विंध्य क्षेत्र की जीवन रेखा कहलाने वाली सोन नदी के अस्तित्व पर खतरे की काली साया मडराने लगी है। वहीं सोन नदी में खनिज माफियाओं द्वारा रेता उत्खनन के कदम से सोन घडियाल, मगर के जीवन और संघर्षमय बनता जा रहा हैं।
इधरप्रदेश सरकार द्वारा सोन घडियाल के संरक्षण के लिये बनायी गई करोडो की योजना अधिकारियों-कर्मचारियों की अवैध कमाई का जरिया साबित हो रही है। सोन नदी में रेत उत्खनन में से प्रदेश में जैव विविधता के संरक्षण की पोल भी खुलती नजर आ रही है। विंध्य प्रदेश की सबसे बडी नदियों में शुमार सोन नदी की उत्पत्ति ही विविधता लिये हुये प्रकृति सौंदर्य को बयां करती है। सोन मध्यप्रदेश ही नहीं उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड राज्य की सबसे बडी नदियों में से एक है। अभ्यारण की स्थापना मध्य प्रदेश राज्यपाल अधिसूचना क्रमांक 14/47/880/10/2 दिनांक 23/09/1981 द्वारा की गई थी। तब सर्वेक्षण के आधार पर प्राकृतिक मगर एवं घडियालों की संख्या 13 थी।
अभ्यारण का उदघाटन प्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह द्वारा 10 नवम्बर 1981 को घडियाल व मगर के एक साथ छोडकर किया गया था। अभ्यारण का कुल क्षेत्रफल 209.21 किलोमीटर का है। जिसमें सीधी-सिंगरौली, सतना, शहडोल जिले में प्रवाहित होने वाली सोन नदी के साथ-साथ गोपद एवं बनास नदी का कुछ क्षेत्रफल भी अभ्यारण में शामिल किया गया है। इसमें सतना-शहडोल में प्रवाहित सोन नदी का 12.87 किमी, शहडोल-सीधी में में 9.66 किमी, सीधी-सिंगरौली जिले में 138.40 किमी क्षेत्र शामिल है। यहीं नहीं घडियाल अभ्यारण में गोपद नदी का 25.75 किमी एवं बनास नदी का 22.53 किमी लम्बाई शामिल है। जानकारी के अनुसार सोन घडियाल अभ्यारण्य के नदियों केे दोनों ओर 200 मीटर की परिधि समेत 418.42 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र संरक्षित किया गया है। अभ्यारण्य क्षेत्र में मगर एवं घडियालों को देखने के लिये लोग भवरसेन, टेढीदह, बीछी, कुठलीदह, खैरहनी, जोगदह, खखेरदह, शकारगंज, कजरदह, स्थानों पर ज्यादातर प्रसिद्ध दहों पर जाते है। मध्यप्रदेश में विलुप्त की कगार पर जा रहे। सोन घडियाल-मगरमच्छों की दुर्लभ जलीय प्रजातियों के संरक्षण के लिये घडियाल अभ्यारण की स्थापना की है, जिसके लिये सीधी-सिंगरौली जिले की हृदय रेखा बनी सोन नदी को सरंक्षित क्षेत्र घोषित किया है। सोन घडियाल अभ्यारण के लिये प्रदेष सरकार प्रति वर्ष करोडो रूपये बजट में पानी की तरह बहा रही है। जबकि सोन घडियाल का बजट अभ्यारण के जिम्मेदार अफसरों की कमाई का प्रमुख स्त्रोत बनकर रह गया है।
सोन अभ्यारण की जमीनी सच्चाई इस बात से साफ झलकती है कि संरक्षित क्षेत्र में म0प्र0 सरकार द्वारा पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया रेत उत्खनन जोरों पर किया जाता है यहीं नही शासन-प्रषासन के लोगों को इस बात से भी भली भांति परिचित है कि सोन नदी से खनिज माफिया द्वारा दिन दहाडे रेत निकाली जाती है, इसके बाद भी स्थानीय जन प्रतिनिधियों एवं राजस्व, वन अधिकारियों की उदासीनता मगरमच्छ एवं घडियालों की अस्तित्व के साथ हो रहे खिलावाड को नजर अंदाज कर रही है। सूत्रों की बात माने तो शासन एवं वन मंत्रालय द्वारा घडियाल अभ्यारण संरक्षण पर खर्च की जाने वाली राषि फर्जी बिल बाउचर के जरिये वन अधिकारियों के खजाने में जा रही है। स्थानीय लोगों की बात माने तो सोन नदी के जोगदह पुल के कुछ दूर आगे रेत का अवैध उत्खनन स्ािल बना हुआ है। जहां खनिज माफिया के दर्जनों गुर्गे रेत की खेप निकलवाने का जिम्मा लिये बैठे रहते है। पुलिस प्रषासन की अवैध उत्खननकर्ताओं के आगे दुम हिलाती देखी जा सकती है।
सोन नदी के निर्मल नीले कलकल करते जल में जहां मगरमच्छ और घडियालों की अठखेलिया होनी थी, वहीं अवैध उत्खनन और अफसरों की निष्क्रयता उनकी स्वच्छंदता और जीवन उत्पत्ति के लिये मुसीबत बनती जा रही है। लिहाजा इस संरक्षित दुर्लभ जलीय प्रजाति का अस्तित्व ही खतरे में फंसता नजर आ रहा है। अवैध रेता उत्खनन जलीय जीव-जन्तु ही नहीं सोन नदी की प्राकृतिक छटा और अस्तित्व के लिये खतरे की घण्टी से कम नहीं है।
प्रदेश सरकार एक ओर जैव विविधता के संरक्षण और उसको कायम रखने करोडो की योजना तैयार की है वहीं इस दिषा की ओर प्रदेशभर में जागरूकता अभियान ही छेड रखा है। बावजूद इसके सीधी-सिंगरौली जिले में जैव विविधता के साथ लगातार खिलवाड किया जा रहा है। लिहाजा प्रदेश सरकार मैदानी अमले पर समय रहते षिकंजा नहीं कसा तो वह दिन दूर नहीं जब प्रदेष की नदियां एवं दुर्लभ जलीय, जीव-जन्तुओं की प्रजातियां अपना अस्तित्व खोने के लिये मजबूर हो जायेगी।
रिपोर्टर:- देवेंन्द्र द्विवेदी-सद्भावना टुडे रीवा,