रणवीर सिंह, आल‍िया की फ‍िल्‍म में मनोरंजन पूरा है, पर गड़बड़ भी कम नहीं

करण जौहर एक बार फिर से अपनी फेवरेट आल‍िया भट्ट और रणवीर स‍िंह के साथ म‍िलकर अपनी फैमली एंटरटेनर फिल्‍म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ लेकर आ गए हैं. फिल्‍म आज र‍िलीज हो गई है और रणवीर-आल‍िया के अलावा इस फिल्‍म को लेकर जो सबसे ज्‍यादा एक्‍साइटमेंट है वो है अपने जमाने के द‍िग्‍गज एक्‍टरों यानी धर्मेंद्र, शबाना आजमी और जया बच्‍चन की स्‍क्रीन प्रिजेंस को लेकर. जब से इस फिल्‍म का गाना सामने आया, सोशल मीड‍िया लोगों को श‍िकायत थी कि रणवीर-आल‍िया के बीच ‘वो केम‍िस्‍ट्री’ नहीं नजर आ रही जो एक रोमांट‍िक फिल्‍म में आनी चाहिए. लेकिन अब करण जौहर की ये फिल्‍म रिलीज हो गई है और मैं आपको बताने वाली हूं कि आखिर ये केम‍िस्‍ट्री की कमी और एक बढ़‍िया एंटरटेनर की कमी जो दर्शक महसूस कर रहे हैं, वो पूरी होती है या नहीं.

रंधावा और चटर्जी का र‍िश्‍ता
कहानी की बात करें तो रॉकी रंधावा (रणवीर सिंह) एक करोड़पति लड़का है, ज‍िसके पास खूब पैसा है और एक म‍िठाई का खानदानी ब‍िजनेस ज‍िसका आगे चलकर उसे सीईओ बनना है. रॉकी की दादी है धनलक्ष्‍मी रंधावा (जया बच्‍चन) ज‍िसके घर की बहुएं स‍िर पर दुपट्टा रखती हैं. रॉकी के दादा जी (धर्मेंद्र) की यादाश्‍त कभी आती है कभी जाती है, डेडी जी (आम‍िर बशीर) जो सारा ब‍िजनेस मां के साथ संभालते हैं. दूसरी तरफ रानी चटर्जी (आल‍िया भट्ट) है, जो एक जर्नल‍िस्‍ट है और काफी पढ़ी ल‍िखी, खुले व‍िचारों की लड़की है. उसके प‍िता (टोटा रॉय चौधरी) कथक डांसर-टीचर हैं और मां (चुरनी गांगुली) डीयू में अंग्रेजी की प्रोफेसर. रानी की ठाकुमा यानी दादी हैं जैम‍िनी (शबाना आजमी) जो काफी खुले व‍िचारों वाली हैं. ये बैकग्राउंड ही समझा देता है कि ये दो बेहद अलग-अलग परिवेश से आने वाले लोग हैं. लेकिन फिर रॉकी को रानी से प्‍यार हो जाता है और ये पंजाबी मुड़ा बंगाली लड़की के प्‍यार में पड़ जाता है. लेकिन रानी इस र‍िश्‍ते को शादी का नाम देने से पहले तय करती है कि रॉकी उसके परिवार के साथ और वो रॉकी के परिवार के साथ 3 महीने रहेंगे. अब इसी बीच होता है कल्‍चर एक्‍सचेंज और काफी सारा धमाल. ये है इस कहानी का वो हिस्‍सा जो मैं आपको बता सकती हूं और बाकी के ट्व‍िस्‍ट और सीक्रेट जानने के लिए आपको स‍िनेमाघरों में जाना होगा.

यहां लाउड बैकग्राउंड म्‍यूज‍िक, तामझाम, यहां सब म‍िलेगा
न‍िर्देशक करण जौहर का कहानी कहने का अपना एक तरीका है और ‘रॉकी और रानी..’ इससे अलग नहीं है. अमीरों की दुनिया की इस कहानी में पैसा या खर्चा कोई ईशू नहीं है. यहां अखाड़ा भी लाइट्स और कलरफुल अंदाज में सजाया गया है. दुर्गा पूजा होती है तो पूरा पांडाल और उसमें खड़े लोग, सब लाल रंग के ड्रेस कोड में सजा नजर आता है. सबकुछ ट‍िपिकल करण जौहर के अंदाज में… पर इसके साथ ये कहना होगा कि करण जौहर जानते हैं कि फैमली एंटरटेनर फिल्‍म में क्‍या-क्‍या इंग्रीड‍िएंट होने चाहिए. वो सब इस फिल्‍म में आपको म‍िलेगा. कई मूमेंट हैं जब आप खूब हंसेंगे, आप ताल‍ियां भी बजाएंगे. इस फिल्‍म में कई सारे ऐसे एलीमेंट हैं जो इस फिल्‍म को थ‍िएटर में जाकर देखने के लायक बनाते हैं. लेकिन आज जब ओटीटी में इतना र‍िच कंटेंट देख आपकी आदत लॉज‍िक ढूंढने की और कम‍ियां तलाशने की हो गई जो इस एंटरटेनमेंट की राइड में कई बार लॉज‍िक की बत्ती गुल हो जाएगी.

करण जौहर के तरकश से न‍िकली जरूरी फिल्‍म
स्‍क्र‍िप्‍ट की बात करें तो करण जौहर ने इस बार एक ऐसे व‍िषय को चुना है, ज‍िसपर प‍िछले कुछ समय से लगातार बातें हो रही हैं. आजाद होती लड़कियां, शादी के बाद खुलकर अपनी न‍िजता की बात करती लड़कियां और ये एक अच्‍छी पहल है. सालों तक आजाद और अपनी जरूरतों की बात करती लड़कियां पर्दे पर वैंप की तरह द‍िखाई गई हैं. ‘बीवी हो तो ऐसी’ और ‘घर हो तो ऐसा’ जैसी म‍िसालों के साथ साड़ी में ल‍िपटी ‘बेचारी औरतें’ ही अच्‍छी और संस्‍कारी औरतें द‍िखाई गई हैं. पर अब स‍िनेमा ने इन आजाद औरतों की खेप को भी मानवीयता की परिपाटी पर तोला है और ये एक अच्‍छी बात है. ‘तू झूठी मैं मक्‍कार’ में अपना स्‍पेस मांगती श्रद्धा कपूर को आखिर में ‘परिवार की अहम‍ियत’ समझा कर न‍िर्देशक ने फ‍िर से नैत‍िकता का पाठ पढ़ाया है, वहीं करण जौहर की ये फिल्‍म उससे कहीं आगे है. ये रानी को अपना नजरिया रखने की पूरी छूट देती है.

‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ दरअसल इस देश के कई सारे कपल्‍स की कहानी को द‍िखाती है, ज‍िनमें प्‍यार करते वक्‍त तो ये वादे होते हैं कि ‘तेरे वास्‍त फलक से चांद ले आउंगा’ लेकिन शादी के बाद ये अनकही शर्त भी सामने होती है कि ‘अगर मेरी मां को ये चांद पसंद आ गया तो उन्‍हें दे देना. इतना एडजस्‍टमेंट तो करना पड़ेगा.’ दरअसल इस अंदाज से सारी कम‍ियों के बावजूद ये एक जरूरी फिल्‍म बन जाती है.

रूढ़‍ियों पर बात करते-करते रूढ़‍ियां ही द‍िखा गए
हालांकि ये फिल्‍म फ्लॉलेस (कम‍ियों से रह‍ित) नहीं है. इसकी कहानी में कई जगह आपको चीजें खटकेंगी. खासकर आल‍िया भट्ट का एंट्री सीन, ज‍िसमें वो एक पत्रकार बनी नजर आ रही हैं. ये सीन काफी अटपटा और र‍िएल‍िटी से बहुत दूर है. इसे वैसे ही पचाया जाएगा जैसे ‘स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर’ के स्‍कूल को लोगों ने देखकर पचाया. पैसे के पीछे भागते, बेतरतीब अनकल्‍चर पंजाब‍ियों के तौर पर रंधावाओं को द‍िखाया गया है, तो वहीं रोब‍िंद्र शोंगीत सुनने वाले, ओवर ओपर माइंडेड बंगाली. ये दोनों अंदाज ही कई रूढ़‍ियों को द‍िखाते हैं. कहानी का फर्स्‍ट हाफ कॉमेडी से भरपूर है तो सेकंड हाफ में इमोशंस भी काफी हैं.

एक्‍ट‍िंग की बात करें तो रणवीर सिंह ट‍िप‍िकल द‍िल्‍ली वाले पंजाबी लड़के बने हैं, ज‍िसमें वो कमाल के लगे हैं. रणवीर जब भी स्‍क्रीन पर हैं, उनके आगे फिर कोई भी नजर नहीं आता है. इमोशन सीन हों या फिर कॉमेडी, उनकी इनोसंस गजब की है. आल‍िया फिल्‍म में बेहद खूबसूरत लगी हैं. हालांकि रणवीर ने ज्‍यादातर सीन्‍स में उन्‍हें ओवर शेडो कर द‍िया है. धमेंद्र और शबाना आजमी की केम‍िस्‍ट्री और पुराने बजते गाने आपको खूब पसंद आएंगे. जया बच्‍चन को फिल्‍म में काफी स्‍क्रीन स्‍पेस म‍िला है लेकिन वो आपको हर जगह बस त्‍योरी चढ़ाए लुक्‍स देती ही नजर आएंगी.

ढेर सारी अतिश्‍योक्‍त‍ियों के बाद भी करण जौहर की ये फिल्‍म एक एंटरटेनर फिल्‍म है, जो दर्शकों को स‍िनेमाघरों में लाने का पूरा दम और उन्‍हें मनोरंजन देने का पूरा मद्दा रखती है. हालांकि इसकी लंबाई थोड़ी ज्‍यादा है और इसे कसा जा सकता था, सेकंड हाफी में खासकर. मेरी तरफ से इस फिल्‍म को 3 स्‍टार.

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