सूडान हिंसा: “संकट की घड़ी में भारत की मदद सराहनीय”, ख़ास बातचीत में बोले भारत में सूडान के राजदूत

अफ्रीकी देश सूडान में गृहयुद्ध अभी पूरी तरह से थमता नहीं दिख रहा है। हिंसा अभी भी जारी है। हिंसा के कारण वहां से लाखों लोगों को देश छोड़कर भागना पड़ा है । सैकड़ों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है । मरने वालों में कई विदेशी नागरिक भी शामिल थे। इस मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की । रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली है । इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कितने लोगों की गृह युद्ध से मौत हुई, कितने लोग घायल हुए और कितने लोगों को देश छोड़कर जाना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र (UN) के एक अधिकारी के मुताबिक, अफ्रीकी देश में सूडानी सेना और रैपिड सपोर्ट फोर्सेज यानी RSF के बीच संघर्ष में करीब 680 लोग मारे गए हैं । करीब 6 हजार लोग घायल हुए हैं । UN ने बताया कि इस संकट के कारण वहां 15 अप्रैल के बाद से 9,36,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं।

इसी बीच ये भी ख़बर आई कि सूडान में जनरल अब्दुल फत्तेह बुरहान के नेतृत्ववाले संक्रमणकालीन प्रशासन ने रविवार को द पैरामिलिट्री रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (पीआरएसएफ) से संबंधित बैंक खातों को सीज करने का आदेश दिया।  पीआरएसएफ मध्य अप्रैल से सूडान की सेना के संघर्ष कर रही है। पीआरएसएफ की ओर से बजटीय रकम की चिंता का हवाला देते हुए एक बयान में कहा गया, “ अब्दुल फतेह बुरहान ने विद्रोही रैपिड सपोर्ट फोर्सेज और उनकी कंपनियों के सभी सूडानी बैंकों तथा उनके विदेशों में स्थित शाखाओं के खातों को सीज करने का फैसला किया।”

सूडान की सरकार की ओर से यह फैसला मीडिया की उस रिपोर्ट के बाद आया, जिसमें कहा गया था कि सूडानी सेना के कमांडर ने सेंट्रल बैंक के गवर्नर हुसैन याहिया जनकोल को उनके पद से हटा दिया है और उनकी जगह बोराई अल सिद्दीकी को सेंट्रल बैंक का गवर्नर नियुक्त किया है।

आख़िर सवाल उठता है कि आख़िर  सूडान में आज ऐसे हालात की वजह क्या है? इसी तरह 12 साल पहले भी गृहयुद्ध में दो हिस्सों में बंट गया था सूडान, अब दो जनरलों की लड़ाई में पिस रहा है ये अफ्रीकी देश। भारत में सूडान के राजदूत अबदल्ला उमर बशीर अलहुसैन ने सद्भावना टुडे  और डब्ल्यूएनएन से ख़ासबातचीत की। 

सूडान के राजदूत ने बताया कि “दशकों के गृहयुद्ध के बाद 2011 में दक्षिण सूडान के अलग होने तक सूडान, क्षेत्रफल के लिहाज से अफ्रीका का सबसे बड़ा देश था। अफ्रीका के उत्तर-पूर्व में स्थित इस देश की सीमाएं सात देशों से लगती है। इसके उत्तर में शक्तिशाली देश मिस्र है, जबकि पूर्व में इरिट्रिया और इथियोपिया है। देश के अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिहाज से काफ़ी अहम लाल सागर इसके उत्तर-पूर्व में स्थित है। दक्षिण में दक्षिण सूडान स्थित है, जबकि चाड और लीबिया इसके पश्चिम में मौजूद है।”

सूडान में ताज़ा संघर्ष की वजह के सवाल पर भारत में सूडान के राजदूत अबदल्ला उमर बशीर अलहुसैन ने कहा, “सूडान में नागरिक सरकार को सत्ता हस्तांतरित करने की माँग को लेकर 2021 से ही संघर्ष चल रहा है। इसी मुद्दे पर भारत में सूडान के राजदूत से ख़ास बातचीत हुई। उन्होंने बातचीत में सद्भावना टुडे और ड्ब्लयूएनएन से बातचीत में कहा, इसकी असल वजह सेना और अर्धसैनिक बल ‘आरएसएफ’ के विलय को लेकर है।”

