समलैंगिकता पर अहम फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश का होगा तबादला


सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश एस. मुरलीधर को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की सिफारिश की है।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम में वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. वी. रमना, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति आर. बानुमथी शामिल हैं।

कॉलेजियम ने 12 फरवरी को हुई एक बैठक में न्यायमूर्ति रंजीत वी. मोरे को बॉम्बे हाईकोर्ट से मेघालय हाईकोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रवि विजय कुमार मलीमथ को उत्तराखंड हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की भी सिफारिश की थी।

न्यायमूर्ति मुरलीधर दिल्ली हाईकोर्ट में तीसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं।

न्यायमूर्ति मुरलीधर हाईकोर्ट की उस खंडपीठ का हिस्सा थे, जिसने 2009 के नाज फाउंडेशन मामले में पहली बार कहा था कि समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है। वह उस पीठ का भी हिस्सा रहे हैं जिसने हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्तर प्रदेश पीएसी के सदस्यों और 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराया था।

एक वकील के रूप में समाजसेवा के तौर पर उनके निशुल्क काम में भोपाल गैस आपदा के पीड़ितों और नर्मदा पर बांधों से विस्थापित लोगों के मामले शामिल रहे हैं।

वहीं न्यायाधीश मोरे भी बॉम्बे हाईकोर्ट के तीसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से एलएलएम किया और उन्हें आठ सितंबर, 2006 को हाईकोर्ट के एक अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।

न्यायमूर्ति मलीमथ वर्तमान में कर्नाटक हाईकोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं। उन्होंने 1987 में कर्नाटक हाईकोर्ट में एक वकील के रूप में कानूनी प्रैक्टिस शुरू की थी।

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