श्रद्धांजलि: बहुत याद आएँगे हम सब के “कमाल खान” !

अपनी विशिष्‍ट पत्रकारिता के लिए मशहूर एनडीटीवी की वरिष्‍ठ पत्रकार कमाल खान का शुक्रवार, 14 जनवरी को अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। कमाल अपनी विशिष्‍ट पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे और अपनी सारगर्भित रिपोर्टिंग और बेहतरीन भाषा शैली की वजह से लोगों के दिलों में बसते थे।

उनका अचानक चले जाना NDTV परिवार के साथ-साथ पत्रकारिता जगत लिए भी बड़ी क्षति है। 61 साल के कमाल पिछले क़रीब तीन दशक से बतौर लखनऊ ब्यूरो हेड एनडीटीवी से जुड़े थे। गुरुवार को ही चैनल पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों पर उनकी रिपोर्टिंग देखी गई थी।

कमाल के निधन की खबर जैसे ही फैली, पत्रकारिता जगत और उनके चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ गई। शुक्रवार सुबह उन्होंने लखनऊ स्थिति अपने आवास में अंतिम सांस ली।

मालूम हो कि कमाल खान को उनकी बेहतरीन पत्रकारिता के लिए पत्रकारिता के क्षेत्र में भारत में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिला था। साथ ही भारत के राष्ट्रपति द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए थे कमाल खान। 61 साल के कमाल बीते 3 दशकों से पत्रकारिता में थे। सबसे वरिष्ठ पत्रकार होने के बाद भी उन्होंने फील्ड रिपोर्टिंग कभी नही छोड़ी। खबर पेश करने का उनका अंदाज देशभर में पत्रकारों को प्रेरित करता था। उन्हें हम सब कभी नहीं भूल पाएंगे।

हाल ही में अपने काम और अवॉर्ड के बारे में उन्होंने भडास-4 मीडिया पर लिखा था, ‘मैं पिछले करीब तीन दशकों से पत्रकारिता कर रहा हूं। पिछले 22 साल से एनडीटीवी में हूं और मेरी पत्नी रुचि पिछले 24 साल से ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट हैं और एक प्रतिष्ठित परिवार से सम्बन्ध रखती हैं….पत्रकारिता के क्षेत्र में मेरे किये गए कार्यों के लिये मुझे पांच नेशनल और एक इंटनेशनल अवार्ड मिला है’।

कम ही लोग जानते हैं कि काव्यात्मक लिबास में टीवी रिपोर्ट्स को तथ्यों के साथ पेश करने वाले कमाल ने रूसी भाषा का अध्ययन किया था और डिग्री ली थी। इसके अलावा वो अंग्रेजी में महारत हासिल की थी।

रूसी और अंग्रेजी के छात्र और जानकार रहे कमाल ने उर्दू और फिर हिन्दी का गहन अध्ययन किया। उनकी किस्सागोई सम्मोहित करने वाली होती और उनमें खबर को सूंघने का स्वाभाविक हुनर था।

कमाल खाल अस्सी के दशक में लखनऊ में हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड में रूसी भाषा के अनुवादक के तौर पर काम करते थे। पहली बार अमृत बाजार पत्रिका में बतौर पत्रकार 1987 में कमाल खान ने काम शुरू किया था। उन्होंने अमृत बाजार के बाद नवभारत टाइम्स में नौकरी की लेकिन उस अखबार का लखनऊ संस्करण बंद हो गया तो कमाल एनडीटीवी चले गए और स्टार न्यूज़ पर दिखने लगे।

पत्रकारिता के शुरुआती दौर में वो अपना नाम कमाल हैदर ख़ान लिखते थे जिसे बाद में उन्होंने कमाल एच ख़ान किया। वैसे तो आगे बढ़ने और अधिक अवसरों की चाह में पत्रकार अक्सर दिल्ली आ जाते हैं लेकिन कमाल ने लखनऊ को कभी नहीं छोड़ा। दरअसल में कमाल की भाषा, लेखन और आवाज में लखनऊ छलकता था। और आख़िरी साँस तक लखनऊ ने भी उन्हें अपना बनाकर रखा।

वैसे तो न्यूज़ टीवी में लाइव रिपोर्टिंग का दबाव झेलना और समय पर ख़बर को दर्शकों तक पहुंचाना कई बार बहुत तनाव देता है। पत्रकार इस तनाव को स्क्रीन पर दिखने नहीं देते लेकिन कमाल से (जब वह स्क्रीन पर न हों तब भी) बात करते हुए वह बड़े सामान्य दिखते थे। किसी बड़ी या अति महत्वपूर्ण रिपोर्ट को ब्रेक करते हुए कमाल ने कभी वह आवेश अपने चेहरे और आवाज पर हावी नहीं होने दिया जिसे टीवी की नौटंकी आभूषण समझ कर धारण कर लेती है। वैसे अक्सर लोग उन्हें यूपी के रवीश कुमार के रूप से पुकार लेते थे।

अगर कमाल खान की रिपोर्टिंग शैली को समझें तो मालूम होगा कि उनकी रिपोर्टिंग का एक बड़ा गुण था उनका अध्ययनशील होना। कमाल की गाड़ी में दर्जनों किताबें हमेशा पड़ी रहतीं, जिनसे वह रिपोर्टिंग करते समय कुछ उदाहरण लिया करते थे। आप सब ने देखा होगा कि हाल ही में उन्होंने राम के किरदार से लेकर तीन तलाक तक कई महत्वपूर्ण प्रोग्राम किए थे।

अपनी रिपोर्टिंग में जैसे वो कुरान से कुछ उदाहरण देते वैसे ही गीता और रामायण की चौपाइयां या कहानियां भी सुना जाते थे। ये अध्ययनशीलता उनकी रिपोर्टिंग में ही नहीं शख्सियत में भी दिखती थी। इन दिनों हम जैसे बहुत से पत्रकार लिखने के नाम पर ट्विटर या फेसबुक पर माइक्रोब्लॉगिंग तक सीमित हैं लेकिन कमाल की जानकारी का दायरा वाकई कमाल का था।

आजकल के पत्रकारों से बिल्कुल अलग, कमाल खान अपनी रिपोर्टिंग में कभी किसी राजनीतिक दल के पक्षकार नहीं दिखे। वह सामान्य जीवन में भी बड़े तार्किक और उदार थे। वो बेहद पेशेवर थे, जिसकी वजह से उनकी किसी से दोस्ती या बैर नहीं दिखा।

कमाल ख़ान जैसे पत्रकार या इंसान को याद करने के लिए एक दिन या एक लेख काफी नहीं है। उन्होंने जिस कदर पतन के इस दौर में भी अपने और अपनी पत्रकारिता को बड़े साफ़गोई से मयार को ऊंचा उठाया, उसे बचाकर आगे उसी संयमता, संजीदगी, और गहराई से स्क्रीन पर पेश करना ही हम सब पत्रकारों द्रारा सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी ,

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *