“हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जापान का मजबूत सहयोगी बनेगा भारत”, किशिदा फुमियो को पीएम मोदी ने दिया भरोसा, कई अहम समझौतों पर लगी मुहर

नई दिल्ली, २० मार्च। जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो का भारत दौरा द्विपक्षीय संबंधों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत और जापान अपने संबंधों में एक ऐसे स्तर पर पहुंच गए हैं, जहां पर दोनों देशों का शीर्ष नेतृत्व लगातार एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं, लगातार मिलकर सामरिक और पारस्परिक चिंताओं के बारे में चर्चा करते रहते हैं।

सोमवार को द्विपक्षीय मुलाक़ात के बाद पीएम मोदी ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री किशिदा को जी20 की भारतीय अध्यक्षता की प्राथमिकताओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। प्रधानमंत्री ने मीडिया वार्ता के दौरान कहा कि भारत-जापान विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी लोकतांत्रिक सिद्धांतों और अंतरराष्ट्रीय कानून के सम्मान पर आधारित है और यह भारत-प्रशांत के लिए भी महत्वपूर्ण है।

दोनों पक्षों ने विशेष रूप से रक्षा, डिजिटल प्रौद्योगिकी, व्यापार और निवेश और स्वास्थ्य सहित अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति की समीक्षा की। पीएम मोदी ने आगे कहा कि दोनों पक्षों ने सेमी-कंडक्टर और अन्य महत्वपूर्ण तकनीकों के लिए विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला के महत्व पर भी चर्चा की।

साथ ही अपनी टिप्पणी में, किशिदा ने भी कहा कि नई दिल्ली के साथ टोक्यो का आर्थिक सहयोग तेजी से बढ़ रहा है और यह न केवल भारत के आगे के विकास का समर्थन करेगा बल्कि जापान के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक अवसर पैदा करेगा।

ग़ौरतलब हो कि भारत और जापान के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाक़ात पहली नहीं थी। पिछले साल इन लोगों ने कई बार मुलाकात की। द्विपक्षीय मुलाकात भी हुई और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अलग से मुलाकात हो चुकी है। लेकिन, हर मुलाक़ात में जापान के साथ संबंधों में एक नया विश्वास दिखाई देता है।

दरअसल जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो की ये यात्रा पहले की यात्राओं के मुक़ाबले कुछ ख़ास है। फुमियो की ये यात्रा प्राथमिकता से इसलिए की क्योंकि वे भारत के प्रधानमंत्री को G7 की बैठक में शामिल होने के लिए निजी तौर से आमंत्रित करना चाहते थे।

वैसे भी ये साल भारत और जापान दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जहां भारत के पास G20 की अध्यक्षता है और वहीं जापान भी G7 की अध्यक्षता कर रहा है। जहां दुनिया पोलराइजेशन के फेज से गुजर रही है, ऐसे में भारत और जापान ये चाहते हैं कि G7 और G20 एक साथ मिलकर ग्लोबल गवर्नेंस के लिए कुछ ख़ास करें. उसको एक नया मोड़ दें, नई दिशा दें।

किशिदा फुमियो की ये यात्रा इस बार फ्री एंड ओपन इंडो पैसिफिक प्लान पर आधारित है जिसपर दोनों देशों के बीच चर्चा हुई भी है। चीन का जो आक्रामक रुख रहा है, वो पहले साउथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी में दिखा। उसके बाद हिमालयन बॉर्डर पर दिखा। चीन ने पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र को एक संदेश दिया है कि चीन का एग्रेशन सिर्फ मैरीटाइम तक सीमित है या फिर वो कोई निश्तित भौगोलिक सीमा तक सीमित है, ऐसा नहीं है। जापान पहला देश था जिसने चीन की इस मंशा को सबसे पहले भांप लिया था। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने जब इंडो पैसिफिक प्लान की कल्पना की थी, उस समय उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि जो नया एक बैलेंस ऑफ पावर एशिया में उभर रहा है, वो हिंद-प्रशांत ही बनाएगा और वैसा ही हुआ।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को आज एक ही भौगोलिक क्षेत्र के तौर पर देखा जा रहा है और उसमें भारत की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारत इसके ठीक बीच में है।भारत का जिस तरह से इंडियन ओशन में दबदबा है, उसको देखते हुए आप पैसिफिक ओशन में भारत के बगैर स्टैबल बैलेंस ऑफ पावर नहीं बना सकते। इस बात को पहली बार शिंजो आबे ने रेखांकित किया था और उस बात को ही आबे के उत्तराधिकारी भी आगे ले जा रहे हैं। उनमें किशिदा फुमियो भी शामिल हैं। इसमें न सिर्फ भारत और जापान मिलकर काम कर रहे हैं, बल्कि 10 दिन पहले जब यहां ऑस्ट्रेलियन पीएम एंथनी अल्बनीज थे, वो भी इसी मुद्दे को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका को मिलाकर बना क्वाड भी इस बात को रेखांकित करता है कि किस तरह से एक समान सोच रखने वाले लोकतांत्रिक देश आपस में मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों से निपट सकते हैं। इसलिए जब चीन जापान के साथ, ऑस्ट्रेलिया के साथ या भारत के साथ एक आक्रामक रुख दिखाता है, तो उसको ये भी पता होना चाहिए कि इन देशों की जो क्षमताएं हैं, वो अब एक साथ मिलकर चीन को टक्कर देने की तैयारी कर रही है।

फ़िलहाल अंतरराष्ट्रीय राजनीति बहुत ही नाजुद दौर से गुजर रही है। जहां चीन और रूस का एक साथ आना भारतीय विदेश नीति के लिए एक बहुत बड़ा शॉक है, वहीं भारत भी लगातार कोशिश कर रहा है कि रूस के साथ बातचीत के सभी चैनल खुले रहें। इसी वजह से भारत ने इस युद्ध को लेकर एक बहुत ही सामरिक रुख अपनाया है। भारत, रूस की सार्वजनिक तौर से निंदा नहीं करता है।  भारत ये चाह रहा है कि रूस और चीन संबंध इतने मजबूत न बन जाएं कि उससे भारत की सुरक्षा को खतरा पैदा हो।

इससे पहले दिल्ली में G20 विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी, वो भी सफल नहीं हो पाई क्योंकि एक तरफ पश्चिम देश और जापान थे, तो दूसरी तरफ रूस और चीन जैसे देश थे। हालाँकि, भारत ये भी कोशिश करता रहेगा कि उसका रूस के साथ जो पुराना मजबूत रिश्ता रहा है, वो आगे भी बढ़ता रहे। भारत चीन को लेकर भी ये कोशिश करता रहेगा कि समान सोच रखने वाले देश जैसे जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपियन देश और अमेरिका के साथ मिलकर काम करता रहेगा। साथ ही बीजिंग को ये संदेश देता रहेगा कि अगर वो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मनमाने तरीके से विस्तारवादी नीति जारी रखेगा तो ये संभव नहीं है। भारत रूस के साथ ही पश्चिमी देशों, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक ऐसा संबंध बनाना चाहता है, जिसमें भारत के हित साधे जा सकें।

-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी, Follow via Twitter @shahidsiddiqui

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