सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव करेंगे।

हालाँकि, इससे पहले, भारत ने भी पानी को लेकर पाँच दिवसीय भारत जल सप्ताह (IWW2022) का आयोजन किया गया था। इस जल सप्ताह का आयोजन जल शक्ति मंत्रालय की ओर से किया गया था, जिसमें २८ देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

COP27 शुरू होने से ठीक एक दिन पहले इसके समापन समारोह में भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने संबोधन में कहा, “सभी अंतर-राज्यीय जल विवादों को हल करने के लिए सक्रिय कदम उठाने का समय आ गया है क्योंकि ये किसी के पक्ष में नहीं हैं और बड़े पैमाने पर देश और लोगों के हित के खिलाफ हैं।” 

“यह भारतीय संविधान की मूल भावना है। यह राज्य के नीति निदेशक तत्व में परिलक्षित होता है। प्राकृतिक संसाधनों का समान वितरण होगा, ”उन्होंने कहा।

उन्होंने लोगों को यह भी याद दिलाया कि पानी और ईंधन जैसे प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि देश ऐसा करने में असमर्थ है। ग्रेटर नोएडा में सातवें भारत जल सप्ताह के समापन समारोह को संबोधित करते हुए,  धनखड़ ने जल निकायों को फिर से जीवंत करने की आवश्यकता पर बल दिया।

इससे पहले कृषि मंत्री ने भी कहा कि वाटरशेड विकास परियोजनाओं जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से कृषि को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।  हमें सिंचाई में अधिक से अधिक तकनीक और उपकरणों का उपयोग करना चाहिए ताकि पानी की भी बचत हो सके और फसल भी अच्छी हो। उन्होंने कहा कि हम सभी को इस बात की चिंता है कि भविष्य में खाद्य सुरक्षा का संकट न हो और इसके लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार जिस तकनीक को कृषि में शामिल करे, वह पूरी लगन से काम कर रही है।

मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार और कृषि मंत्रालय जल संचयन के बारे में चिंतित हैं, और पांच दिवसीय विचार-मंथन से निकले प्रस्तावों पर उचित विचार-विमर्श और प्रभावी कार्यान्वयन का आह्वान किया।

वास्तव में, 7वां अंतर्राष्ट्रीय जल सप्ताह “समानता के साथ सतत विकास के लिए जल सुरक्षा” विषय के साथ पहले से कहीं अधिक बड़ा था। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जल विशेषज्ञों और संगठनों द्वारा समय के साथ विकसित स्थिरता और न्यायसंगत विचारों को पेश करके, बहु-विषयक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन दीर्घकालिक योजना और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करेगा।

COP27 से ठीक एक दिन पहले, इस सम्मेलन में सभी अधिकारी, मंत्री और विषेषज्ञ एक मंच पर पानी को लेकर चिंता व्यक्त करते दिखे। लेकिन, इसके बावजूद देश में कामकाज और नीति पर अमल करने के पिछले अनुभव के मद्देनजर भविष्य में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद करना थोड़ी जल्दबाज़ी हो सकती है। 

2017 में, एनजीटी – देश की शीर्ष पर्यावरण अदालत – ने पुष्टि की कि पानी वास्तव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पांच जिलों के गांवों में बड़े पैमाने पर बीमारी का कारण था, जब पर्यावरण प्रचारकों द्वारा इस संकट को ध्यान में लाया गया था और इसने भूजल और नदी का परीक्षण किया था। 

जिन गांवों में पाइप से पानी की आपूर्ति नहीं थी, वहां ग्रामीण हैंडपंपों द्वारा खींचे गए प्रदूषित भूजल को पी रहे थे।

एनजीटी ने इस क्षेत्र के 48 सबसे कठिन गांवों में घर-घर चिकित्सा सर्वेक्षण की सिफारिश की। इसने अन्य उपायों के अलावा पाइप से पेयजल उपलब्ध कराने, विशेष अस्पतालों की स्थापना और औद्योगिक अपशिष्टों पर अंकुश लगाने का भी आह्वान किया।

लेकिन राज्य में स्वास्थ्य विभाग – भारत की सबसे अधिक आबादी – ने अधिकांश सिफारिशों का पालन नहीं किया। देश के शीर्ष पर्यावरण प्रहरी द्वारा सुझाए गए उपायों के चार साल बाद, स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें केवल आंशिक रूप से लागू किया है।