उन्होंने बताया कि ताज़ा हिंसा कई दिनों के तनाव के बाद हुई। आरएसएफ के जवानों को अपने लिए ख़तरा मानते हुए सेना ने पिछले सप्ताह इनकी तैनाती को बदलते हुए नई व्यवस्था शुरू की। इसे लेकर आरएसएफ के जवानों में नाराज़गी थी।  “कुछ उम्मीद थी कि बातचीत से समस्या का हल निकल जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अक्तूबर 2021 में नागरिकों और सेना की संयुक्त सरकार के तख्तापलट के बाद से ही सेना और अर्धसैनिक बल आमने-सामने हैं।”, सूडान के राजदूत अबदल्ला उमर बशीर अलहुसैन ने आगे कहा।

फ़िलहाल सॉवरेन काउंसिल के ज़रिए देश को सेना और आरएसएफ चला रहे हैं। लेकिन सरकार की असली कमान सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतेह अल बुरहान के हाथों में है। वे एक तरह से देश के राष्ट्रपति हैं। सॉवरेन काउंसिल के डिप्टी और आरएसएफ़ प्रमुख मोहम्मद हमदान दगालो यानी हेमेदती देश के दूसरे नंबर के नेता हैं। क़रीब एक लाख की तादाद वाली रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स के सेना में विलय के बाद बनने वाली नई सेना का नेतृत्व कौन करेगा, इस पर सहमति नहीं बन पा रही है।

दरअसल, आरएसएफ का गठन 2013 में हुआ था। सेना से अलग इतने मजबूत सुरक्षा बल का होना, सूडान की अस्थिरता की वजह माना जाता रहा है। इसकी उत्पत्ति कुख्यात ‘जंजावीद’ विद्रोही संगठन के रूप में हुई थी। इसने दारफुर में विद्रोहियों के खि़लाफ़ क्रूरता से लड़ाई लड़ी थी। उस दौरान इन पर बड़े पैमाने पर नृजातीय हिंसा करने का आरोप लगा था। जनरल दगालो ने तब से अब तक एक शक्तिशाली सुरक्षा संगठन तैयार कर लिया है। इसने यमन और लीबिया के संघर्षों में भी दख़ल दिया। सूडान में सोने की कई खान नियंत्रित करने के साथ उन्होंने अच्छा ख़ासा आर्थिक साम्राज्य भी बना लिया है। आरएसएफ पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगता रहा है। इस बल पर जून 2019 में 120 से अधिक प्रदर्शनकारियों को मारने का आरोप लगा था।

दूसरी तरफ़, सूडान के लगभग तीन दशक तक राष्ट्रपति रहे उमर अल-बशीर को हटाने के लिए 2019 में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। इन विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए सेना ने उनका तख्तापलट कर दिया। लेकिन उसके बाद लोकतंत्र बहाली के लिए नागरिकों ने अपना अभियान जारी रखा। हालांकि इस मकसद के लिए सेना और नागरिकों की एक संयुक्त सरकार की स्थापना तब की गई थी। लेकिन अक्तूबर 2021 में एक और तख्तापलट के बाद इसे ख़त्म कर दिया गया। जनरल बुरहान और जनरल दगालो के बीच की प्रतिद्वंद्विता उसके बाद से और तेज़ हो गई। नागरिक शासन की बहाली के लिए दिसंबर 2022 में एक समझौते के मसौदे पर सहमति बनी थी, लेकिन अंतिम तौर पर वो बातचीत विफल हो गई।

जनरल दगालो का मानना है कि 2021 का तख्तापलट एक ग़लती थी।  वे खुद और आरएसएफ, दोनों को देश के कुलीन वर्ग के खिलाफ और आम लोगों के पक्ष में दिखाने की कोशिश करते रहे हैं। हालांकि आरएसएफ के ख़राब ट्रैक रिकाॅर्ड को देखते हुए उनके दावों पर यकीन कर पाना मुश्किल लगता है। इस बीच, सेना प्रमुख जनरल बुरहान ने कहा है कि सेना किसी निर्वाचित सरकार को ही सत्ता का पूर्ण हस्तांतरण करेगी। 

आखिर में बातचीत के दौरान सूडान के राजदूत ने भारत समेत अरब देशों की मदद को सराहते हुए कहा, “भारत के विदेश मंत्रालय द्रारा मदद और अरब देशों की मध्यस्थता के लिए सूडान देश हमेशा आभारी रहेगा।” 

-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी, Follow via Twitter @shahidsiddiqui

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