यूक्रेन से निकाले गए मेडिकल छात्रों को भारतीय कॉलेजों में ‘समायोजित’ करने पर विचार कर रहा केंद्र

युद्धग्रस्त यूक्रेन से निकाले गए भारतीय मेडिकल छात्रों को भारत के कॉलेजों में समायोजित करने के लिए केंद्र राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के साथ चर्चा कर रहा है, ताकि छात्र अपनी पढ़ाई जारी रख सकें।

दरअसल पूर्वी यूरोपीय देश में युद्ध छिड़ने के बाद वहां पढ़ाई कर रहे छात्रों, जिनमें अधिकतर मेडिकल छात्र शामिल हैं, की सुरक्षा के लिए उन्हें भारत लाया जा रहा है और इस बीच उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई है, जिसे देखते हुए केंद्र ऐसे छात्रों को भारतीय कॉलेजों में समायोजित करने पर विचार कर रहा है।

विदेशी विश्वविद्यालयों से चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले छात्रों को देश में प्रैक्टिस शुरू करने के लिए भारत में विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (एफएमजीई) पास करने की आवश्यकता है। एक सूत्र के अनुसार, सरकार मानवीय आधार पर इन छात्रों को देश के मेडिकल कॉलेजों में समायोजित करने के लिए एफएमजीई में कुछ बदलाव करने के लिए प्रावधानों पर विचार कर रही है।

सूत्र ने कहा कि संबंधित विभाग मामले को गंभीरता से देख रहे हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए जो भी संभव होगा किया जाएगा, ताकि निकाले गए छात्र अपनी पढ़ाई जारी रख सकें।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय जल्द ही इस संबंध में निर्णय लेने के लिए नीति आयोग और अन्य चिकित्सा आयोगों के साथ विचार-विमर्श करेगा।

इस बीच, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने भी इन मेडिकल छात्रों के भविष्य पर मंडरा रही अनिश्चितता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है।

पत्र में कहा गया है, यूक्रेन से निकाले गए सभी मेडिकल छात्र भारतीय नागरिक हैं और इन्होंने भारत में नियामक प्राधिकरणों से पात्रता प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद वहां प्रवेश हासिल किया है। विभिन्न चरणों में एकमुश्त उपाय के रूप में इन्हें देश के मौजूदा मेडिकल संस्थानों में समायोजित किया जाएगा। इसके लिए मेडिकल छात्र के संबंधित गृह राज्य का ध्यान रखा जाए और उन्हें स्थानीय मेडिकल कॉलेजों में ही समायोजित किया जाए। लेकिन यह एक बार की जो तात्कालिक सुविधा दी जाए, उसे मेडिकल कॉलेज में बढ़ी हुई सीटों की क्षमता के तौर पर न मान लिया जाए। इसे सिर्फ भारतीय मेडिकल संस्थानों में उनके बाकी बचे एमबीबीएस कोर्स को पूरा कराने की प्रक्रिया के तौर पर रखा जाए।

आईएम ने अपनी सिफारिश में आगे कहा, परिणामस्वरूप, पास आउट होने पर वे उतने ही अच्छे होंगे, जितने कि भारतीय चिकित्सा स्नातक, न कि विदेशी चिकित्सा स्नातक। यह न केवल उन सभी को उनके अनिश्चित भाग्य और भविष्य से बचाने के लिए एक महान काम होगा, बल्कि एक बड़े मानवीय उद्देश्य को पूरा करने में भी एक लंबा रास्ता तय करेगा।

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