बिहार जातीय सर्वे (Bihar Caste Census) के नतीजों के जारी होने के बाद बीजेपी ने इसको तुष्टीकरण की राजनीति से जोड़कर पेश करके जाति जनगणना के लिए विपक्ष के नए सिरे से हो रही कोशिश का मुकाबला किया है. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी ने कहा कि उसका सामाजिक इंजीनियरिंग फॉर्मूला पिछड़ी जातियों को सशक्त बनाने में कहीं अधिक असरदार रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने मंगलवार को चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ में मोर्चा संभाला और बस्तर के जगदलपुर में एक रैली में कहा कि विपक्ष ‘देश को जाति के नाम पर बांटने की कोशिश कर रहा है.’ दिसंबर 2006 में राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में अपने पूर्ववर्ती पीएम मनमोहन सिंह के भाषण का जिक्र किया.
पीएम मोदी ने कहा कि ‘सिंह कहते थे कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है… लेकिन अब कांग्रेस कह रही है कि समुदाय की आबादी तय करेगी कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार किसका होगा. तो क्या अब कांग्रेस अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कम करना चाहते हैं? क्या वे अल्पसंख्यकों को हटाना चाहते हैं?… तो क्या सबसे बड़ी आबादी वाले हिंदुओं को आगे आकर अपने सभी अधिकार लेने चाहिए?’ यह बात साबित करने के लिए कि जाति सर्वे ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ है, भाजपा ने दावा किया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद ने मुस्लिम अगड़ी जातियों को अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBCs) श्रेणी में शामिल किया. जिससे हिंदू वास्तव में ‘ईबीसी’ में आने से वंचित हो गए.
ईबीसी नीतीश का मुख्य आधार
गौरतलब है कि ईबीसी नीतीश का मुख्य समर्थन आधार हैं. वरिष्ठ सांसद और बिहार भाजपा के पूर्व अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि ‘1996 से 2013 तक लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने अगड़े मुसलमानों को ईबीसी श्रेणी में शामिल करने की कोशिश की. सुशिक्षित और शासक वर्ग के मुसलमानों को ईबीसी श्रेणी में शामिल करके इन दोनों नेताओं और उनकी पार्टियों ने न केवल हिंदू समुदाय में वास्तविक ईबीसी के साथ, बल्कि मुसलमानों के साथ भी अन्याय किया है. दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों नेताओं ने कार्यकारी आदेशों के साथ मुसलमानों को ईबीसी समुदाय में शामिल कर लिया है. इससे वास्तविक ईबीसी को मिलने वाला सारा आरक्षण खत्म हो गया है.’
जातीय सर्वे महज तुष्टिकरण की रणनीति
जयसवाल ने आरोप लगाया कि जातीय सर्वे के आंकड़ों ने केवल राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन की ‘तुष्टिकरण रणनीति’ के रूप में काम किया है. यह आरक्षण के संबंध में डॉ. बीआर अंबेडकर की मूल भावना और इरादे का उल्लंघन है. वास्तव में सरकारिया आयोग और मंडल आयोग ने सिफारिश की थी कि केवल उन लोगों को आरक्षण दिया जाना चाहिए जो मूल रूप से निचली जाति के हैं. राज्य भाजपा नेताओं ने कहा कि ठकुराई, शेखोरा और कुलैया मुस्लिम समुदायों को अगड़े समूहों के रूप में माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ साल में उन्हें ईबीसी सूची में जोड़ा गया था. उन्होंने कहा कि कुलैया शेख मुसलमान वे हैं, जिनके पूर्वज यमन से थे और मुगलों के साथ भारत आए थे. राजद नेता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के केंद्रीय गृह राज्य मंत्री रहने के दौरान इन समूहों को ईबीसी के रूप में शामिल किया गया था.
सीमांचल के सभी ईबीसी अगड़े मुसलमान
जायसवाल ने कहा कि ‘अगर आप सीमांचल के ईबीसी पर नजर डालें तो आपको एक भी मूल हिंदू नहीं मिलेगा. पहले सूची में जोड़े गए ईबीसी में से कम से कम सात प्रतिशत ऐसे अगड़ी जाति के मुसलमान हैं.’ वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने कहा कि जाति सर्वे की रिपोर्ट का उसकी चुनावी संभावनाओं पर कोई बड़ा असर पड़ने की उम्मीद नहीं है. बीजेपी ने छोटे पिछड़े समुदायों को संगठन में मौके देने के साथ-साथ चुनाव उम्मीदवारों की लिस्ट में जगह देकर सशक्त बनाया है. बीजेपी के सोशल-इंजीनियरिंग फॉर्मूले और पीएम मोदी के खुद ओबीसी होने से बीजेपी को लाभ मिला है. जिनकी अपील जाति की सीमाओं से परे है. बीजेपी को अपनी उच्च जातियों की पार्टी होने की छवि को तोड़ दिया है. 2014 के बाद से खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में पिछड़े समुदायों को अपने पीछे लाने में बीजेपी सफल रही है.