शासन के शतक से मात्र दो साल दूर मोदी सरकार, फिर भी बेरोज़गारी और लाचारी आसमान पर

पिछले दशक वाली सरकार के शासन काल में हम सुना करते थे कि किसानों ने क़र्ज़ न चुकापाने की वजह से ख़ुदकुशी कर ली। लेकिन, अब वो पुराने दिनों की बात बन चुकी है। “बहुत हुई बेरोज़गारी की मार- अबकी बार मोदी सरकार” के नारों के साथ सत्ता पर क़ाबिज़ हुई मोदी सरकार “युवाओं को रोज़गार देने के अपने वादे” को आठ साल बाद भी पूरा नहीं कर पाई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़े इसके गवाह हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के चौंका देने वाले आंकड़ों के अनुसार बेरोज़गारी के कारण खुदकुशी करने वालों की संख्या किसानों के खुदकुशी की तादाद से ज़्यादा है।

मोदी सरकार अपने शासन के आठवें वर्ष में हैं। बीते पिछले सात सालों के शासन का लेखा-जोखा देखें, तो देश के आम जनमानस के अनुभव खट्टे ही रहे हैं। यूं तो कई मायनों में ये सात साल पीड़ादायक रहे, परन्तु मोदी राज में बढ़ी बेरोज़गारी और घटी नौकरियां ये दो ऐसी बाते हैं जिनपर खुद मोदी समर्थक भी दबी ज़बान में अपनी सहमति दर्ज कराते हैं। चाहे नौकरीपेशा लोग हों या व्यापार से जुड़े लोग सभी ने इस दर्द का अनुभव किया है। ये मोदी दौर ही है जिसमें देश रिकॉर्ड बेरोज़गारी दर का गवाह बना। इसी दौर में हज़ारों-लाखों लोगों ने अपने रोज़गार को छिनते देखा। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार फरवरी 2019 में देश मे बेरोज़गारी दर 7.2 फीसदी रही।

चाहे प्राइवेट सेक्टर हो या सरकारी, रोज़गार के लिहाज़ से हर जगह हालात बद्तर रहे लेकिन सरकारी नौकरी की इच्छा रखने वाले देशभर के हज़ारों-लाखों अभ्यर्थियों के लिए ये सात साल किसी हसीन ख्वाब के टूटने जैसा था। साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज हुई थी और मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने, उन्हें यहां तक पहुंचाने में देश की युवा आबादी का बहुत बड़ा योगदान था। देश के युवाओं ने दिल खोलकर नई सत्ता का स्वागत किया था क्योंकि इस युवा वर्ग ने भाजपा की रैलियों में, मोदी जी के भाषणों में अपने भविष्य और रोज़गार को लेकर एक हसीन ख्वाब देखा था। आज यही युवा विशेषतौर पर सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले लाखों अभ्यर्थी खुद को ठगा महसूस करते हैं जब बेरोज़गारी के दौर में कम होती वेकैंसी के बीच उन्हें रिज़ल्ट और जॉइनिंग के लिए सड़क से लेकर ट्विटर तक संघर्ष करना पड़ता है।

भाजपा शासन में लगातार कम होती सरकारी वेकैंसी!
बढ़ती बेरोज़गारी के इस दौर में वेकैंसी का साल-दर-साल कम होना देशभर के तमाम छात्रों के लिए एक चिंता का विषय बन चुका है। एक नज़र डालें लगातार घटती वेकैंसी पर

एसएससी, आईबीपीएस(बैंक), और आरआरबी(रेलवे) ये मुख्यतौर पर विशेष रिक्रूटमेंट बोर्ड्स हैं जिनका काम विभिन्न विभागों में विभिन्न पदों के लिए उम्मीदवारों का चयन करना हैं। इन चयन आयोगों के द्वारा आयोजित परीक्षाओं में हर साल लाखों छात्र भाग लेते हैं। इनमें हर साल कम होती वेकैंसी पर एक नज़र डालते हैं।
एसएससी की तैयारी करने वाले छात्रों के बीच एसएससी सीजीएल की परीक्षा बेहद लोकप्रिय है। एसएससी सीजीएल की साल 2013 में कुल 16114 वेकैंसी थी, साल 2014 में 15549, 2015 में 8561, 2016 में 10661, 2017 में 8134, 2018 में 11271, 2019 में 8582 तथा साल 2020 में ये संख्या 7035 हो गयी। यानी साल 2020 में निकली वेकैंसी की संख्या की तुलना साल 2013 से करें तो लगभग 56 फीसदी की गिरावट देखने को मिली हैं।

इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र की बात करें, तो साल 2013 में आईबीपीएस (PO) की 21680 वेकैंसी थीं, साल 2014 में 16721, 2015 में 12434, 2016 में 8822, 2017 में 3562, 2018 में 4252, 2019 में 4336 तथा साल 2020 में ये संख्या महज़ 1167 रह गयी। वेकैंसी की लिहाज़ से साल 2020 की तुलना 2013 से करें तो करीब 95 फीसदी की भारी गिरावट देखने को मिलती है। ये बैंकिंग क्षेत्र में रोज़गार का सूरत-ऐ-हाल बयां करता है।

वही सिविल सेवा परीक्षा यानी यूपीएससी की बात करें तो साल 2013 में इसकी 1000 वेकैंसी थीं, 2014 में 1291, 2015 में 1129, 2016 में 1079, 2017 में 980, 2018 में 782, 2019 में 896 तथा साल 2020 में ये संख्या 796 थी।
(नोट : उपरोक्त सभी आँकड़ें इन परीक्षाओं के ऑफिशियल नोटिफिकेशन पर आधारित हैं)

साल-दर-साल कम होती वेकैंसी के ये आँकड़ें मौजूदा सरकार के दावों की पोल खोलते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के वक़्त भाजपा के लिए रोज़गार और नौकरी एक बड़ा मुद्दा था जिसे भुनाने की उन्होंने भरपूर कोशिश की और कामयाब भी हुए। लेकिन आज जब देश का नौजवान इन आंकड़ों पर नज़र डालता है तो खुद को ठगा सा महसूस करता है।

भर्ती आयोगों का छात्रों के प्रति गैरज़िम्मेदाराना रवैया भी एक बड़ी सिरदर्दी है!
छात्रों की पीड़ा महज़ अधिक बेरोज़गारी और घटती वेकैंसी तक सीमित नही बल्कि इन कम वेकैंसी को भी भरने के लिए परीक्षा प्रोसेस में सालों-साल का विलंब भी छात्रों के लिए एक चिंता का विषय है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र हेमंत कुमार का कहना है, “ये चयन आयोग गणित, अंग्रेजी भाषा और सामान्य ज्ञान जैसे विषयों के साथ-साथ छात्रों के धैर्य की भी परीक्षा लेते हैं। बढ़ती बेरोज़गारी और घटती वेकैंसी के बाद भी हम मनोवैज्ञानिक तौर पर खुद को इन परीक्षाओं के लिए तैयार करते हैं लेकिन इसके बाद भी हम छात्रों को रिज़ल्ट से लेकर जॉइनिंग तक के लिए सड़क से लेकर ट्विटर तक संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में आप बताइए छात्र कैसे खुद को हतोत्साहित होने से बचाये?

हेमंत, कर्मचारी चयन आयोग(SSC) की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए ऐसा कहते हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार के अधीन कर्मचारी चयन आयोग पिछले कुछ सालों से अपनी कार्यप्रणाली को लेकर विवादों में है। एसएससी पर मुख्यतौर पर ‘सबसे स्लो कमिशन’ होने का आरोप छात्रों द्वारा लगाया जाता है। छात्रों का आरोप है की एसएससी परीक्षा के प्रोसेस को पूरा करने में जितना वक़्त लगाता है उतने में एक विद्यार्थी अपनी ग्रैजुएशन पूरी कर लेता है। तथ्यों का विश्लेषण करने पर ये बात सच भी साबित होती है।

कर्मचारी चयन आयोग ने सीजीएल 2017 की परीक्षा के लिए 16 मई 2017 को नोटिफिकेशन निकाला। परीक्षा में धांधली के आरोप लगे। मामला कोर्ट तक गया। सड़कों पर छात्रों द्वारा आंदोलन भी किये गए। और एक बेहद लंबे वक्त के बाद 15 नवंबर 2019 को इस परीक्षा का फाइनल रिजल्ट जारी किया गया। गौर करने वाली बात ये है कि नोटिफिकेशन जारी होने से लेकर फाइनल रिजल्ट तक परीक्षा के प्रोसेस में लगभग 2 साल 6 महीने का समय लगा अगर इसमें जॉइनिंग के भी औसतन 5-6 महीने जोड़ ले तो ये अवधि 3 साल की हो जाती है।
इसके अलावा एसएससी ने सीजीएल 2018 की परीक्षा का नोटिफिकेशन 5 मई 2018 को जारी किया और इसका फाइनल रिज़ल्ट 1 अप्रैल 2021 को घोषित किया गया। नोटिफिकेशन जारी होने से लेकर फाइनल रिज़ल्ट तक कुल 2 साल 10 महीने का वक़्त लगा। जॉइनिंग का वक़्त जोड़कर इस परीक्षा की अवधि भी 3 साल से अधिक की हो जाएगी।

