नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने बुधवार को साइरस मिस्त्री को फिर से टाटा समूह के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बहाल कर दिया है।
हालांकि, ट्रिब्यूनल ने कहा कि बहाली आदेश चार सप्ताह बाद लागू होगा और टाटा समूह चाहे तो इस अवधि के दौरान सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है।
दो सदस्यों वाली पीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायमूर्ति एस.जे. मुखोपाध्याय ने कहा कि अध्यक्ष पद से मिस्त्री को हटाना गैर-कानूनी था। साथ ही उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नटराजन चंद्रशेखरन की नियुक्ति को अवैध करार दिया।
अपनी याचिका में मिस्त्री ने अन्य आरोपों के साथ कहा कि टाटा संस के संचालन में बाहरी हस्तक्षेप है और अल्पमत शेयरधारकों के हितों पर अत्याचार किया गया।
समूह के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा को एक बड़ा झटका देते हुए ट्रिब्यूनल ने उन्हें बोर्ड की कार्यवाही से दूर रहने का निर्देश दिया है।
पीठ ने मुंबई स्थित नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें मि�ी के निष्कासन को लेकर समूह के खिलाफ कार्रवाई टाल दी गई थी।
ट्रिब्यूनल ने एक पब्लिक कंपनी से प्राइवेट के रूप में कंपनी के रूपांतरण को भी अवैध माना और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को फिर से टाटा कंपनी को पब्लिक रूप से मान्यता देने के लिए कहा।
वर्ष 2012 में वह टाटा समूह के छठे अध्यक्ष नियुक्त हुए थे और 24 अक्टूबर, 2016 को उन्हें पद से हटा दिया गया था। रतन टाटा द्वारा अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा के बाद मिस्त्री ने अध्यक्ष का पद संभाला था।
परिवार द्वारा संचालित दो कंपनियों -साइरस इन्वेस्टमेंट्स और स्टर्लिग इन्वेस्टमेंट कॉर्प- के माध्यम से मिस्त्री ने इस फैसले और दुराचार के लिए टाटा संस और अन्य के खिलाफ मुंबई स्थित नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) का रुख किया था।
20 फरवरी, 2017 को टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज का नेतृत्व कर रहे नटराजन चंद्रशेखरन ने टाटा संस के अध्यक्ष का प्रभार लिया। लेकिन इस फैसले को एनसीएलएटी ने गैर-कानूनी करार दिया है।
मिस्त्री का परिवार 18.4 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अकेले टाटा संस में सबसे बड़ा शेयरधारक है। टाटा संस ने 2017 में पब्लिक कंपनी से प्राइवेट के रूप में कंपनी को बदलने का फैसला किया था, जिसके तहत शेयरधारक अपने शेयरों का ट्रेड नहीं कर सकते हैं। मि�ी के परिवार ने इस फैसले का विरोध किया था।