कंपनियों को राहत देने और इक्विटी बाजारों को बढ़ावा देने के लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को लाभांश वितरण कर (डीडीटी) को हटाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इससे सरकार का राजस्व 25,000 करोड़ रुपये तक कम होने वाला है। वित्तमंत्री ने शनिवार को संसद में आम बजट पेश करते हुए बताया कि मौजूदा समय में कंपनियों को अपने मुनाफे पर टैक्स अदा करने के अलावा अपने शेयरधारकों को दिए गए लाभांश पर भी 15 फीसदी की दर से डीडीटी एवं लागू अधिभार तथा उपकर देना पड़ता है।
सीतारमण ने कहा कि लाभांश पर टैक्स अब केवल प्राप्तकर्ताओं को ही देना होगा, जो उन पर लागू दरों के हिसाब से मान्य होगा।
उन्होंने कहा कि डीडीटी लगाने की व्यवस्था से निवेशकों, विशेषकर उन लोगों पर कर बोझ बढ़ जाता है, जिन्हें उस स्थिति में डीडीटी की दर से कम टैक्स देना पड़ता है, जब लाभांश आय को उनकी आय में शामिल कर लिया जाता है। इसके अलावा ज्यादातर विदेशी निवेशकों को अपने देश में डीडीटी को उनके खाते में न डालने या क्रेडिट करने पर उनकी इक्विटी पूंजी पर रिटर्न की दर घट जाती है।
भारतीय शेयर बाजार को और भी अधिक आकर्षक बनाने, निवेशकों के एक बड़े वर्ग को राहत देने और निवेश के लिए भारत को एक आकर्षक देश बनाने के लिए आम बजट में डीडीटी को हटाने का प्रस्ताव किया गया है।
इसके अलावा वित्तमंत्री ने अपनी सहयोगी कंपनी से किसी होल्डिंग कंपनी को प्राप्त लाभांश के लिए कर कटौती की मंजूरी देने का प्रस्ताव किया है, ताकि कर देने की समस्या से मुक्ति पाई जा सके। डीडीटी को हटाने के परिणामस्वरूप हर वर्ष अनुमानित 25,000 करोड़ रुपये का राजस्व छोड़ना होगा।
सीतारमण ने कहा, “भारतीय इक्विटी बाजार के आकर्षण को बढ़ाने और निवेशकों के एक बड़े वर्ग को राहत देने के लिए मैं डीडीटी को हटाने और लाभांश कराधान की प्रणाली को अपनाने का प्रस्ताव करती हूं, जिसके तहत कंपनियों को डीडीटी का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी।”
वित्तमंत्री ने कहा कि यह एक और साहसिक कदम है, जो भारत को निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना देगा।
क्लियरटैक्स के संस्थापक और सीईओ अर्चित गुप्ता ने कहा, “डीडीटी को हटाना अच्छा है, क्योंकि यह करदाता के हाथों में प्राप्त लाभांश को बढ़ाता है।”
अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को डीडीटी हटाने से लाभ होने की उम्मीद है, क्योंकि वे उच्च लाभांश देने वाली कंपनियां हैं।