लोकतंत्र के मंदिर इन दिनों अशांति और व्यवधान के अड्डे बन गए हैं : जगदीप धनखड़

उदयपुर:   उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सदनों में लगातार हो रहे हंगामे की स्थिति पर गहरी वेदना व्यक्त करते हुए कहा कि जनप्रतिनिधियों की संस्था अत्यधिक दबाव में है और संवाद, विचार-विमर्श, बहस और चर्चा के लिए बना लोकतंत्र का मंदिर इन दिनों अशांति और व्यवधान के अड्डे बन गए हैं।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि एक निष्क्रिय विधायिका में लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने की क्षमता है जो लोकतंत्र के विकास में बाधक होगा। राजस्थान के उदयपुर में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र के 9वें सम्मेलन के दूसरे और अंतिम दिन समापन भाषण देते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने जनप्रतिनिधियों को जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए काम करने की नसीहत देते हुए यह तल्ख टिप्पणी भी की।

उन्‍होंने कहा कि संसद एवं विधानमंडलों में व्यवधान और जनप्रतिनिधियों के गलत आचरण एवं नॉन परफोर्मेंस कोविड से भी ज्यादा खतरनाक है और इसका जल्द से जल्द समाधान निकालने की जरूरत है। धनखड़ ने शासन में कार्यपालिका की जवाबदेही और वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए जन प्रतिनिधियों की सर्वोपरि भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि सरकार के तीनों अंगों – विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका – में से न्यायपालिका और कार्यपालिका सामंजस्य के साथ कार्य करते हैं, जबकि विधायिका, जोकि सर्वोच्च है, इन दिनों कमजोर हो गई है। लोकतंत्र के मंदिर में व्यवधान एक नई पारिपाटी सी बन गई है।

उन्होंने कहा कि इसी वजह से संसद और विधानमंडल लगातार अप्रांसगिक होते जा रहे हैं जो कि लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। उन्होंने राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को इस हालात के लिए जिम्मेदार बताते हुए कहा कि सांसदों और विधायकों को अपने नेताओं से सवाल करना चाहिए, अपनी पार्टी के साथ तर्क करना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि केवल संसद ही लोगों की इच्छा को अभिव्यक्त करती है और विधायिका का प्रभावी और सक्रिय कामकाज लोकतांत्रिक मूल्यों के फलने-फूलने की सबसे सुरक्षित गारंटी है।

राज्यसभा के सभापति ने सरकार और विपक्ष के बीच सामंजस्य पर जोर देते हुए आगे कहा कि संसदीय लोकतंत्र के ढांचे के अदंर सरकार और विपक्ष दोनों एक अपरिहार्य भूमिका निभाते हैं, ऐसी संसद जहां सरकार और विपक्ष मिलकर काम करते हैं, राष्ट्र के हित में है और सरकार और विपक्ष के बीच तालमेल अत्यंत महत्वपूर्ण है। विधायिका में विपक्ष की मुख्य भूमिका जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।

उन्होंने मणिपुर के मसले पर मानसून सत्र के दौरान विपक्षी दलों द्वारा किए गए हंगामे पर गहरी नाराजगी जताते हुए यह भी जोड़ा कि राज्यसभा में मणिपुर मसले पर चर्चा क्यों नहीं हो पाई, यह सोचना चाहिए, जबकि 20 जुलाई को ही मणिपुर पर चर्चा के लिए सहमत होने वाले वे स्वयं पहले व्यक्ति थे।

इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि चर्चा के जरिए सरकार की जवाबदेही तय होती है। राजनीति करनी चाहिए, लेकिन हर वक्त राजनीति ही नहीं करनी चाहिए।

हालांकि उपराष्ट्रपति धनखड़ के बाद बोलने के लिए खड़े हुए राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी ने राजनीतिक दलों और राजनीतिक दलों के नेताओं के रवैये पर उपराष्ट्रपति धनखड़ की द्वारा की गई तल्ख टिप्पणियों का जवाब देते हुए कहा कि पीठासीन अधिकारियों की नियति राजनीतिक दल तय करते हैं, जितनी भी नीतियां बनी हैं, वे नेताओ ने ही बनाई हैं, इसलिए जो कुछ भी हमने प्राप्त किया है, उसका श्रेय राजनीतिक दलों को भी देना चाहिए।

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