एनजीटी ने अपनी सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए 2018 में एक पर्यवेक्षी समिति का गठन किया। समिति ने 2019 से अपनी चार रिपोर्टों में कहा कि अधिकारियों द्वारा काली, कृष्णा और हिंडन नदियों की सफाई के लिए कोई सार्थक कार्रवाई नहीं की गई है। इसने उत्तर प्रदेश के अधिकारियों पर “उदासीनता” और यहां तक ​​​​कि इसकी कार्य योजना और निगरानी में “रुकावट पैदा करने का आरोप लगाया था।

अपने अंतिम निर्देश में – फरवरी 2021 में जारी (और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी प्रकाशित) – एनजीटी ने अपने एक अन्य नोट में कहा कि अधिकारियों ने इसकी अधिकांश सिफारिशों का “अनुपालन नहीं किया”। एनजीटी ने कहा कि राज्य सरकार ने सहयोग नहीं किया और उसका रवैया “निराशाजनक” था।

हालाँकि, उपर्युक्त रिपोर्र्ट तो सिर्फ़ एक उदाहरण मात्र है। ऐसे ही सैकड़ों मामले मिल जाएँगे, जहां नई नीति, और आदेश को ज़मीनी स्तर पर पहुँचाने में एजेंसियों का रवैया काफ़ी ढीला रहता है। इसी शैली को देखकर किसी भी शोध  या नई तकनीक को लागू कर पाना काफ़ी मुश्किल हो जाता है। और ख़ास कर के जब पानी जैसे मामले को किसी नई तकनीक और प्रभावी तरीक़े से जन-जन तक पहुँचाने की बात हो। 

वैसे भी भारत नदियों का देश है। लेकिन इसके बावजूद लगातार गिरता भूजल स्तर चिंता का विषय है। यदि अभी नहीं चेते तो आने वाली पीढ़ियों के सामने भारी जल संकट होगा।

विशेषज्ञों  के मुताबिक़ कि अभी भारत में जल संकट की स्थितियों के अनुसार भविष्य में संचयन के लिए भारत को डेढ़ दशक में 85 प्रतिशत तक पानी के रिसाइकिल को बढ़ाना होगा। अभी देश में महज पांच प्रतिशत पानी का ही पुन: इस्तेमाल हो रहा है। इजरायल ऐसा देश है जहां 60 प्रतिशत रेगिस्तान है। पानी की कमी को उन्होंने तकनीक से दूर किया है। वहां पानी का दो बार इस्तेमाल किया जाता है। एक बार प्रयोग के बाद उसे ट्रीट कर उद्योग और खेती में पुन: इस्तेमाल किया जाता है। वहां 90 प्रतिशत तक यानी दुनिया में सर्वाधिक पानी का पुन: इस्तेमाल कर रहा है। दूसरे नंबर पर सिंगापुर है जो 30 प्रतिशत तक पुन: पानी का इस्तेमाल करता है।

भारत में इजरायल के मुकाबले साढ़े सात गुना अधिक पानी का इस्तेमाल होता है। खेती पर भी आठ गुना अधिक पानी का प्रयोग किया जाता है। इजरायल ने संसाधनों का अच्छा प्रबंधन किया है। भारत को इस दिशा में तेजी से कदम उठाने की जरूरत है। व‌र्ल्ड बैंक से इसमें और सहायता जरूरत पड़ेगी। नमामि गंगे परियोजना के लिए व‌र्ल्ड बैंक ने एक बिलियन डालर की आर्थिक सहायता की है।

व‌र्ल्ड बैंक चाहता है कि भारत अटल भूजल योजना को दूसरे राज्यों में विस्तार दे, लेकिन ढांचे व निगरानी तंत्र को और मजबूत करने की जरूरत है। इजरायल दूतावास में जल विशेषज्ञ नीरज गहलावत ने कहा कि मुंबई में विश्वस्तरीय 400 मिलियन लीटर क्षमता का शोधन केंद्र बना है। शोधन पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी पानी का पुन: इस्तेमाल नहीं होता। उसे समुद्र में बहा दिया जाता है। अहमदाबाद में 100 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) क्षमता का ट्रीटमेंट प्लांट बना है। वहां से निकलने वाले पानी को 15 हजार एकड़ जमीन पर खेती में पुन: इस्तेमाल किया जा रहा है। सरकारों को इस पर काम करना होगा।