नौकरियाँ लगातार कम हो रही हैं। वेकैंसी और उम्मीदवारों के बीच संख्या का अनुपात बढ़ता जा रहा है। ऐसे में वन-डे परीक्षाओं को ग्रैजुएशन कोर्स बना दिया जा रहा है एक परीक्षा को पूरा करने में 3-3 साल लगाए जा रहे हैं। और मज़ेदार बात ये है कि इन परीक्षाओं में इतना वक़्त ऐसे समय में लग रहा है जब परीक्षा प्रणाली ऑनलाइन है। डिजिटल इंडिया के इस दौर में नौजवानों के बेशकीमती साल बर्बाद किये जा रहे हैं ऐसे में सरकारों की मंशा पर सवाल उठना लाज़मी है।
भारत में बेरोज़गारी के हालात को बयां करती रेलवे परीक्षा के आवेदकों की संख्या!

बेरोज़गारी के इस दौर में रेलवे ने साल 2019 में बंपर भर्ती की घोषणा की है जिसके बाद लाखों बेरोज़गार युवाओं को अपने भविष्य के लिए एक आशा की किरण दिखाई दी। रेलवे द्वारा एनटीपीसी और ग्रुप-डी की भर्ती के लिए 1 मार्च 2019 और 12 मार्च 2019 को रजिस्ट्रेशन चालू किया गया जिसके बाद बेहद चौंका देने वाले आंकड़े सामने आए। इन दोनों परीक्षाओं के लिए 2.4 करोड़ से भी अधिक आवेदन प्राप्त किये गए जो भारत मे बेरोज़गारी के हालात को बखूबी बयां करता है। इसके अलावा रेलवे के खजाने में फीस के रूप में करोड़ों रुपए आये। आवेदन शुल्क के नाम पर छात्रों से 500 रुपये लिए गए जिसमें से 400 रुपये पहले चरण की परीक्षा के बाद वापस लौटाने का वायदा किया गया। लेकिन रजिस्ट्रेशन से लेकर अबतक 2.3 साल का वक़्त पूरा हो चुका है लेकिन परीक्षा का प्रोसेस अबतक अधूरा ही है।

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र धर्मेंद्र का कहना है, “इस बढ़ती बेरोज़गारी और घटती वेकैंसी के बीच जब परीक्षा के परिणामों और जॉइनिंग के लिए छात्रों को संघर्ष के मजबूर किया जाता है तो ये ज़ख्मों पर नमक छिड़कने जैसा महसूस होता है।”

धर्मेंद्र ने ये बात इसी साल के फरवरी में हुए मेगा ट्विटर आंदोलन के सन्दर्भ में की। दरअसल इसी साल 25 फरवरी को देशभर में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले लाखों छात्रों ने सरकार की खराब नीतियों और अक्षमताओं के खिलाफ ट्विटर के माध्यम से अपना आक्रोश दर्ज कराया था। रोज़गार पर सरकार की वायदा खिलाफी से जो घुटन सालों से छात्रों के मन मे थी वो एक गुबार की तरह ट्विटर पर फूटी और 6 मिलियन से भी अधिक ट्वीट्स के साथ छात्रों ने अपनी तकलीफ को प्रधानमंत्री तक पहुंचाने का प्रयास किया। #modi_job_do हैशटैग 6 मिलियन से भी अधिक ट्वीटस के साथ दुनियाभर में नंबर-1 पर ट्रेंडिंग में रहा।

साल 2014 के वक़्त शायद ही देश के युवा ने ये सोचा होगा की जिस अच्छे दिन की आस लिए उसने नई सत्ता का स्वागत किया उनके लिए वही अच्छे दिन तथाकथित ‘बुरे दिन’ से भी बुरे साबित होंगे। नौकरी देने में विफल सरकार स्वरोज़गार के नाम पर पकौड़े तलने की बात करती है। खैर घरेलू गैस और तेल के दामों में अत्यधिक ‘विकास’ के बाद इस प्रोफेशन को शुरू करना भी मुश्किल हो गया है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के चौंका देने वाले आंकड़ों के अनुसार बेरोज़गारी के कारण खुदकुशी करने वालों की संख्या किसानों के खुदकुशी की तादाद से ज़्यादा है। NCRB डाटा के मुताबिक देश में बेरोज़गारी के कारण साल 2018 में औसतन 35 लोगों ने रोज़ाना आत्महत्या की है। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (CMIE) के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2018 में क़रीब एक करोड़ 10 लाख लोगों ने अपनी नौकरियां खोयीं। नोटबन्दी और जीएसटी जैसे फैसलो से भी रोज़गार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और लाखों लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

– डॉ. म. शाहिद सिद्दीकी

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