सातवें भारत जल सप्ताह के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी कहा था कि बढ़ती आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना आने वाले वर्षों में एक बड़ी चुनौती होगी। राष्ट्रपति ने कहा कि जल संरक्षण के लिए पानी का उचित उपयोग और प्रबंधन बहुत जरूरी है। “पानी का मुद्दा बहुआयामी और जटिल है, जिसके लिए सभी हितधारकों को प्रयास करने चाहिए। हम सभी जानते हैं कि पानी सीमित है और केवल इसका उचित उपयोग और पुनर्चक्रण ही इस संसाधन को लंबे समय तक बनाए रख सकता है। इसलिए, हम सभी को इस संसाधन का सावधानीपूर्वक उपभोग करने का प्रयास करना चाहिए।”

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में लगभग 80% जल संसाधन का उपयोग कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाता है। उन्होंने कहा कि पानी का मुद्दा न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है।

“यह मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि उपलब्ध मीठे पानी की विशाल मात्रा दो या दो से अधिक देशों के बीच फैली हुई है। यह संयुक्त जल संसाधन एक ऐसा मुद्दा है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। 7वें भारत जल सप्ताह में डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, इजरायल और यूरोपीय संघ भाग ले रहे हैं। इस मंच पर विचारों और प्रौद्योगिकियों के आदान-प्रदान से सभी लाभान्वित होंगे, ”राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा।

हालाँकि पहले से भी जलवायु को लेकर भारत और डेनमार्क दोनों के महत्वाकांक्षी लक्ष्य हैं। 28 सितंबर 2020 को, डेनमार्क के प्रधान मंत्री और भारत के प्रधान मंत्री ने भारत और डेनमार्क के बीच एक आभासी शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता की थी।

उधर, भारत और इज़राइल के बीच भी पिछले कुछ दशकों से काफ़ी अच्छे रिश्ते रहे हैं।  प्रकृति और न्यूनतम प्रौद्योगिकी के साथ काम करते हुए, इज़राइल हमेशा शीर्ष नवाचारों को प्रदर्शित करने के लिए उत्सुक रहा है। भारत जल सप्ताह में, इज़रायल ने अपनी नए प्रोडक्ट “वाटरजेन” का प्रदर्शन किया -ये वातावरण से नमी लेकर पानी बनाता है। इज़राइल हमेशा अपनी स्मार्ट तकनीक और कृषि और जल प्रणाली के समाधान के लिए जाना जाता है।

भारत ने भी हाल के वर्षों में बेहतर जल प्रबंधन और जलवायु-स्मार्ट कृषि के लिए प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं में सुधार लाया है। अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान (IWMI) ने भी दो दशकों से अधिक समय से जल और कृषि पर अनुसंधान किया है, जो उनके जल हस्तक्षेपों के प्रभावों को बढ़ाने में मदद करने के लिए विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहा है। IWMI  ने भी भारत जल सप्ताह 2022 में हिस्सा लिया था। IWMI की ओर से  महानिदेशक,  डॉ स्मिथ,सातवें भारत जल सप्ताह में भाग लेने के लिए भारत आए थे।

IWMI ने हाल ही में दक्षिण एशिया सूखा निगरानी प्रणाली (SADMS) लाँच किया है। SADMS किसानों, और जल प्रबंधन अधिकारियों को दक्षिण एशिया में सूखे की निगरानी, ​​पूर्वानुमान और प्रबंधन के लिए आवश्यक सभी जानकारी प्रदान करेगा। इसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के साथ साझेदारी में विकसित किया गया है।

उधर COP27 में शामिल ‘वर्ल्ड एनिमल प्रोटेक्शन’ ने भी जलवायु परिवर्तनों में मुख्य कारकों में जीव जंतु का भोजन के लिए इस्तेमाल को एक कारण बताया है। 

वर्ल्ड एनिमल प्रोटेक्शन की हाल ही में जारी क्लाइमेट चेंज एंड क्रूएल्टी रिपोर्ट ने फैक्ट्री फार्मिंग के कारण होने वाले अस्थिर वनों की कटाई की वास्तविक सीमा का खुलासा किया – एक मूक जलवायु अपराधी – पशु चारा फसलों के लिए सिर्फ 10 किलोग्राम चिकन का उत्पादन करने के लिए चार पेड़ों को काटता है, और प्रत्येक 10 किलो सूअर का मांस के लिए  पांच पेड़ों की कटाई करता है।

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-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via Twitter @shahidsiddiqui

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